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लालकिले की प्राचीर से मैं जसदेवसिंह...

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हमें फॉलो करें जसदेवसिंह कमेंट्री लालकिले
नई दिल्ली (भाषा) , गुरुवार, 9 अगस्त 2007 (13:31 IST)
करीब चार दशक पहले आजादी के महासमर के मूक गवाह लालकिले के शिखर से 15 अगस्त को एक आवाज गूँजी...' लालकिले की प्राचीर से मैं जसदेवसिंह...। तब से लेकआज तक इस पुरकशिश आवाज ने अपने करिश्मे से लोगों को अभिभूत कर रखा है। यहाँ तक कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी उनसे कहा था -'आप तो दिलों की धड़कन रोक देते हैं।'

कमेंट्री करते समय काफी डर लगता है: देश स्वतंत्रता की हीरक जयंती मनाने जा रहा है। ऐसे वक्त में राजपथ से करीब 40 गणतंत्र दिवस परेड और लगभग इतने ही स्वतंत्रता दिवस पर्व की लालकिले की प्राचीर से कमेंट्री कर चुके जसदेवसिंह ने एक विशेष मुलाकात में बताया कि राष्ट्रीय पर्व की कमेंट्री करते समय काफी डर लगता है, क्योंकि इस अवसर पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री सहित तमाम बड़ी हस्तियाँ आपको सुन रही होती हैं। आप उसी अवसर की कमेंट्री कर रहे होते हैं, जहां वे मौजूद हैं।

उर्दू के शे'रों का इस्तेमाल : यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रीय पर्व की कमेंट्री में एकरूपता नहीं आ जाती? सिंह ने कहा नहीं, अगर कमेंटेटर सजग और सतर्क रहेगा तो ऐसा नहीं हो सकता। मैं लिखकर कमेंट्री नहीं करता। आप हर साल फोटो देखते हैं। जिस तरह फोटोग्राफर अलग-अलग कोण से फोटो लेता है, उसी तरह कमेंटेटर का दृष्टिकोण भी भिन्न होता है। जसदेवसिंह ने बताया हाँ मैं कुछ बिंदु अवश्य लिखकर ले जाता हूँ। साथ ही रोचकता के लिए उर्दू के शे'रों का इस्तेमाल करता हूँ। शे'रों की पुनरावृत्ति से बचने के लिए उन्हें लिखकर रखता हूँ। राष्ट्रीय पर्व के प्रति लोगों के उत्साह में कमी का जिक्र करने पर जसदेवसिंह ने साफतौर पर कहा कि आप राजपथ और लालकिले में एकत्र होने वाली भीड़ को देखकर ऐसा नहीं कह सकते, बल्कि टीवी के आने के बाद राष्ट्रीय पर्व अधिक लोगों तक पहुँच गए हैं।

... ताकि देशवासी गर्व महसूस करें : दो अलग-अलग माध्यमों रेडियो और टीवी पर 15 अगस्त और 26 जनवरी की कमेंट्री कर चुके जसदेवसिंह ने बताया कि टीवी में जो नहीं दिखाई दे रहा है, उसे बयान करना होता है, जबकि रेडियो में शब्दों के जाल में बुनकर चित्र आपके सामने पेश करना होता है। साथ ही यह भी याद रखना होता है कि आपकी कमेंट्री सुनकर देश के नागरिक स्वयं पर गर्व का अनुभव करें।

इंदिरा गाँधी से मुलाकात : दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से जुड़ा एक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया मैं इंदिरा गाँधी से मिलना चाहता था, लेकिन मुझे रोक दिया गया। इंदिरा गाँधी को जब पता चला तो वे न सिर्फ मुझसे मिलीं, बल्कि कहा मैं और मेरे पिता आपके बहुत बड़े प्रशंसक हैं। उस मुलाकात में इंदिरा गाँधी ने कहा -'आप तो दिलों की धड़कनें रोक देते हैं।

ताजमहल में बिताए चार-पाँच घंटे : बुश और मुशर्रफ के भारत दौरे की कमेंट्री कर चुके जसदेवसिंह ने बताया कि कमेंट्री के दौरान काफी मेहनत करना होती है। आगरा से मुशर्रफ-वाजपेयी शिखर वार्ता की कमेंट्री को याद करते हुए उन्होंने बताया मैं वहाँ एक दिन पहले पहुँच गया और ताजमहल में चार-पाँच घंटे बिताकर उसके बारे में काफी जानकारी एकत्र की, ताकि कमेंट्री में जान आ सके। इस कमेंट्री का पाकिस्तान टीवी ने यथावत प्रसारण किया था।

आम जनता के अधिक करीब पहुँच सकूँ : जसदेवसिंह अपने प्रेरणास्रोत अंग्रेजी कमेंटेटर मेल्विल डिमेलो के इस वाक्य को सही मानते हैं कि मैं ऐसे शब्दों के प्रयोग पर विश्वास करता हूँ, जिससे आम जनता के अधिक करीब पहुँच सकूँ। 'पद्मश्री' और 'ओलिम्पिक ऑर्डर' से सम्मानित जसदेवसिंह का मानना है कि जन्माष्टमी, जयपुर से ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के उर्स और ननकाना साहिब के जलसे की कमेंट्री के दौरान वे लोगों के सामने रेडियो के माध्यम से चित्र खींचने में कामयाब रहे हैं।

भारतीय होने पर गर्व का अनुभव हुआ : कमेंट्री के स्वर्णिम पलों को याद करते हुए जसदेवसिंह ने बताया कि 1975 में हॉकी टीम की कुआलालंपुर में विश्व कप की जीत, राकेश शर्मा का चंद्र अभियान और पीटी उषा का ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीतने के तीन ऐसे अवसर आए, जब कमेंट्री करते हुए मुझे भारतीय होने पर गर्व का अनुभव हुआ।

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