बिहार में आपातकाल के पीड़ितों को सम्मानित करने की योजना बनाई जा रही है, लेकिन देश की आजादी की लड़ाई में शहीद हुए अमर योद्धाओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐसे कई नाम हैं, जिन पर गुमनामी की धूल जम चुकी है, लेकिन उनके नाम पर पत्थर की एक पट्टिका भी दिखाई नहीं देती।
बिहार में कई स्वतंत्रता सेनानियों को आज भी यह मलाल है कि वतन की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों का तो कोई नामलेवा नहीं है, जबकि आपातकाल के पीड़ितों को सम्मानित करने के लिए जोर-शोर से आवाजें उठाई जा रही हैं। और तो और बिहार में सरकारी स्तर पर इन पीड़ितों को सम्मानित करने के लिए एक समिति भी गठित कर दी गई है।
बिहार राज्य स्वतंत्रता सेनानी संगठन के महासचिव त्रिपुरारी प्रसाद ने बताया कि पटना के वीरचन्द्र पटेल पथ पर स्थित मिलर स्कूल का नाम स्वतंत्रता सेनानी देवीपद चौधरी के नाम पर रखा गया है, लेकिन सभी प्रकार के आयोजनों में आज भी जो निमंत्रण पत्र छपवाया जाता है, उस पर मिलर हाईस्कूल मैदान नाम छपा रहता है।
वीरचन्द्र पटेल पथ पर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के कार्यालय स्थित हैं और समय-समय पर इसी मैदान में राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
त्रिपुरारी ने बताया कि देवीपद चौधरी उन सात लोगों में थे, जिन्हें वर्तमान विधानसभा के सामने गोली मारकर शहीद कर दिया गया था, लेकिन आज की नौजवान पीढ़ी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उन्हें इसकी जानकारी देने की कोई गंभीर कोशिश की जाती है।
त्रिपुरारी ने बताया कि इस सिलसिले में उन्होंने राज्य सरकार को पत्र भी लिखा है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। पटना की वीआईपी सड़क 'बेली रोड' को अभी भी लोग इसी नाम से जानते हैं। बहुत कम लोगों को मालूम है कि इस सड़क का नाम 'जवाहरलाल नेहरु मार्ग' है, क्योंकि सरकारी स्तर पर कभी इस मार्ग के बारे में प्रचार नहीं किया गया।
स्वतंत्रता सेनानियों ने कहा कि बिहार में शहीदों की कोई कमी नहीं है। वर्ष 1930 के आंदोलन और गोलीकांड की अगर फेहरिस्त देखी जाए तो शहीद होने वालों की संख्या एक-दो नहीं, बल्कि अनगिनत है।
1930 के शिवहर गोलीकांड के भगवत राउत, भूपनारायण सिंह, श्यामबिहारी प्रसाद, मोतीराम तिवारी, सूरज हरिजन, श्यामनन्दनसिंह, अनिरुद्धसिंह को कौन नहीं जानता। इसी तरह बनजरिया गोलीकांड के नकछेदी कोयरी, भिखारी राम तथा झालदा गोलीकांड के महतो बंधुओं में सहदेव, गणेश, मोहन, शीतल के नाम इतिहास की किताबों में भले ही मिल जाएँ, वैसे तो इनका नामलेवा कोई नहीं।
त्रिपुरारी ने भारी मन से कहा कि यह कोई नहीं जानता कि बेगूसराय गोलीकांड के सिंह बंधुओं, चन्द्रशेखर प्रसाद, बनारसी प्रसाद, रामचन्द्र छट्रठू तथा तारापुर गोलीकांड के चंडी महतो, शीतल, सुकेल, सोनार, संत पासी, झौरी झा, विश्वनाथसिंह, सिंहेश्वर, राजहंस, बदरा मंडल, बसंत भानू, रामेश्वर मंडल, गैली मंडल, असना मंडल और महिपालसिंह जैसे शहीदों की समाधि कहाँ हैं।
त्रिपुरारी प्रसाद ने कहा कि जो शहीद हो गए उनके परिजनों को पेंशन दे देना ही काफी नहीं है, जिन्होंने देश की आजादी के रास्ते में अपनी जान गँवा दी उनकी शहादत की याद में भी कुछ होना चाहिए।
राज्य के सारे स्कूलों, सड़कों, सरकारी भवनों और बड़े-बड़े मैदानों का नाम इन शहीदों के नाम पर रख देना चाहिए और बड़े-बड़े बोर्डों पर उनके नाम अंकित किए जाएँ, ताकि लोग आजादी की अहमियत समझ सकें।