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अयोध्या मामले पर फैसला टला

उच्चतम न्यायालय की अगली सुनवाई मंगलवार को

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नई दिल्ली , गुरुवार, 23 सितम्बर 2010 (21:50 IST)
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राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला अब शुक्रवार को नहीं आएगा क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने इस पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी है।

तेजी से बदले घटनाक्रम में उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को टालने के लिए दायर याचिका पर अगले मंगलवार को सुनवाई करने का आज फैसला किया।

फैसले को टालने के संबंध में दायर याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के खारिज करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने के मुद्दे पर गहरे मतभेद के बाद न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एचएल गोखले ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी। पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का फैसला कल आने वाला था।

मतभेद की स्थिति में अदालत की परंपराओं का पालन करते हुए पीठ ने सभी पक्षों को नोटिस जारी करने का फैसला किया और सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेशचंद त्रिपाठी की ओर से दायर याचिका पर उनसे जवाब माँगा। त्रिपाठी की याचिका में 60 साल पुराने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद में अदालत के बाहर समाधान ढूँढने की संभावना तलाशने का अनुरोध किया गया है।

न्यायालय ने केंद्र को सुनवाई में पक्ष बनाते हुए अटार्नी जनरल जीई वाहनवती को नोटिस जारी किया और मंगलवार को जब फिर से उच्च न्यायालय के फैसले को टालने के संबंध में दायर याचिका पर शीर्ष अदालत में सुनवाई होगी तो उनसे उस दौरान न्यायालय में उपस्थित रहने को कहा।

न्यायमूर्ति रवींद्रन की राय थी कि त्रिपाठी की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी जानी चाहिए जबकि न्यायमूर्ति गोखले की राय थी कि समाधान का विकल्प तलाशने के लिए नोटिस जारी किया जाना चाहिए। आपत्तियों के बावजूद पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति रवींद्रन ने समाधान तलाशने के एक और प्रयास के तहत न्यायमूर्ति गोखले की राय के साथ जाने को तरजीह दी।

न्यायमूर्ति गोखले ने कहा कि अगर एक फीसदी भी गुंजाइश है तो आपको समाधान के लिए मौका देना चाहिए। न्यायमूर्ति रवींद्रन ने अपने आदेश में कहा कि पीठ के सदस्यों में से एक की राय है कि विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी जानी चाहिए।

एक अन्य सदस्य की राय है कि आदेश पर रोक लगा दी जानी चाहिए और नोटिस जारी किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अदालत की परंपरा है कि जब एक सदस्य कहता है कि नोटिस जारी किया जाना चाहिए और दूसरा सदस्य कहता है कि नोटिस नहीं जारी किया जाना चाहिए तो नोटिस जारी किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘और हम नोटिस जारी करते हैं और आदेश पर रोक लगाते हैं। एक हफ्ते के लिए अंतरिम रोक लगाई जाती है। सभी पक्षों और अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। उन्हें अदालत में मौजूद रहना होगा।’ मामले की अगली सुनवाई की तारीख को 28 सितंबर को निर्धारित किया जाना इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण है कि लखनऊ में अयोध्या पीठ के तीन न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति डीवी शर्मा इसी माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

शीर्ष अदालत का आज का आदेश आने के पहले 45 मिनट तक दलीलें रखी गइ। फैसले को टालने संबंधी याचिका पर न्यायमूर्ति रवींद्रन और न्यायमूर्ति गोखले की अलग-अलग राय थी। शुरुआत में त्रिपाठी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर फैसले को नहीं टाला गया तो यह देश में गंभीर संकट पैदा कर सकता है।

उन्होंने कहा कि देश पहले ही जम्मू कश्मीर में संकट, देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ की स्थिति का सामना कर रहा है और आने वाले दिनों में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होने जा रहा है।

यह दलील न्यायमूर्ति रवींद्रन को संतुष्ट करने में नाकाम रही और उन्होंने पलटकर पूछा कि क्या फैसले को टालने का यह आधार है। पिछले 50 वर्षों से आप इसका समाधान नहीं कर सके हैं। कृपया आदेश (उच्च न्यायालय) को देखें। सैकड़ों अवसर आपको दिए गए।

हालाँकि धर्मदास की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद तथा सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर पेश हुए एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी ने कहा कि बिना किसी सफलता के हल निकालने के अनेक प्रयास किए गए।

दोनों पक्षों ने दावा किया कि यही समस्या है। उन्होंने कहा यह संभव नहीं है और यह उच्च न्यायालय के आदेश में दर्ज है। एक मौके पर प्रसाद ने कहा कि त्रिपाठी विवाद में गंभीर प्रतिभागी नहीं है और 90 दिनों की सुनवाई के दौरान उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने की जहमत तक नहीं उठाई। (भाषा)

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