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नरेन्द्र मोदी के कट्‍टर दुश्मन के विचार

हमें फॉलो करें नरेन्द्र मोदी के कट्‍टर दुश्मन के विचार

मधु किश्वर

नरेन्द्र मोदी की छवि एक कट्‍टर हिन्दूवादी नेता की है। हालांकि उनकी यह छवि उनके कटु आलोचकों ने ही गढ़ी है। दंगों का दंश झेल चुके जफर सरेशवाला भी किसी समय मोदी को अपना कट्‍टर दुश्मन मानते थे। लेकिन, समय के साथ उनके विचार भी बदल गए। आइए, देखते हैं 'जफर की कहानी जफर की ही जुबानी'....

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जफर सरेशवाला कहते हैं कि उनकी महेश भट्‍ट से बहुत अच्छी जान पहचान है और दोनों एक दूसरे को लम्बे समय से जानते हैं। वे कहते हैं- मैं वर्षों से जानता हूं, भट्‍ट साहब एक ईमानदार आदमी हैं। इसलिए मैंने भट्‍ट साहब से बात की और उनसे कहा कि नरेन्द्र मोदी साहिब इंग्लैंड आ रहे हैं। मेरी इच्छा है कि मैं उनसे मिलूं और बात करूं।

भट्‍ट साहब ने कहा कि निश्चित तौर पर आपको मिलना चाहिए। सारी समस्याएं बातचीत की मेज पर ही समाप्त की गई हैं। दुनिया में पहला और दूसरा विश्वयुद्ध हुआ, लेकिन अंत में सारी समस्याएं बातचीत की मेज पर ही हल की जा सकीं। क्या कहा जफर ने महेश भट्‍ट से... आगे पढ़ें...

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तब मैंने भट्‍ट साहब से कहा, लेकिन हम कैसे मोदी से मिल सकते हैं? उन्होंने जवाब दिया कि अगर आप उनसे समस्याओं का हल निकालने के उद्देश्य से मिलना चाहते हो तो मुझे सोचने दो कि मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं।

कुछ दिनों बाद भट्‍ट साहब ने फोन किया और बताया कि मेरे दोस्त रजत शर्मा मोदी के बहुत करीबी हैं। मैंने उनसे बात की है। रजत कहते हैं कि आप उन्हें एक ई-मेल भेज दें जिसमें लिखा गया हो कि आप क्यों मोदी से मिलना चाहते हैं।

मैंने एक ईमेल भेज दिया। मैं किसी भी बात के लिए शर्मिंदा नहीं था। मैंने सीधे शब्दों में लिखा, 'हां, मैं मोदी से लड़ा हूं, लेकिन अब मैं अनुभव करता हूं कि मेरे सारे विकल्प समाप्त हो गए हैं और मुझे महसूस हुआ है कि इससे कुछ भी नहीं निकलने वाला। इस सारी प्रक्रिया मैं हीरो बन जाऊंगा, लेकिन मैं एक हीरो बनना नहीं चाहता हूं। आखिर मुस्लिमों से क्या समस्या है मोदी को... आगे...

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जफर कहते हैं- मैं मोदी से मिलना चाहता हूं और उनसे पूछना चाहता हूं कि आपको मुस्लिमों से क्या समस्या है? उन्होंने मेरा वह ईमेल मोदी साहब को फारवर्ड कर दिया।

मुझे बताया गया कि इस पर मोदी बहुत उत्तेजित हुए और उन्होंने कहा कि जफर सरेशवाला ने मेरे खिलाफ बहुत गदर मचा रखी है। मेरे खिलाफ बहुत सारे प्रदर्शन किए हैं। ...लेकिन, मैं सोचता हूं कि उन्होंने मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जाना और पाया कि हम अच्छे लोग हैं। मैं पहले से ही कह चुका था कि मेरा कोई एजेंडा नहीं है। हम केवल उनसे मिलना चाहते हैं और 2002 के बारे में बात करना चाहते हैं। ...तब हीरो नहीं थे नरेन्द्र मोदी... आगे....

कृपया, इस बात का ध्यान रखें कि हम मोदी से तब मिले थे जब वे एक हीरो नहीं बने थे। तब मोदी सर्वाधिक ‍नफरत करने योग्य समझे जाते थे। उन्हें मिलोसेविच, हिटलर और पता नहीं क्या क्या कहा जाता था। आपको उस पृष्ठभूमि को समझना पड़ेगा। उनसे किसी तरह का अहसान नहीं मांगा गया था। पर अब मोदी साहब से मिलने वालों की एक लम्बी लाइन थी और वे उनकी प्रशंसा में जमीन-आसमान एक किए जा रहे थे।

इस तरह यह बैठक रजत शर्मा के जरिए तय हुई थी और उन्होंने बताया कि मोदी 17 अगस्त को लंदन आ रहे थे। तब मैंने रजत से कहा़ कि सर, आप भी उनके साथ क्यों नहीं आ जाते? उन्होंने मुझसे कहा कि तुम मुझे क्यों इस पचड़े में फंसाना चाहते हो? मैंने उनसे कहा कि अगर आप वहां होंगे तो यह हमारे लिए बहुत अच्छी बात होगी। इसलिए रजत शर्मा भी मोदी के साथ दिल्ली से लंदन पहुंच गए। क्या कहा था हमसे महेश भट्‍ट ने... आगे...

