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वेतनवृद्धि के मामले में भारतीय पिछड़े

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नई दिल्ली , शुक्रवार, 23 नवंबर 2007 (12:16 IST)
पहले कभी भारत के एक्जीक्यूटिव्स वेतनवृद्धि के मामले में अव्वल हुआ करते थे, लेकिन अब श्रीलंका हमसे आगे है।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अब हमारा रुतबा नहीं है। कंपनियों का वेतन ऐसा नहीं है कि कर्मचारियों को आकर्षित करे, उन्हें प्रेरित करे और उन्हें कंपनियों में रोक सके।

एचआर फर्म हैविए एसोसिएट्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार श्रीलंका ने भारत को औसत वेतनवृद्धि में पछाड़ दिया है। भारत में औसत वेतनवृद्धि 14.8 फीसद की रही, जबकि श्रीलंका में 15.3 फीसदी की रही।

इस सर्वे में कहा गया है बिजली के बढ़ते दाम, देश में संघर्ष और बढ़ती महँगाई के बाद भी श्रीलंका में पगार तेजी से बढ़ी, जबकि हमारे यहाँ नहीं।

पिछले साल भारत में वेतनवृद्धि 14.4 फीसद की थी। वियतनाम में वेतनवृद्धि 10.3 प्रश रही और इस लिहाज से यह तीसरे स्थान पर रहा। चीन में 8.6 और फिलीपींस में 8.2 प्रश बढ़ोतरी रही।

कनिष्ठ प्रबंधन, सुपरवाइजर और प्रोफेशनल्स की पगार में औसतन 16 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई साथ ही अगले साल इसमें अधिकतम 15.6 प्रश का उछाल होने के आसार हैं।

एक चौथाई कंपनियों का कहना था कि उन्होंने इस साल कर्मचारियों को फिक्स्ड बोनस दिया। स्टॉक ऑप्शन्स कर्मचारियों के लिए दीर्घावधि इंसेंटिव देने का सबसे पसंदीदा तरीका रहा।

सर्वेक्षण का कहना है कि अभी भी कुछ स्थानों पर वेतन आकर्षक नहीं है। न ही यह कर्मचारियों को प्रोत्साहित करता है और न ही उन्हें इसके दम पर रोका जा सकता है।

हैविट के प्रमुख सूरी का कहना है कि अधिकाधिक अवसरों के चलते कंपनियाँ या संगठन कर्मचारियों को रोकने के लिए वेतनवृद्धि को एकमात्र उपाय मानता है।

(नईदुनिया)

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