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अरविंद घोष को छुड़ाया था देशबंधु ने

16 जून को चितरंजन दास की पुण्यतिथि पर

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नई दिल्ली (भाषा) , सोमवार, 15 जून 2009 (15:30 IST)
भारत की आजादी के संघर्ष में अलीपुर कांड का महत्व बहुत है क्योंकि इससे स्वराज की भावना को बढ़ावा मिला। अलीपुर बम कांड षड्यंत्र मुकदमे में मुख्य आरोपी अरविंद घोष का बचाव किया था देशबंधु चितरंजन दास ने।

इतिहासकार एसआर मेहरोत्रा के अनुसार स्वराज की माँग उठी क्योंकि घोष के मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश ने इस बात को स्वीकार किया कि आजादी के लिए लड़ाई लड़ना देशद्रोह नहीं है।

अलीपुर मुकदमा 126 दिनों तक चला और कई सबूत और गवाह पेश किए गए। स्वयं दास का समापन वक्तव्य नौ दिनों तक चला। उन्होंने भारी नुकसान सहकर भी घोष को बरी कराया।

प्रोफेसर मेहरोत्रा ने बताया मुकदमे का न्यायाधीश सीपी बीचक्राफ्ट कैंब्रिज विश्वविद्यालय में घोष का सहपाठी रह चुका था।

देशबंधु के नाम से मशहूर और वकालत में माहिर चितरंजन दास हमेशा धारा के विपरीत चले। पाँच नवंबर 1870 में दास का कलकत्ता में जन्म हुआ। उनके पिता भुवन मोहन दास प्रसिद्ध वकील और पत्रकार थे।

चितरंजन दास ने ब्रिटेन में पढ़ाई की। 1893 में उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की और भारत आ गए।

वर्ष 1917 में वे राष्ट्रीय राजनीति में आए। उन्होंने भवानीपुर में बंगाल प्रांतीय कांग्रेस की अध्यक्षता की। 1922 में वे कांग्रेस के बिहार में गया अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। 1890 से 1894 तक लंदन में रहे।

मेहरोत्रा ने बताया कि 1917 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने एनी बेसेंट को आगे किया। असहयोग आंदोलन में वे गाँधीजी के साथ थे लेकिन चौरीचौरा के दंगे के बाद उन्होंने अपना विचार बदल लिया।

दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर संवैधानिक उपायों से आजादी हासिल करने का प्रण किया। 1923 में उन्होंने मुस्लिमों के साथ समझौता करने का प्रयास किया और सेवा और बंगाल की काउंसिल में उनकी संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देने का वादा किया। इससे हिंदुओं में उनकी कड़ी आलोचना हुई।

चितरंजन दास ने आजादी हासिल करने में दूसरे तरीकों में विश्वास जताया। उन्होंने ब्रिटिशों से बाहर और भीतर लड़ने का मन बनाया। दास और नेहरू की स्वराज पार्टी ने बंगाल लेजिस्लेटिव असेंबली के चुनाव में बड़ी संख्या में सीटें जीतीं। गवर्नर ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

असेंबली में दास की पार्टी एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में रही। चितरंजन दास कलकत्ता के मेयर बने और सुभाषचंद्र बोस मुख्य कार्यकारी अधिकारी। प्रो मेहरोत्रा ने बताया सुभाष और सुहरावर्दी दास के दो विश्वास प्राप्त लेफ्टिनेंट थे।

बेलगाँव कांग्रेस अधिवेशन के समय दास की तबीयत बहुत खराब हो गई। सात जनवरी 1925 को व गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। बाद में 16 जून 1925 में दार्जिलिंग में उनका निधन हो गया।

दास के निधन पर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा चितरंजन दास ने हमारे लिए कोई सामाजिक एवं राजनीतिक योगदान नहीं दिया और न ही विरासत छोड़ी लेकिन अपने त्याग और बलिदान से उन्होंने हमारे भीतर स्वराज की जो भावना जाग्रत की वह काबिले तारीफ है।

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