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गोण्डा जनपद में थी तुलसी की जन्मभूमि!

गोस्वामी तुलसीदास अविवाहित थे!

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हमें फॉलो करें गोण्डा जनपद तुलसी जन्मभूमि

अरविन्द शुक्ला

लखनऊ। , शुक्रवार, 8 अगस्त 2008 (16:18 IST)
संत, महापुरुषों एवं सिद्धों की यह परम्परा रही है कि वे लोग सदैव आत्म विज्ञापन से दूर रहे। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं लिखा।

श्रीराम चरितमानस के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदासजी भी उसी श्रृंखला के महाकवि हैं। श्रीराम चरितमानस जैसे विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य को इस महान संत ने समाज को प्रदान किया। ऐसे मानसकार तुलसी के संबंध में जानकारी प्राप्त करना बुद्धिजीवियों का नैतिक दायित्व है।

यह कहना है सनातन धर्म परिषद के अध्यक्ष डॉं. स्वामी भगवदाचार्यजी का। उनकी प्रबल धारणा है कि राजापुर (सूकरखेत) अयोध्या वर्तमान जनपद गोंडा गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि तथा रत्नावली देवापाटन तुलसीपुर के तुलसी की पत्नी थीं और मानसकार तुलसी अविवाहित थे तथा सोरो के तुलसी मानसकार तुलसी से भिन्न छप्पय, छन्दावली, कुण्डलियाँ कडखा आदि के रचयिता थे।

डॉं. स्वामी भगवदाचार्यजी ने अपने कथन को लेकर राम चरितमानस एवं तुलसी की अन्य रचनाओं से ही प्रमाण जुटाए हैं। डॉं. स्वामी भगवदाचार्यजी से हुई बातचीत पर आधारित है यह लेख।

तुलसी जन्मभूमि के संबंध में तीन प्रमुख स्थान चर्चित हैं- राजापुर (सूकरखेत) गोंडा, राजापुर (बांदा), सोरों (एटा)। 31 मई 1960 को दिल्ल
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विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय स्तर पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने सोरों (एटा) की समस्त सामग्री को अप्रामाणिक, तर्कहीन, निराधार तथा जाली सिद्ध कर दिया था। डॉ. नागेन्द्र के बार-बार आह्वान पर भी सोरों का कोई विद्वान इसका निराकरण करने के लिए आगे नहीं आया। सोरों सूकरखेत का अपभ्रंश नहीं हो सकता तथा सोरों पाकिस्तान में भी पाया जाता है।

6-7 जनवरी 97 को लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा राजापुर (बांदा) को तुलसी की कर्मभूमि तथा राजपुर (सूकरखेत) गोंडा को उनकी जन्मभूमि प्रमाणित किया गया।

बांदा के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार तुलसी यमुना पार कर राजापुर आए और साधना की तथा इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया कलकत्ता में वर्णित है कि तुलसी ने राजापुर बसाया। लगभग 50 वर्ष की प्रौढ़ावस्था में तुलसी राजापुर (बांदा) आए और वहीं रहकर साधना की, इसलिए इसे उनकी साधना या कर्मभूमि माना गया है।

राजापुर (सूकरखेत) गोंडा के संबंध में सबसे बड़ा प्रमाण अन्तः साक्ष्य के रूप में तुलसी की अवधी भाषा है। उनकी प्रारम्भिक रचना 'रामललानहछू' अवधी भाषा को जाती है। राजापुर की भाषा बुन्देली में एक भी रचना गोस्वामीजी ने नहीं की। तुलसी का आत्मकथ्य उनकी जन्मभूमि का सबसे प्रबल प्रमाण है। तुलसी ने कवितावली में लिखा है-

'तुलसी तिहारो घर जायउ है घर को' भगवान राम से तुलसी कहते हैं कि लंका के विभीषण और किष्किंधा के सुग्रीव जैसे सुदूरवर्ती लोगों को तो आपने अपनी भक्ति देकर निहाल कर दिया और मैं तो आपके घर का ही पैदा हुआ, आपके परम सन्निकट का आदमी हूँ, फिर मेरे उद्धार में इतना विलम्ब क्यों हो रहा है? अर्थात मैं आपके घर अयोध्या का जन्मा होने पर आपके द्वारा अवश्य तारने योग्य हूँ।'

अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा में सूकरखेत आता है। सरयू- घाघरा संगम पर स्थित सूकरखेत (पसका) है। यहीं गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्वामी नरहरिदासजी का आश्रम है। इन्हीं गुरु महाराज से तुलसी ने अपने अबोध वाल्यावस्था में रामकथा सुनी थी।

'मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन, तब अति रहो अचेत'॥
(राम चारितमानस दोहा-30)

नरहरि आश्रम से 5 किलोमीटर पश्चिमोत्तर कोण पर राजापुर गाँव में तुलसी की जन्मभूमि है, जहाँ रामबोला तुलसी ने श्रीमती हुलसी के पावन कोख से जन्म ग्रहण कर सूकरखेत को गौरवान्वित किया। तुलसी के पिता आत्माराम दुबे के नाम 9 एकड़ 4 डिस्मिल आत्माराम टेपरा (तुलसी वन) सदाकान्तजी आईएएस जिलाधिकारी द्वारा घोषित किया गया। गोस्वामीजी ने किसी भी अन्य नगर का उल्लेख न करके बहराइच का उल्लेख किया है-
'लही आँख कब आँधरे, बाँझ पूत कब पाय।
कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय॥
(दोहावली)

अयोध्या चित्रकूट किष्किंधा, रामेश्वरम को लगभग सभी जानते हैं, परन्तु बहराइच को पास का व्यक्ति ही भलीभाँति जान सकता है। तुलसी का ननिहाल दहौरा (दधिवल कुण्ड) जनपद बहराइच था। माँ हुलसी धनीर मिश्र की पुत्री थीं। बचपन में तुलसी बहराइच के मेले में जाया करते थे, जिस कारण उन्होंने बहराइच का विधिवत वर्णन किया है। तुलसी के शिष्य व मित्र मण्डली सब इसी के निकट के थे। पसका के बाबा बेणी माधवदास, नवाबगंज के अनीरायभटट तथा बाराबंकी के कवि होलराय तुलसी के मित्रों में से थे। बांदा की ओर का एक भी व्यक्ति तुलसी के निकट सम्पर्क में नहीं था।

'राजा मेरे राजाराम अवध सहर है'
गोस्वामीजी कहते हैं कि मेरे राजाधिराज प्रभु राम हैं तथा अयोध्या मेरा शहर है। सूकरखेत और अयोध्या का प्राचीनकाल से गहरा संबंध रहा है। अवध 'मानस' की अवतार भूमि तथा सूकरखेत मानसकार की जन्मभूमि सर्वविदित है।

'सूकरखेत अवधपुर धाम, जय तुलसी जय-जय, सियाराम।
सूकरखेत राजापुर गाँव, तुलसी जन्मे थे एहि ठाँव॥'

शांडिल्य गोत्रज स्वामी नरहरिदास रामकथा के व्यास थे। आत्माराम दुबे सरयूपारीण ब्राह्मण थे, जहाँ अब भी उनके वंशज रहते हैं तथा पितृपक्ष में पिण्डदान एवं श्राद्ध तर्पण भी उनके नाम पर करते हैं।

गुरु नरहरिदास गोस्वामी तुलसीदासजी को काशी में विद्याध्ययन के लिए शेष सनातनजी के पाठशाला में ले गए। वहाँ तुलसी ने 15 वर्षों तक विधिवत वेद- वेदान्त, व्याकरण, न्याय, दर्शन तथा धर्मशास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन किया। विद्याध्ययन के बाद वे संतों के संग में बराबर तीर्थाटन करते रहे। तदन्तर अपनी लेखनी के द्वारा समाज को आलोक प्रदान किया।

'सार-सार सब कठवा कहिगा, सूरा कही अनूठी ।
बचा-खुचा सब जोलहा कहिगा, और कही सब झूठी॥'
अर्थात सार-सार को तुलसी ने कहा, सुर ने अनूठी तथा शेष कबीर ने कही, और कवियों का कहना सब झूठ के बराबर ही है।

महाराज रघुराजसिंह ने राम रसिकावली (स.1931) में गोस्वामीजी के राजापुर में आकर बसने का उल्लेख किया है-
'राजापुर जमुना के तीरा। तहाँ बसे तुलसी मति धीरा॥'

बाबू शिवनंदन सहाय ने भी राजापुर को तुलसीदास का निवास स्थान स्वीकार किया है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने भी लिखा है 'राजापुर में तुलसी का कोई स्थान था और वही स्थान उनका जन्म स्थान था, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता।' एक बात और खटकती है कि विरक्त और माता-पिता से परित्यक्त तुलसी को अपनी जन्मभूमि जाकर कुटी बनाने की क्या आवश्यकता थी? यह तथ्य भी तुलसी की निम्नलिखित मान्यता के विपरीत ठहरता है-
'तुलसी वहाँ न जाइए जहाँ जनम को ठाँव ।
गुन अवगुन जानै नहीं, धरै तुलसिया नाव।।'

गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है कि हे प्रभु मैं तो आपके घर पैदा हुआ हूँ।
'राखे रीति अपनी जो होइ सोइ कीजै बलि तुलसी तिहारो घर जायो है घर को।'
इससे यह ध्वनित होता है कि तुलसीदास अवध क्षेत्र में रहने वाले थे। घर जायउ का अर्थ अयोध्या नहीं हो सकता, क्योंकि यदि अयोध्या में वे उत्पन्न होते तो कहीं न कहीं संकेत अवश्य करते। अयोध्या से 40 किमी दूर होने के कारण राजापुर गोंडा को तुलसी की जन्मभूमि होने का बल मिलता है।

सनातन धर्म परिषद ने 15 नवम्बर 92 को तुलसी जन्मभूमि राजापुर (सूकरखेत) गोंडा में आयोजित तुलसी मेला के अवसर पर इसे प्रामाणिक जन्मभूमि घोषित किया तथा राजापुर (बांदा) को उनकी कर्मभूमि स्वीकार किया।

आज विद्वानों का एक बड़ा वर्ग राजापुर जनपद गोंडा को तुलसीदास की जन्मभूमि मानने के पक्ष में है। 29 अक्टूबर 1994 को अयोध्या में सम्पन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने राजापुर (सूकरखेत) को ही तुलसी का जन्मस्थान माना। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र तथा विधानसभा के अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने भी राजापुर (सूकरखेत) गोंडा को तुलसी की प्रामाणिक जन्मभूमि स्वीकार किया है। 6 एवं 7 जनवरी 97 को लखनऊ विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय संगोष्ठी में में विद्वानों न राजापुर (सूकरखेत) गोंडा को तुलसी की जन्मभूमि तथा राजापुर (बांदा) को उनकी कर्मभूमि घोषित किया।

16 सूर 9 कालिदास तथा 10 नामधारी तुलसी हुए हैं, उसमें 4 तुलसी ऐसे हुए जिन्होंने रामकथा लिखी, परन्तु गोस्वामी तुलसीदास का व्यक्तिव इतना उभरा कि सब इसी में समा गए। प्रथम गोस्वामी तुलसीदास राजापुर (सूकरखेत) अयोध्या वर्तमान गोंडा जनपद जिन्होंने 12 ग्रंथ लिखे, दूसरे देवी पाटन तुलसीपुर के तुलसी जो जनपद बलरामपुर में स्थित है। इन्होंने लवकुश मानस, जानकी विजय, गंगा कथा लिखी तथा ये पयासी मिश्र थे, रत्नावली इनकी तीसरी पत्नी थी। तीसरे सोरो के जिन्होंने छप्पय, छन्दावली, कुण्डलिया तथा कडखा की रचना की, चौथे तुलसी हाथरस के हुए जिन्होंने घट रामायण की रचना की।

कुछ विद्वानों ने मानसकार तुलसी को जबरदस्ती जमभूमि में लाकर उनका विवाह भी रत्नावली से करा दिया। तुलसी अपने जीवन में बार-बार संकेत करते रहे कि मेरा विवाह नही हुआ था, लेकिन इस भ्रामक तथ्य को ऐसा प्रचारित किया गया कि तुलसी विवाहित थे और ऐसा मान लिया गया। गोस्वामीजी ने अपने साहित्य में उल्लेख किया है कि-
''काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ''
मेरे ब्याह न बरेखों आदि पंक्तियों में गोस्वामीजी स्वयं कहते हैं कि मेरा विवाह नहीं हुआ था। निराला जैसे कवि ने भी वीतराग तपस्वी मानसकार तुलसी को रत्नावली के साथ बिना विचार किए जोड़ दिया।

गोस्वामीजी के माता-पिता मर चुके थे। घर भी सरयू नदी से कट गया था। बहुत वर्षों के बाद लौटने पर तथा जिनका घर भी नहीं था, ऐसे दरिद्र तुलसी का विवाह किस व्यक्ति ने रत्नावली के साथ कर दिया। तुलसी इतने विषयासक्त हो गए कि पत्नी के वियोग में रात्रि में भरी नदी में कूद पड़े। वहाँ उन्हें मुर्दा मिल गया तथा मुर्दे पर चढ़कर तैर गए, साँप पकड़कर चढ़ गए तथा पीछे खिड़की से घर में कूद गए। समाजशास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन करने पर उक्त बातें कल्पित, तथ्यहीन तथा निराधार साबित होती हैं। मुर्दा पकड़कर तैरना, साँप पकड़कर चढ़ना आदि समस्त बातें मनगढ़ंत भी लगती हैं। साँप ने तुलसी को काटा भी नहीं जबकि इस समय तुलसी विषयी पुरुष के रूप में चरितार्थ किए गए हैं।

