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रहस्यमय ‘आइंस्टीनियम’ को समझने के लिए नया शोध

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, गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021 (14:16 IST)
नई दिल्ली, हमारा वातावरण कई सूक्ष्म और अ-सूक्ष्म पदार्थों से मिलकर बना है। इन सभी पदार्थों के निर्माण में उनके अणुओं और परमाणुओं की बेहद खास भूमिका होती है।

वातावरण में मौजूद कुछ पदार्थों को हम नग्न आंखों से देख सकते हैं, तो कुछ पदार्थों को देखने के लिए हमें सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता होती है। हमारे वातावरण में उपस्थित इन पदार्थों को वैज्ञानिकों ने उनके गुणों के आधार पर आवर्त सारणी में व्यवस्थित किया है। लेकिन, वर्षों पहले एक ऐसा तत्व सामने आया, जिसने विज्ञान जगत को भी अचंभित कर दिया।

उस समय वैज्ञानिक यह बताने में असमर्थ थे कि उसके क्या गुण हैं, और वह कैसे हमारे लिए उपयोगी हो सकता है। इस रहस्यमयी तत्व को आइंस्टीनियम नाम दिया गया, और आवर्त सारणी में 99 नंबर के स्थान पर अंकित किया गया।

पहली बार जब हाइड्रोजन बम का धमाका हुआ, तो उससे एक नया रासायनिक तत्व निकलकर आया, जिसे वैज्ञानिकों ने आइंस्टीनियम नाम दिया। यह नाम मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटाइन के नाम पर रखा गया था।
लगभग 70 साल तक आइंसटीनियम वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना रहा, क्योंकि यह एक ऐसा रेडियोधर्मी तत्व है, जो प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता। इसे लैब में तैयार करना भी दुष्कर था। एक ताजा घटनाक्रम में वैज्ञानिकों को आइंस्टीनियम से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं।

अमेरिका की बर्कलेज नेशनल लैबोरेटरी में आइंस्टीनियम पर किये गए शोध में वैज्ञानिकों ने इस तत्व के कुछ अवयवों का पता लगाया है। अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने आइंस्टीनियम के सबसे स्थिर Es-254 आइसोटोप का प्रयोग किया है।

वैज्ञानिकों के पास सिर्फ 200 नैनो-ग्राम आइंस्टीनियम उपलब्ध था, जिसे अमेरिका की ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी में बनाया गया था। आइंस्टीनियम के इस आइसोटोप की रेडियो-सक्रियता 276 दिन में घटकर आधी हो जाती है। अपनी उच्च रेडियोधर्मिता और छोटी आयु के कारण आइंस्टीनियम आइसोटोप अपने निर्माण की प्रक्रिया में धरती पर मौजूद होते हुए भी क्षरण के कारण विलुप्त हो गए। अब इनको अत्यंत गहन और दुष्कर विधि से केवल प्रयोगशालाओं में बनाया जा सकता है।

एक विशिष्ट विधि के उपयोग से वैज्ञानिक यह पता लगाने में सफल हुए हैं कि आइंस्टीनियम अपने अणुओं से कैसे संयुक्त होता है, और उनके बीच की दूरी (बॉन्ड लेंथ) कितनी है।

आणविक संरचना का यह अध्ययन परमाणु ऊर्जा और विकिरण-औषधियों के उत्पादन में उपयोगी कई अन्य तत्वों और आइसोटोप के अध्ययन में मददगार हो सकता है। इस अध्ययन से, आइंस्टीनियम की रासायनिक  संरचना का अंदाजा लगाने में भी मदद मिलेगी, जो पहले संभव नहीं था। अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका नेचर में प्रकाशित किए गए हैं।

नवंबर, 1952 में पहली बार हाइड्रोजन बम का परिक्षण किया गया। उस समय परीक्षण के दौरान जिस हाइड्रोजन बम का विस्फोट हुआ, उसकी क्षमता दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए विस्फोट की तुलना में कई गुणा ज्यादा प्रभावी थी। यह परीक्षण दक्षिणी प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटे-से द्वीप एल्युजलैब आइलैंड में हुआ। परीक्षण के दौरान इतना तेज धमाका हुआ कि पूरा द्वीप विस्फोट के कारण गायब हो गया।

परीक्षण के बाद वैज्ञानिकों के सामने था विस्फोट से निकला हुआ मलबा, और मलबे में मौजूद कई रासायनिक तत्व। वैज्ञानिकों ने इस मलबे से एक तत्व खोज निकाला, जिसको बाद में आइंस्टीनियम नाम दिया गया। इसको प्रतिकात्मक रूप में Es लिखा जाता है। यह अत्याधिक रेडियोधर्मी तत्व है, यानी एक ऐसा तत्व, जो बहुत जल्द अपना स्वरूप बदल लेता है, और अपनी एक निश्चित अवस्था में स्थिर नहीं रह पाता। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक ऐसा तत्व है, जिसका अभी तक कोई उपयोग ज्ञात नहीं है।

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