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Guru Nanak Jayanti 2021 : गुरु नानक देव के 2 खास प्रेरक प्रसंग, यहां पढ़ें

हमें फॉलो करें Guru Nanak Jayanti  2021 : गुरु नानक देव के 2 खास प्रेरक प्रसंग, यहां पढ़ें
प्रेरक प्रसंग 1.
 
गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े एक प्रसंग के अनुसार पुराने समय में एक राजा था, जो अपनी प्रजा को बहुत कष्ट देता था। वह राजा बहुत ही क्रूर था तथा दूसरों का धन लूट लेता था। 
 
एक दिन गुरु नानक देव उस क्रूर राजा के राज्य जा पहुंचे। जब इस बात का पता राजा को चला तो वे गुरु नानक से मिलने पहुंचा। शिष्यों ने गुरु नानक को राजा के बारे में सबकुछ बता दिया था। इसीलिए जब राजा उनके पास आया तो उन्होंने राजा से कहा कि, हे राजन् मेरी मदद करें, मेरा एक पत्थर अपने पास गिरवी रख लो। ये मुझे बहुत प्रिय है। इसका विशेष ध्यान रखना।
 
राजा ने कहा- ठीक है, मैं इसे रख लेता हूं, लेकिन आप इसे वापस कब ले जाएंगे? नानक जी ने जवाब दिया कि जब हमारी मृत्यु हो जाएगी और हम मृत्यु के बाद मिलेंगे तब यह पत्थर आप मुझे वापस कर देना। नानक जी बात सुनकर राजा हैरान रह गया, उसने कहा- यह कैसे संभव है? मृत्यु के बाद कोई भी अपने साथ कुछ कैसे ले जा सकता है ?
 
तब गुरु नानक देव ने कहा- जब आप यह बात जानते हैं तो प्रजा का धन लूटकर अपना खजाना क्यों भर रहे हैं? अब राजा को गुरु नानक की बात समझमें आ गई। उसने नानक जी से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वह अपनी प्रजा पर कभी भी अत्याचार नहीं करेगा। इसके बाद राजा ने अपने जमा खजाने का धन उपयोग करके प्रजा की देखभाल में करना शुरू कर दिया। 
 
प्रेरक प्रसंग 2. 
 
गुरु नानक देव एक बार एक गांव गए, वहां के लोग नास्तिक विचारधारा के थे। वे भगवान, उपदेश और पूजा-पाठ में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखते थे। वे साधुओं को ढोंगी की संज्ञा देते। उन्होंने नानक के प्रति कटु वचन कहे और उनका तिरस्कार भी किया, तब भी नानक देव शांत ही रहे। 
 
दूसरे दिन जब वे वहां से रवाना होने लगे तो लोग उनके पास आए और उन्होंने कहा, 'जाने से पहले आशीर्वाद तो देते जाएं।' नानक देव मुस्करा दिए और बोले, 'आबाद रहो।' वे जब पास के दूसरे गांव पहुंचे, तो वहां के लोगों ने उनका उचित सत्कार करके, रहने-खाने का भी उचित प्रबंध किया। 
 
नानक जी ने उनके समक्ष प्रवचन किया। प्रवचन समाप्ति के उपरांत श्रद्धालु लोगों ने उनसे आशीर्वाद देने का आग्रह किया, तो नानक जी बोले, 'उजड़ जाओ।' शिष्यों ने ये विचित्र आशीर्वाद सुने तो उनकी कुछ समझ में न आया। उनमें से एक शिष्य से रहा नहीं गया और उने पूछा- 'गुरुदेव, आपने तो बड़े ही विचित्र आशीर्वाद दिए हैं। आदर करने वालों को तो उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया है, जबकि तिरस्कार करने वालों को आबाद रहने का। मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।' 
 
तब हंसते हुए नानक देव बोले, 'सज्जन लोग उजड़ेंगे तो वे जहां भी जाएंगे, अपनी सज्जनता से वहां उत्तम वातावरण बना लेंगे, किंतु यदि दुर्जन अपना स्थान छोड़ देंगे तो वे जहां भी जाएंगे, वहीं का वातावरण दूषित बनाएंगे, इसलिए उन्हें आबाद रहने का आशीर्वाद दिया।' गुरु नानक देव के मुख से यह वचन सुनकर शिष्य ने चरण स्पर्श किए और कहा, 'गुरु देव आप जो भी करते और सोचते हैं उनसे पीछे ज्ञान छिपा होता है जिसे हम तुच्छ प्राणी समझ नहीं सकते हैं।' 


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