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मोदी से मिलने से पहले हमें महेश भट्‍ट का फोन मिला। उन्होंने अपने अनोखे अंदाज में कहा कि जफर भाई, आप मोदी से मिलने जा रहे हैं। अगर उनकी आंखों में आंखें डालकर यह नहीं कह पाते हैं कि ‍बिना न्याय के शांति नहीं हो सकती है, तब वहां ना जाएं।

मैंने कहा़ कि भट्‍ट साहब, वे मुख्‍यमंत्री हैं, वे पॉवर में हैं। मुझे अंदाजा नहीं है कि वे मुझे दो मिनट देंगे या पांच मिनट। वे यह भी कह सकते हैं कि आप अपनी मांगें यहां छोड़ दें और चले जाएं। उन्होंने कहा कि ठीक है, मैं प्रार्थना करूंगा कि आप यह सभी कुछ कह सकें। आप जाएं। इस तरह मैं, मेरा भाई और एक मुस्लिम विद्वान मौलाना ईसा मंसूरी ने साथ उनसे मिलने गया। (मोदी और इन लोगों की कैसे भेंट हुई थी यह आप पढ़ चुके हैं। आगे की कहानी जफर के ही शब्दों में सुनें) मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि मोदी लाइन पर हैं... आगे....

हमने मोदी का फोन नंबर लिया और सारा मामला उसी दिन वहीं खत्म हो गया। करीब दो महीने बाद मैंने लंदन से मोदी साहिब को उनके ऑफिस में फोन लगाया। उनके ऑफिस को अपना नाम और फोन नंबर दिया। तीन घंटे के बाद मुझे फोन मिला कि मोदी लाइन पर हैं। मैं विश्वास नहीं कर सका। मैंने कभी ऐसे मुख्यमंत्री के बारे में नहीं सुना था जो कि एक सामान्य आदमी की फोन कॉल्स का इतनी तत्परता से जवाब दे।

मोदी बोले, 'अरे, आपने मुझे याद करने में इतना समय लगा दिया। हम अगस्त में मिले थे और अब अक्टूबर का महीना है।' मैंने कहा कि मैं तो यह पता लगाने की कोशिश कर रहा था कि क्या मोदी साहिब मेरी कॉल का जवाब देंगे और क्या मुझसे बात करेंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि यह बताओ कि कब वापस आ रहे हो? मैंने जवाब दिया कि मोदी साहब, यहां एक समस्या है। चूंकि हमने आपकी पहले जो बैंड बजाई थी, आपकी पुलिस मुझे पहुंचते ही गिरफ्‍तार करने के लिए तैयार बैठी होगी। उन्होंने मुझे न सिर्फ सुरक्षा दी, बल्कि...आगे....

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मैंने कहा- अगर मैं जेल में बंद हो गया तो क्या आप मुझे बचाने आएंगे? उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे बताओ कि कब वापस आ रहे हो। मैंने उन्हें तारीख बताई और उन्होंने चार महीने बाद नवंबर में भारत में लौटने पर सुरक्षित वापसी के पूरे इंतजाम कर दिए। उन्होंने किसी को मुंबई भेजा कि वे मुझे सुरक्षापूर्वक अहमदाबाद लाएं।

जैसे ही मोदीजी को पता लगा कि मैं वापस लौट आया हूं, उन्होंने अपने सेक्रेटरी से मुझे कॉल करने को कहा और जानना चाहा कि मैं कब उनसे मिलना चाहता हूं। जब मैं उनसे मिलने गया तो उन्होंने कहा कि विशेष समस्याओं के बारे में मुझे बताएं। मुस्लिम भले ही हमें वोट न दें, लेकिन उनका काम सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। ये मोदी के शब्द थे। मुझे उनकी अनावश्यक प्रशंसा की क्या जरूरत है?

मुझे अपने लिए मोदी से कुछ नहीं चाहिए। मैंने हिम्मत नगर में एक मुस्लिम डॉक्टर से संबंधित छोटी सी समस्या बताई। जो उस क्षेत्र का सरपंच था उसका नाम भी मोदी को पता था। सारी बातें उन्हें मुंहजबानी याद थीं। वोट मत दो, लेकिन काम के लिए तो आओ...आगे

उन्होंने कहा कि वहां फलां-फलां आदमी है, अपने डॉक्टर दोस्त से कहो कि वह रमनभाई से मिल ले। जैसी बात कही गई थी, उसने वैसा ही किया। मोदी ने जिस व्यक्ति को भेजा था उसने तुरंत ही काम कर दिया। बाद में रमनभाई ने भी डॉक्टर से कहा कि आपको हमें वोट देने की जरूरत नहीं है, लेकिन कम से कम अपने काम के लिए तो हमारे पास आइए। आपकी जो भी वास्तविक जरूरतें हों। आखिर हम भी आपके चुने हुए प्रतिनिधि हैं।

इससे पहले मैंने किसी भी मुख्यमंत्री को इस तरह से नागरिकों से बात करते नहीं देखा। मुस्लिमों को विशेष तौर पर घृणा के साथ देखा जाता है। हम सामान्य आदमी हैं। मैं मुस्लिम समुदाय का टाटा, बिड़ला नहीं हूं। मुझ पर यह आरोप ल गाया गया कि मैं मोदी से मिला और मैंने अपनी क्षतिपूर्ति का मामला सुलझा लिया। लेकिन, ईश्वर और रजत शर्मा साक्षी हैं कि 2002 के दंगों, इनसे मुस्लिमों पर क्या असर पड़ा, मोदी का एक मुख्यमंत्री के तौर पर आचरण, इनके अलावा और किसी मुद्‍दे पर बातचीत नहीं की गई।

मुझे पता है कि वे एक मुख्यमंत्री हैं और मैंने उतना सम्मान दिया जितना कि एक मुख्‍यमंत्री का किया जाता है। लेकिन मौलाना ईसा मंसूरी मोदी साहिब से बड़े हैं इसलिए उन्होंने बहु‍त कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने उनके दिमाग में जो भी बातें थी, वे सब कह डालीं और न्याय पर एक बड़ा भाषण भी दे डाला।

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