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विवादित स्थल राम जन्मभूमि

हाईकोर्ट का फैसला, तीन हिस्सों में बाँटी जाए भूमि

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लखनअरविन्शुक्ला

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उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा अयोध्या मामले पर विशेष पीठ के तीन जजों ने बहुमत से निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि विवादित स्थल भगवान राम की जन्मभूमि है और उसे हिन्दुओं को दे दिया जाए। वहाँ से रामलला की मूर्तियों को नहीं हटाया जाएगा।

अदालत ने यह भी पाया कि चूँकि कुछ हिस्सों पर जिसमें सीता रसोई और राम चबूतरा है, निर्मोही अखाडे के कब्जे में रहा है, इसलिए यह हिस्सा निर्मोही अखाड़े के पास ही रहेगा।

अदालत के दो जजों ने फैसला दिया है कि इस भूमि के कुछ हिस्सों में मुसलमान भी प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए जमीन का एक तिहाई हिस्सा उन्हें भी दे दिया जाए। तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने बहुमत से यह व्यवस्था दी कि विवादित स्थान पर तीन महीने के लिए यथास्थिति बहाल रखी जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति खान और अग्रवाल ने कहा कि विवादित स्थल वाली 2.7 एकड़ भूमि को तीन समान भागों में बाँटा जाए और उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को दिया जाए।

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हालाँकि तीसरे न्यायाधीश धरमवीर शर्मा ने व्यवस्था दी कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है और मुगल बादशाह बाबर द्वारा बनवाई गई विवादित इमारत इस्लामी कानून के खिलाफ थी और इस्लामी मूल्यों के अनुरूप नहीं थी।

उल्लेखनीय है कि नियमित वाद संख्या 12/1961 ओएस 4/1989 उत्तरप्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से 18 दिसंबर 1961 को जिला अदालत फैजाबाद में दायर कर राहत माँगी गई थी कि वादपत्र के साथ नत्थी किए गए नक्शे में एबीसीडी अक्षरों से दिखाई गई सम्पत्ति को मस्जिद घोषित कर दिया जाए तथा उस स्थान पर कब्जा मुसलमानों को दिलाया जाए एवं वहाँ पर जो विराजमान मूर्तियाँ हों उनको हटाया जाए। अदालत ने आखिरकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का यह वाद दो-एक के बहुमत से खारिज कर दिया।

इस मामले में अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री हैं और इस समिति के संरक्षक जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद हैं।

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