Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नरेन्द्र मोदी की गुहार, दिग्विजय का इनकार...

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों की हकीकत

हमें फॉलो करें नरेन्द्र मोदी की गुहार, दिग्विजय का इनकार...

मधु किश्वर

FILE
नरेन्द्र मोदी इस समय राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर सुर्खियों में हैं, लेकिन गुजरात दंगों को लेकर उन्हें हमेशा गालियां मिलती रही हैं, मिलना भी चाहिए क्योंकि दंगों में हजारों लोगों मौत किसी भी मुख्‍यमंत्री के लिए निहायत शर्मनाक बात है। ...लेकिन, कुछ ऐसी भी बातें हैं जिनका खुलासा भी उतना ही जरूरी है। दंगों के समय मोदी ने कांग्रेसी मुख्‍यमंत्रियों से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन क्या उन्हें मदद मिल पाई थी? आइए देखते हैं कुछ ऐसी ही जानकारियां....

गुजरात दंगों से संब‍ंधित मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गुजरात सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि यह आधुनिक जमाने की नीरो है। कुल मिलाकर यह विशेषण नरेन्द्र मोदी के लिए इस्तेमाल किया गया था। हालांकि मोदी के लिए और भी विशेषण इस्तेमाल किए जाते रहे हैं, लेकिन यह सबसे कम ‍‍निंदनीय लगता है।

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि अक्षमता के कारण या मिलीभगत होने के कारण या दोनों ही तरह की बातें होने के कारण गुजरात में पुलिस बहुत सारे मामलों में हिंसा पर नियंत्रण करने में असफल रही, जिसके परिणामस्वरूप तीन दिनों तक दंगा चलता रहा। यह दंगा 28 फरबरी, 2002 से शुरू हुआ था।

इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता है कि स्थिति का सामना करने में कुछ प्रशासक नाकारा साबित हुए और हिंसक भीड़ को दंगों के लिए उकसाने में बहुत सारे राजनीतिज्ञ भी शामिल थे। कुछ ने तो हत्यारी भीड़ का नेतृत्व भी किया था। क्यों नहीं होता हिन्दुओं की मौत का जिक्र... आगे पढ़ें...

लेकिन, ऐसे बहुत से उदाहरण भी हैं जिनमें पुलिस और सेना के जवानों ने मुस्लिमों के घरों और उनकी बस्तियों को बचाया जबकि ये हत्यारे लोगों की भी‍ड़ से घिर गई थीं। लेकिन मोदी को पानी पी पीकर कोसने वाले कभी इन बातों का जिक्र नहीं करते हैं और ठीक इसी तरह वे यह भी नहीं बताते हैं कि मुस्लिमों को बचाने के लिए जो गोलीबारी पुलिस या सैन्य बलों ने की उसमें कितने हिंदू लोग मारे गए या फिर मुस्लिमों की ओर से की गई जवाबी हिंसा में कितने हिंदुओं की मौत हुई।

webdunia
PR


संदिग्ध प्रत्यक्षदर्शियों को सामने लाकर मोदी के खिलाफ जो ‍अभियान चलाया गया उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बने विशेष जांच दल (एसआईटी) ने खारिज करते हुए झूठे और द्वेष भावना से प्रेरित बताया था। लेकिन, यह अभियान दब्बू मीडिया हाउसेज कांग्रेस पार्टी के सैनिकों की तरह काम करने वाले बुद्धिजीवियों की मदद से लगातार चलता है। दंगों के वक्त क्या कदम उठाए थे मोदी ने... पढ़ें अगले पेज पर...

यह पहले भी बताया जा चुका है कि जब मोदी ने सत्ता संभाली तो उन्हें मु्ख्यमंत्री बने केवल साढ़े तीन माह हुए थे। राज्य की पूरी मशीनरी कांग्रेस के पहले शासन कालों में बार-बार दंगों के कारण पूरी तरह से साम्प्रदायिक हो चुकी थी। इसलिए मोदी ने दंगों को रोकने के लिए जो कदम भी उठाए तो उनके प्रशासन, राजनीतिक सहयोगियों ने उन्हें असफल बना दिया या फिर इन लोगों की मदद से उपद्रव चलता रहा।

webdunia
PR


मोदी को सैनिक इकाइयों को विमान से मंगवाने और जमीन पर तैनात करने में भी 20 घंटे लगे थे और तब तक दंगों ने विकराल रूप धारण कर लिया था। अगर किसी मुख्यमंत्री ने खुद ही दंगे करवाए हों तो वह भी इतनी शीघ्रता से सेना तैनात नहीं करवाता।

ठीक इसी तरह से अगर किसी मुख्यमंत्री (जो यह चाहता हो कि वह एक समुदाय विशेष का पूरी तरह से खात्मा करवा दे) अपने पड़ोसी राज्यों से पुलिस फोर्स भेजने की गुहार नहीं लगाता। मोदी की गुहार, कांग्रेसी सरकारों का इनकार...पढ़ें अगले पेज पर...

