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नहीं रुकी जामा मस्जिद की जिंदगी...

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नई दिल्ली , शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010 (00:35 IST)
वक्त हर जख्म को भर देता है, यह बात चाहे जितनी पुरानी हो, लेकिन देश के ऐतिहासिक जामा मस्जिद इलाके में अयोध्या मामले के फैसले से पहले और बाद में तो यही दिखाई दिया।

अयोध्या मामले के फैसले के दरम्यान जब पूरे देश की निगाहें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर लगीं थीं तब भी जामा मस्जिद इलाके में जिंदगी अपनी पूरी रौ में चल रही थी। इलाके की कुछ दुकानें बंद जरूर थीं, लेकिन रोज की तरह रिक्शे, ठेलेवाले और अन्य दुकानदार बिना किसी डर और उत्सुकता के अपने रोजमर्रा के कामों में लगे हुए थे।

हालाँकि पुलिस और प्रशासन की तरफ से यहाँ भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, लेकिन लोगों को शायद इसकी कोई खास जरूरत नहीं थी। रोजाना की तरह लोग मस्जिद के प्रांगण में बैठकर चैन की चंद घड़ियाँ बिता रहे थे। विदेशी पर्यटक भी इक्का-दुक्का टहलते हुए नजर आ रहे थे।

जामा मस्जिद इलाके में कपड़े की छोटी-मोटी दुकान लगाने वाले मोहम्मद अखलाक फैसले से पहले इस बारे में पूछे जाने पर कहते हैं कि साहब साठ साल में जिंदगी बहुत बदल गई है। अब फैसला चाहे जिसके पक्ष में आए क्या फर्क पड़ता है। आराम से काम-धंधा कर पेट पाल रहे हैं और परिवार भी खुश है। अगर किसी तरह के बहकावे में आएँगे तो हमारी जिंदगी साल दो साल पीछे चली जाएगी।

नमाज से ठीक पहले आखिरकार फैसले की घड़ी भी आ गई और उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया। फैसला राम जन्मभूमि न्यास, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े तीनों के ही पक्ष में आया, लेकिन ज्यादातर लोगों ने बस दो चार टिप्पणियाँ करके एक तरह से फैसले को अंगीकार ही कर लिया। चेहरे पर न कोई शिकन, न गुस्सा और न ही किसी तरह का क्षोभ। मस्जिद के अंदर मीडिया वालों और लोगों के बीच फैसले को लेकर उतनी उत्सुकता नहीं थी, जितनी उत्सुकता इस बात को लेकर थी शाही इमाम इस बारे में क्या बोलते हैं।

शाही इमाम भी नमाज के बाद मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने वही बात कही जिसकी पूर्व आशा थी कि सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा अभी भी हमारे लिए खुला हुआ है।

जामा मस्जिद से निकलते ही मेट्रो के रास्ते में राजेंद्र की छोटी-सी चाय की दुकान है। अयोध्या फैसले के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि ज्यादा तो नहीं मालूम बस राह चलते लोगों से पता चला कि फैसला ठीकठाक है। अब वहाँ मंदिर बने या मस्जिद हमें क्या करना है। अयोध्या, काशी और हरिद्वार के मंदिरों में दर्शन के लिए तो वही जाएँगे जिनके पास पैसे हैं। हम तो बस पेट पाल लें यही बहुत है। (भाषा)

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