श्रीनगर। इस बार की अमरनाथ यात्रा में भी मौसम के खलनायक बनने के पूरे चांस दिख रहे हैं। ऐसा ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहा है। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। ताजा बर्फबारी और बारिशें उन एजेंसियों की मेहनत पर पानी फेर रही हैं, जो दोनों यात्रा मार्गों के अतिरिक्त यात्रा के शिविरों को श्रद्धालुओं के रहने लायक बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे के चलते इस बार भी हिमलिंग के पिघलने की चिंता सता रही है। हालांकि उपाय तो बहुतेरे किए जा रहे हैं, पर चिंता साथ नहीं छोड़ रही है।
अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी इसे स्वीकार कर रहे हैं कि यात्रा में मौसम के विलेन बनने का खतरा मंडरा रहा है। पिछले कुछ सालों से मौसम की खलनायकी कुछ ज्यादा ही खतरनाक साबित होती जा रही है। पिछले साल अगर मौसम के लगातार खराब रहने के कारण पहलगाम के रास्ते यात्रा को शुरू करने में कई दिन लग गए थे तो वर्ष 2008 में यात्रा आधिकारिक तौर पर घोषित तारीखों से कई दिन बाद जाकर आरंभ हो पाई थी।
ऐसी ही परिस्थितियों से इस बार भी श्राइन बोर्ड तथा सुरक्षाबल दो-चार हो रहे हैं। 14,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में बनने वाले हिमलिंग की जानकारी के लिए इस बार मात्र एक ही पुलिस दल अभी तक पहुंच पाया है। इस प्रकार एक ही श्रद्धालुओं का दल भी गुफा तक पहुंचने का खतरा उठा पाया है जबकि पिछले साल सुरक्षाकर्मियों को मार्च में ही तैनात कर दिया गया था तथा आधिकारिक यात्रा की शुरुआत से पहले ही सैकड़ों लोगों ने यात्रा कर ली थी।
पर इस बार मौसम कुछ अधिक ही चिंता पैदा कर रहा है। अधिकारियों के बकौल, अभी तक यात्रा मार्ग को यात्रा के लायक बनाने की कवायद भी शुरू नहीं हो पाई है। ऐसे में चिंता आतंकी खतरे की भी है। सुरक्षाधिकारी मानते हैं कि जब तक यात्रा मार्ग से बर्फ को नहीं हटाया जाता, आतंकवाद विरोधी अभियानों को चला पाना संभव नहीं होगा।
ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ पर्यावरण भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसकी खातिर प्लास्टिक पर पहले ही प्रतिबंध लागू किया जा चुका है। यात्रा के दौरान पर्यावरण को बनाए रखने की खातिर पर्यावरणविद् डॉ. सुनीता नारायण की सेवाएं ली जा रही हैं।