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श्रद्धा और विश्वास का केन्द्र रामसेतु

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हमें फॉलो करें रामसेतु श्रद्धा ‍विश्वास राम रामायण
-जगदीश दुर्गेश जोश
श्रद्धा और विश्वास के आधार पर ही धर्म मनुष्य के हृदय में विद्यमान रहता है। किसी भी धर्म का अनुयायी, उसके मन-मस्तिष्क में इन्हीं श्रद्धा-भावनाओं और विश्वास के आधार पर अपने धर्म को स्वीकार करता है और उसका अनुसरण करता है। वह इन्हीं के आधार पर जीता है और आवश्यकता होने पर अपने जीवन का समर्पण तक कर देता है। 'भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।' ये श्रद्धा और विश्वास ही हैं, जो मनुष्य मात्र के हृदय में धर्मनिष्ठा बनाए रखते हैं।

वर्तमान में भारत सरकार द्वारा 'सेतु समुद्रम' योजना के माध्यम से करोड़ों भारतीयों की इसी श्रद्धा भावना और विश्वास पर प्रहार किया गया है। यह केवल हिन्दुओं के विश्वास पर किया गया प्रहार ही नहीं है, बल्कि इसे भारत में रहने वाले समस्त हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध आदि सभी के हृदय पर किया गया प्रहार मानना ही उचित है। आज एक पर प्रहार है तो कल दूसरे को भी निशाना बनाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में वे इसका क्या उत्तर देंगे? सभी को मिलकर धर्म भावना पर हो रहे इस प्रहार का उत्तर देना चाहिए।

केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा प्रस्तुत करते हुए लिखा था कि राम-रावण युद्ध हुआ ही नहीं और न ही सीता का हरण ही हुआ। राम कभी लंका भी नहीं गए। इस प्रकार रामसेतु की अवधारणा को पूरी तरह बेबुनियाद बताया है।

केन्द्र का कहना है कि इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि साढ़े छह हजार वर्ष पहले भगवान राम ने यह पुल बनवाया था। इसी प्रकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर रामायण के चरित्रों के अस्तित्व से इनकार ‍किया है। इस प्रकार इस विभाग ने राम और रामायण पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

हालाँकि सरकार ने भारी विरोध के चलते इस हलफनामे को वापस ले लिया है। इसे उसको राम द्वारा दी गई सद्‍बुद्धि कह सकते हैं या फिर हिन्दू वोटों के हाथ से फिसलने का डर। इस मामले में एएसआई के दो अधिकारियों को निलंबित कर सरकार ने इस विवाद को ठंडा करने की कोशिश की है।

केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार के कर्णधार यह भूल गए हैं कि महात्मा गाँधी ने 'रघुपति राघव- राजाराम' गा-गाकर भारत की रामभक्त जनता को लामबंद किया था और मृत्यु के समय 'हे राम!' उच्चारण करते हुए प्राण त्याग किए थे।

केन्द्र सरकार द्वारा रामसेतु तोड़ने के पीछे जो जनहित और आर्थिक उन्नति की बात रखी गई है- उसमें योजनाबद्ध षड्‍यंत्र की झलक स्पष्ट दिखाई देती है, परन्तु इसके पीछे जिन कथित वैज्ञानिकों का समर्थन प्राप्त होने की पुष्टि करते हुए राम और रामायण के पात्रों के अस्तित्व से इनकार किया है, वह समझ से परे हैं।

ये वैज्ञानिक अभी वेद-विज्ञान से अपरिचित हैं। उस विज्ञान से जिसमें बीज से वृक्ष के विकास को बतलाया है, जिसमें सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र की उत्पत्ति के साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण की रचना का रहस्य है। ये वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था- 'मैं तुझे विज्ञान सहित ज्ञान दूँगा, जिसके जान लेने पर कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगा।'

वैज्ञानिक अपने अधूरे ज्ञान पर गर्व न करें। जरा विचार करें कि ऋषियों के पास वह कौन-सी दूरबीन थी, जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रह्माण्ड के ग्रह-नक्षत्रों की परिभ्रमण गति को जान लिया था? गणितीय ज्योतिष इनके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण आदि का होना और उनकी मुक्ति का समय निर्धारित करना ऋषियों की दिव्य-दृष्टि का परिचायक नहीं तो और क्या है? वर्तमान वैज्ञानिकों को तो 1936 में 'रॉयल ऑब्जरवेटरी, लंदन में प्लूटो के तारे का पता चला। तब पूर्व में ही ऋषियों ने उसे और उसकी गति को कैसे जान लिया था?

जिन ऋषियों ने व्यक्ति और ब्रह्माण्ड की एकात्मता सिद्ध कर दिखाई थी- उनके समक्ष आप कहाँ खड़े हैं? सोचिए तो, आपके पास अभी वह दृष्टि नहीं हैं, जो ऋषियों के पास थी। जब आप वह वेद विज्ञान अपना सकेंगे, तभी आपको रामसेतु और उसकी रचना के साक्षात दर्शन हो सकेंगे। इस विज्ञान को जानने के लिए ऋषियों की शरण में जाना होगा।

अप्रत्यक्ष रूप से यह सिद्ध होता है कि वैज्ञानिक भी केन्द्र सरकार के षड्‍यंत्र को समर्थन दे रहे हैं। यदि उनमें साहस हैं, तो विदेशी धर्मों के धर्मग्रन्थ, उनके पात्रों और उनके प्रवर्तकों को भी काल्पनिक पात्र सिद्ध कर दिखाएँ।

तिब्बत के ल्हासा संग्रहालय में रखे भारत से ले जाए गए अष्टधातु से निर्मित सूर्य खंड को देखकर बताएँ कि हजारों वर्ष पूर्व यह कैसे बनाया गया होगा। एक विदेशी धर्मग्रंथ में भारत को 'सप्त सिन्धव देश' कहकर आदर दिया है, जो भारतवर्ष की प्राचीनता को ही दर्शाता है -अवलोकन करें।

इस सन्दर्भ में समस्त भारतीय जन-जन से यह कहना उचित प्रतीत होता है कि आज हमारा नजरिया राजनीतिक पार्टियों के आधार पर बनता-सा प्रतीत होता है। कांग्रेस, भाजपा, वामपंथी दल या और भी अन्य राजनीतिक पार्टियों की दृष्टि से भारतीय धर्म, संस्कृति और उसकी महान विरासत के बारे में न सोचकर स्वयं अपनी स्वतंत्र दृष्टि से ऋषियों की महान देन के दर्शन करें।

'पश्थ देवस्य काव्यं नममार न जीर्यति' को ऋषि दृष्टि से देखने पर शास्त्रों के विशाल भंडार में दिव्य शक्ति के दर्शन होंगे। सारे पात्र आपने सामने अपना रहस्य खोलकर रख देंगे।

'तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्या पंथा विद्यतेयनाय।' अर्थात- उसे जानकर मिले अमरता, अन्य मार्ग तो है ही नहीं।

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