पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों में 'आम आदमी पार्टी' अपने खराब प्रदर्शन से अभी उबरी भी नहीं थी कि दिल्ली में हुए उपचुनावों के नतीजों ने उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसमें उसे करारी हार हासिल हुई। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने अपना विजय अभियान जारी रखते हुए भारी सफलता हासिल की। आइए, जानते हैं दिल्ली में 'आप' की करारी हार के दस कारण...
1. 'आप' को राजौरी गार्डन सीट से 2015 में विधायक चुने गए जरनैल सिंह को पंजाब भेजना महंगा पड़ा। उन्हें पंजाब चुनाव आते ही इस सीट से इस्तीफा दिलाकर पंजाब ले जाया गया जो दिल्ली के लोगों को पसंद नहीं आया। पंजाब में हारने के बावजूद जरनैल सिंह को आप ने दोबारा राजौरी गार्डन से टिकट देने के बजाय हरजीत सिंह को चुनाव में उतारा।
2. 'आप' ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत जनता से जुड़े जमीनी मुद्दों से की थी, जिसमें बिजली, पानी, सड़क, झुग्गी आदि शामिल थे, लेकिन सत्ता में आते ही इन्होंने आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू कर दी, जिसने पार्टी की पुरानी छवि को नुकसान पहुंचाया।
3. दिल्ली में सत्ता में आने के तुरंत बाद ही आप के मंत्रियों से लेकर नेताओं तक पर फर्जी डिग्री से लेकर घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न तक के आरोप लगे, उनमें से कई जेल भी गए, जिससे पार्टी की छवि धूमिल हो रही है।
4. दिल्ली में भारी बहुमत से सत्ता में आने के बावजूद अरविंद केजरीवाल लगातार प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले करते रहे। केजरीवाल प्रधानमंत्री की डिग्री से लेकर मां के साथ फोटो खिंचवाए जाने पर सवाल खड़े करते रहे, जिसे लोगों ने नापसंद किया।
5. 'आप' ने पिछले दो साल में सरकारी खजाने के 97 हजार करोड़ रुपए अखबार, टीवी और विभिन्न माध्यमों पर विज्ञापन देने में ही खर्च किए, जबकि यह पैसा शहर के विकास के लिए खर्च करना था।
6. पार्टी ने अपने एक कार्यक्रम का ऐसा बिल दिल्ली की जनता के सामने रखा जिसमें मेहमानों के लिए मंगाई गई प्रत्येक थाली की कीमत लगभग 12 से 16 हजार रुपए थी। जनता के पैसों पर ऐसी ऐश ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया।
7. पार्टी ने आंदोलन के समय से ही अपने साथ रहे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार जैसे बड़े और साफ छवि के नेताओं को सत्ता में आते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। बाद में इन्हीं नेताओं ने पार्टी के खिलाफ बोलना शुरू किया।
8. पंजाब विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद जिस तरह से केजरीवाल ने ईवीएम और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को अपने निशाने पर लिया वो निश्चित रूप से पार्टी के खिलाफ गया, जबकि हारने वाली पार्टियों ने कभी इन पर सवाल नहीं उठाए, लेकिन 'आप' की बौखलाहट से नकारात्मक असर पड़ा।
9. एमसीडी चुनाव और उपचुनाव से ठीक पहले शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट का बाहर आना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि आप सरकार ने पिछले दो साल में सिर्फ अपनी मनमानी की।
10. वैसे तो आमतौर पर उपचुनाव में विरोधी लहर काम नहीं करती है, लेकिन 'आप' के लिए दिल्ली में उसका पिछले दो साल का कार्यकाल ही उसके खिलाफ चला गया। विरोधी लहर का ही नतीजा है कि 'आप' का उम्मीदवार न सिर्फ हारा है, बल्कि उसकी जमानत भी जब्त हो गई।