अब इंजेक्शन से परिवार नियोजन
इंजेक्शन से दिए जाने वाले गर्भनिरोधक का ट्रायल पूरा
-
दिल्ली से भाषा सिंहसरकारी परिवार नियोजन कार्यक्रम में कापर-टी, निरोध और गर्भनिरोधक गोलियों के अलावा इंजेक्शन शामिल करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कमर कस ली है। खबर है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने जर्मन कंपनी के नेट-इन नामक इस इंजेक्शन से दिए जाने वाले गर्भनिरोधक से संबंधित ट्रायल पूरे कर लिए हैं और जल्द ही इसे हरी झंडी मिलने वाली है। इसका महिला संगठन कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि इनका स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है।सरकारी परिवार नियोजन में नेट-इन को डालने की तैयारी के तहत इसे देने की अवधि को तीन महीने से घटा कर एक महीने कर दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार एक-दो महीने में इसे देश के परिवार नियोजन कार्यक्रम में शामिल करने की तैयारी कर ली गई है। शुरू में इसे जिला अस्पतालों में लागू किया जाएगा। अभी यह तय नहीं है कि जिला अस्पतालों में इसे प्रयोग के तौर पर लागू किया जाएगा या परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत। |
अभी जन स्वास्थ्य का पूरा ढाँचा ही चरमराया हुआ है। प्रशिक्षित नर्सें तक नहीं हैं। ऐसे में गरीब महिलाओं को इंजेक्शन के जरिए गर्भनिरोधक लगवाने की कोई भी योजना खतरनाक साबित होगी |
|
|
नेट-इन एक हार्मोनल इंजेक्शन है, जो महिला की प्रजनन प्रणाली को नियंत्रित करता है। अभी जो इंजेक्शन देने की तैयारी है उसे महीने में एक बार दिया जाएगा और एक महीने तक महिला गर्भधारण नहीं कर पाएगी। निश्चित रूप से इसे देने के लिए एक डॉक्टर की जरूरत होगी क्योंकि हार्मोनल इंजेक्शन देने से पहले जरूरी है कि महिला का पूरा स्वास्थ्य चेक-अप होना जरूरी है।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के चलते ही इसका लंबे समय से विरोध हो रहा है। मामला 1986 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा। करीब नौ साल तक चले मुकदमे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा कि जब तक व्यक्तिगत तौर पर हर एक महिला की मॉनीटरिंग की व्यवस्था न हो इसे परिवार नियोजन कार्यक्रम में शामिल न किया जाए।
इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में रहा लेकिन बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों का दबाव बहुत तगड़ा है क्योंकि विदेश में इन इंजेक्शनों का बहुत बाजार नहीं है। इस बारे में कोर्ट तक मामला पहुंचाने वाली स्वास्थ्य कर्मी सत्यमाला ने बताया कि इस इंजेक्शन के घातक परिणाम हैं-इससे माहवारी में अत्यधिक स्राव, अनियमित होना, वजन बढ़ना और भीषण अवसाद होता है। हाई-ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए यह बहुत नुकसानदेह है।
जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ इमराना कदीर एक बहुत मौलिक सवाल उठाते हुए कहती हैं कि अभी जन स्वास्थ्य का पूरा ढाँचा ही चरमराया हुआ है। प्रशिक्षित नर्सें तक नहीं हैं। ऐसे में गरीब महिलाओं को इंजेक्शन के जरिए गर्भनिरोधक लगवाने की कोई भी योजना खतरनाक साबित होगी। महिला संगठन की प्रतिनिधि ने स्वास्थ्य मंत्रालय की इस पहल को पूरी तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों के आगे समर्पण बताया।
उन्होंने कहा कि इसके जरिए भारत की गरीब महिलाओं के शरीर को प्रयोगस्थली बनाया जा रहा है। जब परिवार नियोजन के लिए पहले से सुरक्षित तरीके हैं और जिनके लिए महिलाएँ डॉक्टरों पर कम निर्भर रहती हैं, ऐसे में इस तरह के विवादित इंजेक्शन को लागू करने की जरूरत ही क्या है?