इस संबंध में डॉं. स्वामी भगवदाचार्यजी ही नहीं हिन्दी और तुलसी साहित्य के मर्मज्ञ, बहुत से विद्वान भी उक्त विचार की पुष्टि करते हुए इस बात को स्पष्ट और निभ्रान्त रूप से यह मानते हैं कि मानसकार तुलसी विवाहित नहीं थे। इस संबंध के मनीषी विचारक संतों के नाम इस प्रकार हैं स्वामी रामसुन्दर दास, रामायणी स्वामी, श्रीकांत शरणजी, स्वामी सीताराम शरणजी (लक्ष्मण किलाधीश), स्वामी गुरुचरण दासजी व्यास। तुलसी साहित्य विशेषज्ञ विद्वान डॉ. भागीरथ मिश्र, डॉ. सुनीता शास्त्री, डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित, डॉ. रमाशंकर तिवारी, डॉ. हरिहरनाथ द्विवेदी, डॉ. रामफेर त्रिपाठी, डॉ. कमला शंकर त्रिपाठी, डॉ. शिवनारायण शुक्ल आदि।

डॉ. महंत गंगादास श्री वैष्णो जबलपुर में अपने शोध में उल्लेख किया है कि द्विज बन्दन का एक कथन है कि जो 14 जुलाई 1985 को युगधर्म में छापा था, जिससे तुलसी से संबंधित समस्त तथ्य प्रकाश में आ जाते हैं।

द्विज बन्दनजी कथन तुलसीदास चारि भये हैं नर भाषा के।
चारों बरने रामचरित भगती रस छाके।
एक महारिषि आदि कवि द्विज बंदन भये शापवश।
मानसजुत बाहर रतन प्रकटे धारे शांत रस।
दूजे तुलसी तुलारामजी मिसिर पयासी।
देवी पाटन जन्मकुटी तुलसीपुर वासी।
तीसरी पत्नी रत्नावली कटु बचनहिं लागी।
रोवत चले विसारि भवन भये रसिक विरागी।
रामायन तिनहू रचे लवकुश मानस संत हित।
द्विज वंदन जानकी विजय गंगा कथा क्षेपक सुकृत।
तीजे तुलसी जन्म नाम शुचि सोरों वारे।
छप्पय छन्दावली कुण्डलियां कडखा चारें।
चौथे तुलसी संत हाथरस वारे भारी।
घट रामायण रचे सोहागिन सुरति बिहारी॥
द्विजवंदन तीनों भये श्रीमानस छाया हुए।
मानस अधिकारी भले नाम उपासक सब भए॥

द्विजवदन के इस कथन से यह भली-भाँति स्पष्ट हो जाता है कि देवीपाटन तुलसीपुर जनपद बलरामपुर के तुलसी जिनका बचपन में तुलाराम नाम था तथा जो पयासी मिश्र थे इनकी तीसरी पत्नी रत्नावली थी। गोस्वामी तुलसीदास अविवाहित थे। सोरो (एटा) के तुलसी छप्पय छन्दावली, कुण्डलियाँ तथा कडखा आदि के रचयिता थे मानसकार गोस्वामी तुलसीदास से भिन्न सोरो के तुलसी थे।

डॉं. स्वामी भगवदाचार्य के अनुसार यह सम्यक प्रकारेण सुनिश्चित हो जाता है कि राजापुर सूकरखेत अयोध्या वर्तमान जनपद गोंडा गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि तथा रत्नावली देवापाटन तुलसीपुर के तुलसी की पत्नी मानसकार अविवाहित थे तथा सोरो के तुलसी मानसकार तुलसी से भिन्न छप्पय छन्दावली, कुण्डलियाँ कडखा आदि के रचयिता थे।

डॉं. स्वामी भगवदाचार्य का कहना है कि समस्त तुलसी साहित्य प्रेमियों को इस भ्रामक तथ्य को अवगत कराते हुए यह भी कहना असंगत न होगा कि गीता प्रेस गोरखपुर एवं अन्य प्रकाशनों से अब विधिवत इस तथ्य का प्रचार प्रसार किया जाए। साथ ही शिक्षण संस्थाओं से अनुरोध है कि वे अपने पाठ्यक्रमों में इसे प्रकाशित करने तथा अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया की शुरुआत करें, ताकि हिन्दी साहित्य के इतिहास में नए अध्याय का सूत्रपात किया जा सके।

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