Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

विरासत में मिली सियासत, ‘महत्वाकांक्षा’ ने कई राजनीतिक परिवारों में करा दी बगावत

हमें फॉलो करें विरासत में मिली सियासत, ‘महत्वाकांक्षा’ ने कई राजनीतिक परिवारों में करा दी बगावत
, रविवार, 9 अप्रैल 2023 (09:39 IST)
नई दिल्ली। परिवारवाद को लेकर आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच भारतीय राजनीति में ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्हें विरासत में सियासत तो मिली, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा परिवार में बगावत का कारण बन गई। देश की राजनीति में कई ऐसे उदाहरण हैं कि माता या पिता ने जिंदगी भर किसी एक दल का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन पुत्र, पुत्री, बहु या परिवार के अन्य सदस्यों ने दूसरे दलों का दामन थाम लिया।
 
इस कड़ी में नया नाम जुड़ गया है कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ए के एंटनी और उनके बेटे अनिल के एंटनी का। अनिल पिछले दिनों भाजपा में शामिल हो गए। सीनियर एंटनी 5 बार विधानसभा के सदस्य रहे और 5 बार राज्यसभा भी पहुंचे। वह 3 बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए और इतनी ही बार केरल के मुख्यमंत्री भी रहे।
 
भाजपा में शामिल होने के फैसले के बारे में अनिल से जब ‘भाषा’ ने पूछा तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर यह एक कठिन फैसला था, लेकिन हमें कुछ सार्थक करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जिस कांग्रेस में उनके पिता ने अपनी जिंदगी खपा दी और जिसकी वजह से उनकी पहचान है, वह (कांग्रेस) आज विनाशकारी दिशा में है।
 
हालांकि, सीनियर एंटनी ने अपने बेटे के भाजपा में शामिल होने पर दुख जताते हुए इसे ‘गलत फैसला’ करार दिया और कहा कि वह खुद आखिरी सांस तक कांग्रेस के सिपाही बने रहेंगे। एंटनी 37 वर्ष के थे, जब वह पहली बार केरल के मुख्यमंत्री बने थे।
 
अभी कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र में भी इसी तरह का घटनाक्रम देखने को मिला था। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के प्रमुख नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेहद करीबी सुभाष देसाई के बेटे भूषण देसाई ने पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का दामन थाम लिया था।
 
सुभाष देसाई ने तब कहा था कि बेटे ने भले ही पाला बदल लिया हो, लेकिन उनकी निष्ठा शिवसेना, मातोश्री, दिवंगत बाला साहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के प्रति ही रहेगी।
 
webdunia
इसी कड़ी में एक प्रमुख नाम समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव का भी आता है। वह 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं।
 
इसी तरह, उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के पुत्र मयंक जोशी ने पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान ही सपा का दामन थाम लिया था। प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए लखनऊ कैंट से टिकट चाहती थीं, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उनकी नहीं सुनी। इसके बाद मयंक सपा में शामिल हो गए।
 
ऐसा ही एक प्रमुख नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी का है। करीब डेढ़ दशक तक कांग्रेस के संगठन महासचिव रहे और सोनिया गांधी के करीबियों में शुमार जनार्दन द्विवेदी के बेटे समीर द्विवेदी फरवरी 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे।
 
webdunia
पिता किसी दल में और बेटा अन्य दल में, इसकी सबसे बड़ी बानगी हरियाणा में देखने को मिलती है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के संस्थापक एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के दोनों ही बेटे अलग-अलग दलों से जुड़े हैं। सीनियर चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला और उनके पुत्र दुष्यंत चौटाला ने मतभेद के बाद जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठन किया। दुष्यंत फिलहाल हरियाणा के उपमुख्यमंत्री हैं।
 
वहीं, सीनियर चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला फिलहाल इनेलो के प्रधान महासचिव हैं। वह इन दिनों राज्य में हरियाणा परिवर्तन यात्रा की अगुवाई कर रहे हैं। हाल ही में ओम प्रकाश चौटाला भी इस यात्रा में शामिल हुए थे।
 
कुछ ऐसी ही कहानी आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस की है। मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। लंबे समय तक उनके साथ रही उनकी बहन शर्मिला ने अपनी पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का गठन किया है। जगन की मां ने वाईएसआर कांग्रेस के मानद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बेटी की पार्टी की गतिविधियों से जुड़ गईं। शर्मिला की पार्टी मुख्य रूप से तेलंगाना में सक्रिय है।
 
उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी ‘अपना दल’ की कहानी भी काफी मिलती-जुलती है, जिसकी स्थापना राज्य में कुर्मी समुदाय के प्रमुख नेता रहे सोनेलाल पटेल ने की थी। उनके निधन के बाद परिवार में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष छिड़ गया, जो आज तक जारी है। अपना दल फिलहाल दो गुटों में बंट गया है। एक की कमान अनुप्रिया पटेल के हाथों में है, जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व उनकी बड़ी बहन पल्लवी पटेल कर रही हैं। अनुप्रिया पटेल केंद्र सरकार में मंत्री हैं, जबकि पल्लवी पटेल ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में सपा का दामन थाम लिया था। उन्होंने सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पराजित किया था।
 
उत्तर प्रदेश के ही कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में हैं, जबकि उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा की सांसद हैं।
 
ऐसे परिवार, जहां बगावत पिता ने की, उसका जिक्र होने पर भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा का ख्याल आना लाजिमी है। यशवंत सिन्हा जनता पार्टी, जनता दल से होते हुए भाजपा में पहुंचे, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका पार्टी से मोहभंग हुआ और वह कुछ समय बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गए। उनके बेटे जयंत, हालांकि भाजपा में ही बने रहे।
 
भारत में राजनीतिक परिवारों में बगावत का एक लंबा इतिहास रहा है। इसमें सबसे प्रमुख गांधी-नेहरू परिवार की बहू मेनका गांधी की बगावत थी। परिवार से अलग होकर 1982 में उन्होंने अपने पति संजय गांधी के नाम पर ‘संजय विचार मंच’ गठित कर लिया था। बाद में उसका विलय जनता दल में कर दिया।
 
मेनका ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था, हालांकि वह असफल रहीं। वर्ष 2004 में उन्होंने अपने बेटे वरुण गांधी के साथ भाजपा का दामन थाम लिया। (भाषा)
Edited by : Nrapendra Gupta 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Weather Update : मध्यप्रदेश समेत 9 राज्यों में बारिश की संभावना, अगले 5 दिनों में यहां बढ़ेगी गर्मी