नई दिल्ली। असम और मणिपुर में सरकार बनाने में सफलता हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपनी पकड़ और मजबूत करने के लिए अब नजरें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के गढ़ माने जाने वाले त्रिपुरा में गड़ा दी हैं और वहां बूथ स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
मार्क्सवादी विचारधारा से लैस अपने काडर के बल पर पिछले 4 विधानसभा चुनावों में जनता का समर्थन हासिल करने में सफल रही माकपा की कमजोर नब्ज को पकड़ने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शनिवार से बांग्लादेश की सीमा से सटे इस राज्य के दौरे पर हैं। राज्य के बुद्धिजीवियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और मीडिया से बातचीत कर वे यहां के राजनीतिक रहस्यों की पड़ताल करने का प्रयास कर रहे हैं।
जीत की 'चुनावी राजनीति के चाणक्य' माने जाने वाले शाह चुनावी कामयाबी के लिए बूथ स्तर की तैयारी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते रहे हैं और वे इस सिलसिले में वहां के पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत भी कर रहे हैं। उनका इरादा वामपंथी सत्ता विरोधी प्रभावों का उपयोग कर अगले साल इस राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का वर्चस्व स्थापित करने का है।
माकपा अपने वरिष्ठ नेता और कुशल रणनीतिकार माणिक सरकार के नेतृत्व में सत्ता में है और अगले चुनाव में गांव स्तर पर अपने पुराने समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं की बदौलत अपने मजबूत जनाधार को खोने से बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार राज्य के 2-3 उपचुनावों में पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ा है और वह नंबर 2 की पार्टी बन गई है। उनका कहना है कि युवा वर्ग बेरोजगारी की समस्या से परेशान है और पार्टी उसके बीच सही ढंग से अपने प्रभाव को बढ़ाए तो उसका भारी समर्थन उसे चुनाव में अवश्य मिलेगा।
पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करिश्माई नेतृत्व न केवल लोगों को प्रभावित कर रहा है बल्कि वे इसे वोट में बदलने में भी कामयाब हो रहे हैं। उसका दावा है कि पार्टी जिस प्रकार से असम को कांग्रेस से मुक्त कराने में सफल रही थी उसी तरह से वह माकपा के शासन से त्रिपुरा के लोगों को छुटकारा दिलाने में सफल रहेगी। (वार्ता)