अयोध्या में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के मालिकाना हक पर हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद मुकदमा जीतने वाले पक्ष को भूखंड पर तत्काल कब्जा नहीं मिल सकेगा।
इसकी मुख्य वजह हाईकोर्ट के निर्णय से प्रभावित पक्ष के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए उपलब्ध विकल्प है। यही नहीं, हाईकोर्ट ही एक निश्चित समय के लिए अयोध्या में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश भी दे सकता है। ऐसा नहीं होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने पर न्यायालय ही हाईकोर्ट के फैसले के अमल पर अंतरिम रोक लगा सकता है।
लोगों की निगाहें कोर्ट के फैसले पर लगी हैं। एक स्थिति यह भी हो सकती है कि पीठ किसी भी पक्ष के दावों पर सहमत न हो। ऐसी स्थिति में विवादित भूमि सरकार में निहित मान ली जाएगी। फैसला लखनऊ पीठ के कोर्ट नंबर 21 में सुनाया जाएगा, जिसे किले में तब्दील कर दिया गया है। मुकदमे से जुड़े वकील ही कोर्ट में रहेंगे और उन्हें फैसला सुनाए जाने तक कोर्ट से बाहर नहीं आने दिया जाएगा। फैसले के बाद संबंधित पक्षों द्वारा जीत या हार के संकेत देने पर भी प्रतिबंध रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार के अनुसार इस प्रकरण में फैसला सुनाए जाने के बाद हाईकोर्ट खुद ही पीड़ित पक्ष को सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति देते हुए संविधान के अनुच्छेद 133 के तहत प्रमाण पत्र दे सकती है। यही नहीं, फैसला सुनाए जाने के बाद पीड़ित पक्ष के वकील के अनुरोध पर हाईकोर्ट विवादित स्थल पर एक निश्चित अवधि तक यथास्थिति बनाए रखने का भी आदेश दे सकता है ताकि इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सके।
कुमार का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का समय हाईकोर्ट के फैसले के विवरण पर निर्भर करेगा। यदि फैसला हजारों पृष्ठ का हुआ तो अपील तैयार करने में अधिक समय लग सकता है लेकिन उन्हें लगता है कि यह सारा काम एक सप्ताह में किया जा सकता है।
राजस्थान सरकार के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता सुशील कुमार जैन के अनुसार यह फैसला सुनाए जाने के बाद प्रभावित पक्ष के आग्रह पर हाईकोर्ट उसे अपील दायर करने की मोहलत दे सकता है। ऐसी स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 132 के तहत इसके लिए 60 दिन के भीतर अपील दायर की जा सकेगी। ऐसा नहीं हुआ तो प्रभावित पक्ष के पास संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने का विकल्प भी रहेगा। जैन के अनुसार इस विवाद में फैसला चाहे कुछ भी हो, लेकिन इतना तो निश्चित है कि प्रभावित पक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।