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सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को सियासी दलों ने दिए सुझाव

हमें फॉलो करें सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को सियासी दलों ने दिए सुझाव
, सोमवार, 5 सितम्बर 2016 (08:46 IST)
श्रीनगर। हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद पिछले 58 दिनों से हिंसा, बंद और कर्फ्यू से त्रस्त कश्मीर में हालात सामान्य बनाने के लिए रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में आए केंद्रीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिले सियासी दलों ने पाकिस्तान और हुर्रियत समेत सभी पक्षों से बातचीत से लेकर, जनमत संग्रह कराने व अलगाववादियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई जैसे सुझाव रखे। मौके पर पैलेट गन, अफस्पा, पीएसए और नौजवानों के लिए रोजगार देने पर भी बात हुई।

रविवार सुबह सवा दस बजे पहुंचे इस प्रतिनिधिमंडल में 30 के बजाय 26 सदस्य ही शामिल थे। विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंधित ये सभी लोग हिसाग्रस्त कश्मीर में शांति बहाली को लेकर पूरी तरह आशान्वित थे। दोपहर करीब 12 बजे मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ, जो देर शाम करीब सात बजे जाकर संपन्न हुआ।
 
पीडीपी, कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, भाजपा, माकपा, पीडीएफ, डीपीएन, अवामी इत्तेहादी पार्टी, जनता दल युनाइटेड, लोजपा के प्रतिनिधिमंडलों के अलावा लेह व करगिल के मजहबी व सियासी संगठन, शिव सेना की कश्मीर इकाई व भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की कश्मीर इकाई के नेता भी नई दिल्ली से आए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से मिला। तीन सदस्यीय मीडिया प्रतिनिधिमंडल और कुछ फल व्यापारी और एक युवा प्रतिनिधिमंडल भी एसकेआइसीसी पहुंचा था।
 
मुलाकातों के दौर की शुरुआत मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में राज्य मंत्रिमंडल और केंद्रीय दल की बैठक से हुई। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कश्मीर समस्या का बातचीत के जरिए समाधान निकालने और इसके लिए एक संस्थागत तंत्र तैयार करने पर जोर दिया। राज्य के वित्तमंत्री डॉ. हसीब द्राबु ने पैलेट गन बंद करने और राज्य के लिए विकास राशि जारी करने पर जोर दिया।
 
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने आंतरिक स्वायत्तता, अलगाववादी खेमे से बातचीत को ही कश्मीर समस्या का हल बताया। जबकि अवामी इत्तेहाद पार्टी के चेयरमैन इंजीनियर रशीद ने जनमत संग्रह की बात की। भाजपा ने धारा 370 का जिक्र करते हुए अलगाववादियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि कश्मीर के हालात पाकिस्तान के छद्म युद्घ के कारण बिगड़े हैं।
 
प्रदेश कांग्रेस ने बातचीत के लिए संस्थागत तंत्र बनाने और हुर्रियत समेत सभी पक्षों से बातचीत पर जोर देते हुए मौजूदा हालात के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया। पीडीएफ व डीपीएन ने अलगाववादियों और पाकिस्तान से बातचीत की वकालत की। माकपा ने बातचीत के लिए संसदीय समिति का सुझाव दिया, लेकिन अलगाववादी खेमे के साथ बातचीत को अनिवार्य बताया। (भाषा)

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