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सरकार बोली, चुप्पी तोड़ें मनमोहन...

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नई दिल्ली , बुधवार, 23 जुलाई 2014 (15:43 IST)
नई दिल्ली। संप्रग शासन के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे एक न्यायाधीश का सेवा विस्तार करने के कथित दबाव के बारे में संसद को सूचित करने के दूसरे दिन सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस विवादास्पद मामले में ‘स्पष्ट’ बयान देने की मांग की।
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संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि इस संपूर्ण मामले को सबसे पहले उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू सामने लाए और यह प्रदर्शित किया कि संप्रग सरकार के दौरान सरकार कैसे काम कर रही थी। वह हर मुद्दे पर समझौता कर रही थी।

मनमोहन सिंह की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए नायडू ने कहा क‍ि उनकी चुप्पी इस बात का संकेत है कि वे कुछ छिपा रहे हैं इसलिए न्याय के हित में पूर्व प्रधानमंत्री को सामने आना चाहिए और जो कुछ भी हुआ, इसके बारे में स्पष्ट बयान देंगे। क्या वे दबाव में थे?

नायडू ने कहा क‍ि इन सभी बातों को जानने का भारत के लोगों को अधिकार है। इससे न्यायपालिका की छवि को बेहतर बनाने और किसी तरह के अविश्वास को दूर करने में मदद मिलेगी।

विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को संसद को सूचित किया था कि मनमोहन सिंह के समय प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एक नोट जारी किया था और पूछा था कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सेवा विस्तार की सिफारिश क्यों नहीं की, जो भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे। इस विवादास्पद मामले का संसद में ब्योरा देने के बाद काफी शोर-शराबा हुआ था।

उन्होंने कहा कि 2003 में उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने कुछ आपत्तियां व्यक्त की थीं और कुछ पूछताछ भी की थी तथा यह फैसला किया कि न्यायाधीश के मामले को नहीं लिया जाएगा।

प्रसाद ने लोकसभा में कहा था कि संप्रग सरकार के समय बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक स्पष्टीकरण मांगा था कि उनकी सिफारिश क्यों नहीं की गई।

उनका बयान तब आया जब इस मुद्दे पर आक्रोशित अन्नाद्रमुक सदस्यों के हंगामे के कारण दो बार लोकसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी थी। अन्नाद्रमुक सदस्य इस विषय को उठाते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए थे और यह मांग की थी कि द्रमुक के उस मंत्री का नाम उजागर किया जाए जिनसे संप्रग सरकार को विवादास्पद न्यायाधीश की नियुक्ति की पुष्टि करने के लिए दबाव बनाया था।

काटजू ने आरोप लगाया था कि भारत के तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी लाहोटी, न्यायमूर्ति वाईके सभरवाल और न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन ने अनुपयुक्त समझौता किया।

काटजू ने आरोप लगाया है कि तमिलनाडु की एक सहयोगी पार्टी की ओर से संप्रग सरकार एक अतिरिक्त न्यायाधीश को सेवा विस्तार देने और स्थाई न्यायाधीश नियुक्त करने का राजनीतिक दबाव में आ गई थी। (भाषा)

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