महिला आरक्षण से बदल सकती है तस्वीर
नई दिल्ली , रविवार, 13 जुलाई 2014 (14:11 IST)
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र की वरिष्ठ अधिकारी लक्ष्मी पुरी का मानना है कि संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण एक ‘तस्वीर बदलने वाला’ साबित हो सकता है, क्योंकि यह कदम न सिर्फ पितृसत्तात्मक सोच को बदलेगा बल्कि इससे महिला-समर्थक कानूनों को भी बढ़ावा मिलेगा।
यूएन विमैन की उप कार्यकारी निदेशक ने कहा कि कन्या शिशु के बारे में धारणा बदलेगी। जब आप संसद में महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और वह भी बड़ी संख्या में, तो आप ज्यादा से ज्यादा लोगों के प्रतिनिधि हो जाते हैं।उन्होंने कहा कि आप महिलाओं को बोझ समझने वाली पूरी सोच को ही बदल देते हैं, जैसा कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि उनके जन्म के समय ऐसी टिप्पणियां की गई थीं।उन्होंने कहा कि संसद में ज्यादा महिलाओं की मौजूदगी से ‘पितृसत्तात्मक सोच’ को बदलने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि कई ऐसे देशों का अनुभव सकारात्मक रहा है, जहां महिलाओं को आरक्षण प्राप्त है। पुरी संयुक्त राष्ट्र की सहायक महासचिव भी हैं।बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि संसद में 33 प्रतिशत महिलाएं हैं तो वे महिलाओं के हितों और जरूरतों को आगे बढ़ाने के लिए तेजी से पार्टी लाइन से आगे बढ़ेंगी।भारतीय विदेश सेवा की पूर्व अधिकारी पुरी ने साथ ही यह भी कहा कि 33 प्रतिशत बस एक शुरुआत है और असल लक्ष्य बराबरी होना चाहिए।भारत में महिलाओं की स्थिति पर पुरी ने कहा कि शिक्षा व स्थानीय सरकार के स्तर पर महिलाओं की भागीदारी जैसे क्षेत्रों में कुछ प्रगति हुई है, फिर भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें चुनौतियों से निपटना अभी शेष है।पुरी के अनुसार यौन-हिंसा समेत निर्मम और क्रूर हिंसा की घटनाएं वे प्रमुख मुद्दे हैं, जो वैश्विक संज्ञान में हैं तथा 16 दिसंबर 2012 को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना से सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों में भी रोष फैल गया।उन्होंने कहा कि यहां मौजूद इस गुस्से और (बरती गई) क्रूरता ने हमें एक बार फिर यह सोचने और आत्मनिरीक्षण करने पर मजबूर किया कि यह क्यों हो रहा है? सरकार जिस शून्य सहिष्णुता वाले बिंदु की बात कर रही है, हम उस तक कैसे पहुंच सकते हैं? उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि महिला अधिकारों और समानता के मूल्यों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इलाकों को सुरक्षित बनाने के दूसरे उपायों के तहत उन्होंने पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, गश्त, सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन और शौचालयों जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि डर पैदा करने के लिए दोषियों को सजा मिलना और पीड़ितों की पहुंच में न्याय का होना जरूरी है। (भाषा)