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सरकार हाइड एक्ट का तोड़ निकालेगी

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हमें फॉलो करें हाइड एक्ट परमाणु करार भारत अमेरिका
नई दिल्ली (भाषा) , रविवार, 20 जुलाई 2008 (11:02 IST)
सरकार अमेरिका के हाइड कानून का जवाब देने के लिए घरेलू कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है। हाइड कानून ही भाजपा और वामपंथी दलों द्वारा भारत-अमेरिका परमाणु करार का विरोध करने की मुख्य वजह है।

उच्च पदस्थ सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया सरकार को मंगलवार को लोकसभा में विश्वास मत जीतने का पूरा भरोसा है। उसके बाद वे अपने नए सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के साथ विचार-विमर्श के बाद बीमा, बैंकिंग और पेंशन क्षेत्रों में सुधारों के अधूरे काम पूरे करना चाहती है।

भारत-अमेरिका को देश के हित में बताकर इसका बचाव करते हुए सूत्रों ने कहा कि अमेरिका के साथ हुए द्विपक्षीय 123 समझौते में भारत के दायित्वों का वर्णन किया गया है। हाइड कानून पूरी तरह से अमेरिका का एक घरेलू कानून है जो द्विपक्षीय समझौते पर भारी नहीं पड़ सकता।

सूत्रों ने कहा कि सरकार ने हाइड कानून का जवाब देने के लिए परमाणु ऊर्जा कानून में संशोधन करने के विकल्प को खुला रखा है। समझौते की आलोचना करने वालों का कहना है कि हाइड कानून भारत के परमाणु परीक्षण करने के अधिकार को सीमित करने वाला है।

भाजपा हाइड कानून पर नियंत्रण के लिए भारत में कानून बनाए जाने का समर्थन करती है, लेकिन सूत्रों के अनुसार विपक्षी दल ने यह नहीं बताया कि परमाणु ऊर्जा कानून में वह क्या बदलाव चाहता है। सूत्रों ने कहा हम तमाम विकल्पों पर विचार करने को तैयार हैं बशर्ते वे व्यावहारिक हों।

इस बीच सरकार अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के सदस्यों के रुख से पूरी तरह संतुष्ट दिखाई देती है। विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कल वियना में इन्हें परमाणु समझौते से संबद्ध सुरक्षा मानक समझौते और अन्य पहलुओं की जानकारी दी थी।

हालाँकि सूत्रों ने कहा कि इससे सरकार की आगे आने वाली दिक्कतें कुछ कम नहीं होने वाली हैं। उन्होंने इस ख्याल को नकार दिया कि एक बार आईएईए ने सुरक्षा मानक समझौते को मंजूरी दे दी तो परमाणु समझौता हो ही जाएगा।

सूत्रों ने कहा कि हम एनएसजी की अहमियत कम करके नहीं आँक सकते। यह आम सहमति के आधार पर काम करती है। समझौते को लेकर वामदलों द्वारा समर्थन वापस लेने में दिखाई गई जल्दबाजी पर खेद प्रकट करते हुए सूत्रों ने कहा कि एनएसजी और अमेरिकी कांग्रेस की स्वीकृति के बावजूद अगर सरकार समझौते के अंतिम स्वरूप पर संसद को संतुष्ट नहीं कर पाती तो समझौते को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता।

उन्होंने कहा कि स्वीकृति की पूरी प्रक्रिया के दौरान भारत को आईएईए के सामने समझौते के बारे में एक घोषणापत्र दाखिल करना होगा। उसके बाद ही समझौते को कामकाजी बनाया जा सकेगा। यह पूछे जाने कि क्या सरकार विश्वास मत हारने के बाद भी समझौते पर आगे बढ़ेगी, सूत्रों ने कहा कि हम विश्वास मत नहीं हारेंगे। बाकी सब काल्पनिक है।

सूत्रों ने जोर देकर कहा कि संप्रग सरकार सिर्फ एक मसले की सरकार नहीं है। परमाणु समझौते ने ऐसे समय पर इतना तूल पकड़ लिया है जब मुद्रास्फीति को शीर्ष प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।

उन्होंने कहा कि सरकार का रिकॉर्ड अच्छा है, लेकिन उसका एक अधूरा एजेंडा भी है। सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले चार वर्ष में मुद्रास्फीति की दर को चार प्रतिशत से ऊपर नहीं जाने दिया, लेकिन हालात उसके काबू से बाहर होने के कारण यह बढ़ती चली गई।

सूत्रों ने कहा कि निर्धन वर्ग के लोगों की दिक्कतें बढ़ाए बिना सरकार आर्थिक वृद्धि दर को 7.5 से 8 प्रतिशत पर सुनिश्चित कर मुद्रास्फीति पर काबू पाना चाहती थी। उन्होंने कहा कि मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होगी।

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति पर काबू पाने में कुछ समय लगेगा, लेकिन कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था सुप्रबंधित है। उन्होंने कहा कि खासतौर से खाद्य अर्थव्यवस्था को बहुत अच्छे से संभाला गया है।

इस बीच केन्द्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने फिर दोहराया कि 'हाइड एक्ट' भारत को बाध्य नहीं कर सकता और यह कानून भारत-अमेरिका परमाणु करार के क्रियान्वयन में कोई दखलंदाजी नहीं कर सकता।

नालसार विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा 123 समझौता दो देशों की सार्वभौमिकता के बीच द्विपक्षीय समझौते की तरह ही अपनाया जाएगा।

123 समझौते की धारा 16 (चार) का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा करार का क्रियान्वयन विश्वास कायम करने में किया जाएगा और यह अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुरूप है। वियना कानून की तरह ही इस समझौते को लागू किया जाएगा।

वित्तमंत्री ने कहा कि भारत और अमेरिकी सरकार औद्योगिक और वाणिज्यिक सिद्धांतों को पूरा करने के लिए अन्य समझौते भी करेगी। यह ऐसा समझौता है, जिसमें दोनों देश अपनी जरूरतों के अनुसार कूटनीति का आदान-प्रदान कर सकेंगे।

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