गुजरात सरकार ने 27 फरवरी, 2002 को नई दिल्ली में भारत सरकार के गृह मंत्रालय को त्वरित फैक्स भेजा था कि कानून और व्यवस्था संबंधी ड्यूटीज को पूरा करने के लिए उसे अर्धसैनिक बलों की अतिरिक्त कंपनियां उपलब्ध कराई जाएं। यह फैक्स उस दिन भेजा गया था जिस दिन गोधरा ट्रेन हत्याकांड हुआ था।

webdunia
PR


गुजरात सरकार के गृह विभाग के अंडर सेक्रेट्री जेआर राजपूत के हस्ताक्षर सहित भेजा गया यह पत्र भारत सरकार को ही नहीं वरन मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव, महाराष्ट्र सरकार के मुख्‍य सचिव और राजस्थान के मुख्य सचिव को भेजा गया था। इन पत्रों में कहा गया था कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने के लिए प्रत्येक राज्य से दस-दस कंपनियों की जरूरत है। आखिर कितने दिन में मिला मोदी को दिग्गी का जवाब... पढ़ें अगले पेज पर....

webdunia
FILE
उल्लेखनीय है कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और मप्र में दिग्वजय सिंह, राजस्थान में अशोक गहलोत और महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे। इन तीनों ही मुख्यमंत्रियों ने गुजरात को दस-दस कंपनियां भेजने से इनकार कर दिया था।

इतना ही नहीं, गुजरात के गृह विभाग के तत्कालीन सचिव के. नित्यानंदम ने मध्य प्रदेश पुलिस के महानिदेशक को भी पत्र लिखा था। अन्य राज्य के पुलिस प्रमुखों को भी यही पत्र भेजा गया था। ये सभी पत्र 1 मार्च, 2002 को लिखे गए थे।

पर दिग्विजय सरकार की तत्परता की प्रशंसा करनी होगी कि उसने इस पत्र का जवाब देने में ही तेरह दिन लगा दिए और जवाब दिया कि राज्य सरकार पुलिस बल नहीं भेज सकती है। यह भी आश्चर्य का विषय है कि मप्र सरकार ने इस उत्तर को देते समय इसे 'गोपनीय' मार्क कर दिया था। आज दिग्विजयसिंह, मोदी के कटुतम आलोचक हैं और वर्ष 2002 के दंगों में उनकी संलिप्ता का गाना गाते नहीं थकते हैं, लेकिन क्या दंगा रोकने के गुजरात सरकार के प्रयासों में उन्होंने कोई मदद की थी? ...तब क्यों चुप रह गए थे दिग्गी राजा... पढ़ें अगले पेज पर...

webdunia
FILE
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में जब मोदी ने दिग्विजय से यही सवाल किया था तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। क्या ये पत्र यह नहीं बताते कि गुजरात के मुख्यमंत्री को दंगों को रोकने की जल्दी थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है कि वे आधुनिक नीरो हैं, जिन्होंने गुजरात में आग लगी होने के बावजूद कुछ नहीं किया। यह टिप्पणी कहां तक उचित समझी जा सकती है? इस मामले में एसआईटी के वकील आरएस जमुआर की टिप्पणी पर गौर करना उचित होगा।

इस रिपोर्ट को अहमदाबाद के एक कोर्ट में तीस्ता सीतलवाड़ और जकिया जाफरी चुनौती दे रही हैं। एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट का बचाव करते हुए उन्होंने कहा था- 'जकिया आरोपी नंबर एक (मोदी) से क्या उम्मीद कर रही थीं? क्या मोदी को अपने हाथों में एके-47 लेकर दंगाई भीड़ पर काबू पाने के लिए राज्य में घूमना चाहिए था।'

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi