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संजीव नंदा को उच्च न्यायालय से राहत

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नई दिल्ली (वार्ता) , मंगलवार, 21 जुलाई 2009 (11:04 IST)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीएमडब्ल्यू कांड में जेल की सजा काट रहे संजीव नंदा की सजा अवधि पाँच वर्ष से घटाकर दो वर्ष कर दी है।

न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने सोमवार को इस मामले में निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यह लापरवाही से जुड़ा मामला है और इसे गैर इरादतन हत्या की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति गंभीर ने विवादास्पद गवाह सुनील कुलकर्णी की गवाही पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे कुलकर्णी के खिलाफ कार्रवाई करें। कुलकर्णी इस दुर्घटना के दिन राजधानी दिल्ली में मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा कि कुलकर्णी ने पूरी प्रणाली को ठेंगा दिखाया है और न्याय को मजाक बनाकर रख दिया है।

न्यायालय ने पूर्व नौसेना प्रमुख दिवंगत एडमिरल एसएम नंदा के पौत्र एवं हथियार व्यापारी सुरेश नंदा के बेटे संजीव को उसके अपराध के लिए दोषी तो ठहराया, लेकिन सजा की अवधि पाँच वर्ष से घटाकर दो वर्ष कर दी।

निचली अदालत ने इस अपराध के लिए राजीव गुप्ता और भोलानाथ को भी दोषी ठहराया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने इन दोनों दोषियों की सजा अवधि आधी कर दी। गुप्ता की सजा एक वर्ष से घटाकर छह महीने तथा भोला की सजा अवधि छह महीने से घटाकर तीन महीने कर दी गई।

संजीव ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि निचली अदालत ने साक्ष्यों से अधिक मीडिया पर भरोसा किया। अदालत ने कुलकर्णी की गवाही पर भी अधिक भरोसा किया, जो उस दुर्घटना की रात राजधानी में नहीं था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि पाँच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा बहुत अधिक है, क्योंकि ऐसे ही एक मामले में एलिस्टेयर परेरा को महज तीन वर्ष की सजा हुई थी। संजीव नन्दा ने 10 जनवरी 1999 की रात एक समारोह से लौटते वक्त दक्षिण दिल्ली के लोदी कालोनी इलाके में अपनी बीएमडब्ल्यू कार से छह लोगों को कुचलकर मार दिया था।

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