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अरविन्द केजरीवाल इनसे सीखें सादगी...

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अन्ना आंदोलन की लहर पर सवार होकर दिल्ली के मुख्‍यमंत्री पद तक पहुंचे अरविन्द केजरीवाल आज उसी मीडिया के निशाने पर हैं। इससे पहले जहां उनकी सादगी की चर्चा होती थी तो अब उनको मिलने वाली सुविधाओं की चर्चा हो रही है। हालांकि इस बात की कतई आलोचना नहीं होनी चाहिए कि एक मुख्‍यमंत्री या मंत्री सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल करता है, लेकिन जब कथनी और करनी अलग-अलग हो जाए तो आलोचना होनी भी चाहिए।

केजरीवाल और उनके मंत्रियों के मामले में भी ऐसा है। सत्ता में आने से पहले उन्होंने दावे और वायदे किए थे कि वे न तो सरकारी बंग्ला लेंगे न ही सरकारी गाड़ियों का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन कमोबेश हो वही रहा है जो पहले के मुख्‍यमंत्री और मंत्री करते थे। ...जहां तक सादगी की बात तो है केजरीवाल और उनके मंत्री ऐसे नेताओं से सादगी सीख सकते हैं, जो वर्षों से बड़े पदों पर हैं, लेकिन उनकी सादगी की उतनी चर्चा नहीं होती।

बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी की सादगी से केजरीवाल सीख सकते हैं, जो अब भी मुख्यमंत्री निवास की बजाय कोलकाता के कालीघाट में अपने ट्राली वाले मकान में ही रहती हैं। ये दिल्ली की डेढ़ करोड़ की आबादी से कहीं ज्यादा बड़ी आबादी की नुमाइंदगी करती हैं। इतना ही नहीं ममता केन्द्र में भी कई बड़े मंत्री पदों पर रह चुकी हैं।

दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते वक्त मदन लाल खुराना ने उन्हें घर और गाड़ी की सुविधा देनी चाही तो उन्होंने इनकार कर दिया था। दिल्ली के ही आखिरी मुख्य कार्यकारी पार्षद कांग्रेस के जगप्रवेश चंद्र की सादगी पर दिल्ली के ही मीडिया ने कभी खबर नहीं बनाई जबकि दिल्ली विधानसभा के गठन से पहले तक दिल्ली के एक तरह से वे ही शासक थे। उनकी सादगी और ईमानदारी का लोहा धुर विरोध में खड़े भाजपा के बड़े नेता भी मानते थे।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्रमाणिक सरकार और गोवा के मुख्यमंत्रमनोहर परीकर की सादगी से भी केजरीवाल और टीम सीख सकते हैं। वामपंथी सांसद संसद सत्र के दौरान डीटीसी और मैट्रो की सवारी करते देखे जा सकते हैं, जबकि न तो उनके कहीं फोटो छपते हैं न ही उनकी चर्चा होती है। समाजवादी रवि रे, सुरेंद्र मोहन, जयपुर से सांसद रहे स्व. गिरधारी लाल भार्गव आदि ऐसे और भी कई नाम हैं, जिन्होंने सादगी की बड़ी मिसालें पेश की हैं।

किस तरह की सुविधाएं मिलती हैं मुख्यमंत्रियों को...आगे पढ़ें...


क्या-क्या मिलता है मुख्‍यमंत्रियों को : भारत में राज्यों के मुख्यमं‍त्रियों को विभिन्न वेतन और भत्ते दिए जाते हैं। इनमें प्रत‍ि माह मिलने वाला वेतन, निर्वाचन क्षेत्र का भत्ता, दैनिक भत्ता, टेलिफोन भत्ता, अर्दली भत्ता, चिकित्सा भत्ता, विधानसभा की बैठकों में भाग लेने पर और समितियों की बैठकों में भाग लेने पर भत्ता दिया जाता है।

इसके अलावा, रेलवे यात्रा के लिए कूपन, हवाई यात्रा की सुविधा मिलती है। इसके साथ ही सरकारी आवासों में अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं। सरकारी काम करने के लिए सहयोगी स्टाफ मिलता है। वाहन लेने के लिए कर्ज मिलता है। घर बनाने के लिए कर्ज मिलता है। राज्य की सभी निजी और सरकारी बसों में जाने की सुविधा भी दी जाती है। इसके अलावा पद से अलग होने के बाद मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों को पेंशन की भी पात्रता होती है।

मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त लोगों को मुफ्त सरकारी आवास सुविधा, वेतन भत्ते, सुरक्षा कानून सम्मत और उचित हैं। सुरक्षा का प्रबंध हमेशा रहना भी वाजिब है। रहने के लिए नियत सरकारी आवास होता है जिसमें वह अपनी मर्जी के अनुसार फेरबदल करवा सकता है। राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते उसे कुछेक संवैधानिक, प्रशासनिक अधिकार भी मिलते हैं और उसे कुछ ऐसे अधिकार भी मिलते हैं जिनका उपयोग वह अपने स्व-विवेक से करता है।

यह अधिकार राज्य के मुख्यमंत्रियों को मिलते हैं लेकिन जिन राज्यों या केन्द्र शासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं होता है, वहां के मुख्यमंत्रियों को भी वही सब अधिकार मिलते हैं जोकि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हासिल होते हैं।

...और दिल्ली में : चूंकि दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है इसलिए यहां के मुख्यमंत्री को वही अधिकार हासिल हैं, जो कि केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले राज्य को मिलते हैं। इन अधिकारों में नियत सरकारी आवास, सुरक्षा, वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं और यह दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों तथा विधायकों को भी हासिल करने की पात्रता है।

केजरीवाल के बंगले को लेकर क्यों विवाद हुआ...आगे पढ़ें..


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इसलिए हुई केजरीवाल की आलोचना : बंगले को लेकर यह विवाद इसलिए भी उठ खड़ा हुआ है क्योंकि केजरीवाल और उनके साथियों ने चुनाव से पहले कहा था कि वे साधारण लोगों की तरह रहेंगे और वे किसी भी तरह के वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं, लेकिन शायद उन्हें तब इस बात का अहसास नहीं था कि एक बाद बड़े संवैधानिक पद संभालने के लिए कई तरह की सुविधाएं ऐसी होती हैं जिनके बिना आपका गुजारा नहीं होता है।

आप सरकार के मं‍त्रियों और मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए वायदों और जमीनी वास्तविकता के बीच के अंतर को पाटने के लिए बड़ी कड़ी मशक्कत करनी होगी क्योंकि उनकी ऐसी सभी बातों के लिए आलोचना की जाएगी, जिन्हें केजरीवाल और उनके साथियों ने ना लेने की बात कही थी।

केजरीवाल ने पुलिस सुरक्षा लेने से बेशक मना कर दिया हो, लेकिन उनकी सुरक्षा काफी महंगी साबित हो रही है। दिल्‍ली पुलिस की मानें, तो केजरीवाल को किसी अन्‍य मुख्‍यमंत्री के मुकाबले दस गुना ज्‍यादा सुरक्षा देनी पड़ रही है।

दिल्‍ली पुलिस के मुताबिक यदि वे सुरक्षा लेते हैं, तो ऐसे में 8 से 10 सुरक्षाकर्मी काफी रहेंगे लेकिन केजरीवाल के सुरक्षा लेने से मना करने पर इस समय उन्‍हें करीब 100 सुरक्षाकर्मी कवर कर रहे हैं। ऐसी ही सुरक्षा उस समय भी रही थी, जब केजरीवाल मेट्रो से रामलीला मैदान शपथ लेने पहुंचे थे।

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