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19 की उम्र में चूमा फाँसी का फंदा

(11 अगस्त को खुदीराम बोस के 100वें शहादत दिवस पर विशेष)

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हमें फॉलो करें भारतीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस
नई दिल्ली (भाषा) , शनिवार, 11 अगस्त 2007 (13:24 IST)
भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। इनमें आजादी के कुछ परवाने ऐसे थे, जो महान क्रांतिकारियों के नक्शेकदम पर चलते रहे, लेकिन कुछ ने ऐसा कारनामा किया कि वे मिसाल आप बन गए।

ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है, जो मात्र 19 साल की उम्र में ही देश के लिए फाँसी पर चढ़ गए। कुछ इतिहासकार उन्हें देश के लिए फाँसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का सबसे पहला क्रांतिकारी देशभक्त मानते हैं।

खुदीराम का जन्म तीन दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। खुदीराम को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।

इसके बाद वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् और पर्चे वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

28 फरवरी 1906 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वे कैद से भाग निकले, लेकिन लगभग दो महीने बाद अप्रैल में वे फिर से पकड़े गए। 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया।

छह दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया। 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया, लेकिन वे भी बच निकले।

खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर के सेशन जज से बेहद खफा थे, क्योंकि उसने बंगाल के कई देशभक्तों को कड़ी सजा दी थी। उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई।

दोनों मुजफ्फरपुर आए और 30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया, लेकिन उस समय गाड़ी में किंग्सफोर्ड की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिला कैनेडी और उसकी बेटी सवार थीं। किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएँ मारी गईं, जिसका खुदीराम और प्रफुल्लचंद चाकी को बेहद अफसोस हुआ।

अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लचंद चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी, जबकि खुदीराम पकड़े गए। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गई। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 साल थी।

फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह शहीद और अनुकरणीय हो गए। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल बंद रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

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