Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महाराष्ट्र में सरकार की लड़ाई में दलबदल कानून बनेगा गेमचेंजर?, जानें क्या कहता है पूरा कानून

महाराष्ट्र में शिवसेना के बागी विधायकों की सदस्यता पर लटकी दलबदल कानून की तलवार

हमें फॉलो करें महाराष्ट्र में सरकार की लड़ाई में दलबदल कानून बनेगा गेमचेंजर?, जानें क्या कहता है पूरा कानून
webdunia

विकास सिंह

, शुक्रवार, 24 जून 2022 (14:02 IST)
महाराष्ट्र में सत्ता की लड़ाई अब आखिरी दौर में पहुंचती दिख रही है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बागी नेता एकनाथ शिंदे के बीच जारी शह और मात की लड़ाई अब विधानसभा स्पीकर और राज्यपाल तक पहुंच गई है। एक ओर शिवसेना ने बागी 16 विधायकों की सदस्यता खत्म करने के लिए विधानसभा के डिप्टी स्पीकर को पत्र लिखा है। वहीं बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे ने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल को 37 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी भेजकर खुद को शिवसेना विधायक दल का नेता बताया है। एकनाथ शिंदे ने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के साथ बागी विधायकों के समर्थन वाली चिट्ठी राज्यपाल को भेजी गई है।  
 
फ्लोर टेस्ट से सरकार के भविष्य का फैसला–महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई में उद्धव सरकार के भविष्य का फैसला विधानसभा में फ्लोर टेस्ट तक खींचता हुआ दिखाई दे रहा है। आज एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाकत के बाद शिवेसना प्रवक्ता संजय राउत ने साफ किया है उद्धव सरकार हार नहीं मानेगी और सरकार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना करेगी।   
 
सदन में फ्लोर टेस्ट होगा या नहीं होगा, होगा तो कब होगा इसका निर्णय महाराष्ट्र के प्रभारी राज्यपाल श्रीधर पिल्लई करेंगे। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है तो वह मुख्यमंत्री को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए कह सकते है। वहीं फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर विपक्षी दल भाजपा भी राज्यपाल के पास जा सकती है।
ALSO READ: इनसाइड स्टोरी : महाराष्ट्र में भाजपा के ऑपरेशन लोटस से खिलेगा 'कमल'?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर कौन जाता है। वहीं निगाहें इस बात पर भी होगा क्या एकनाथ शिंदे बागी विधायकों की परेड राज्यपाल के सामने कराने के लिए आगे आते है या नहीं। 

दलबदल कानून बनेगा गेमचेंजर?- महाराष्ट्र में सियासी संकट में अब सत्ता की लड़ाई दलबदल कानून गेमचेंजर साबित हो सकता है। ऐसे में जब बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे ने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल को 37 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी भेजकर खुद को शिवसेना विधायक दल का नेता बताया है तो विधानसभा के डिप्टी स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि एकनाथ शिंदे के गुट की चिट्ठी आने के बाद विधानसभा के डिप्टी स्पीकर तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।   
महाराष्ट्र विधानसभा में वर्तमान में शिवसेना के कुल विधायकों की संख्या 55 है। ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे को दलबदल कानून से बचने के लिए 37 विधायकों (दो तिहाई) का समर्थन चाहिए। अगर एकनाथ शिंदे अपने साथ 37 विधायकों को नहीं ला सकते तो शिंदे सहित सभी विधायकों की विधानसभा सदस्यत शून्य हो जाएगा। अगर शिवसेना के बागी विधायकों की सदस्यता शून्य हो जाती है तो सदन में बहुमत का आंकड़ा 144 से गिरकर नीचे आ जाएगा।

विधानसभा के डिप्टी स्पीकर को अधिकार-किसी भी राज्य में दलबदल करने वाले विधायकों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय का अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) को है, स्पीकर नहीं होने पर डिप्टी स्पीकर इस पर अंतिम निर्णय ले सकता है। वहीं दलबदल करने वाले विधायकों की सदस्यता को लेकर हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट में याचिका लगाई जा सकती है जहां विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। उत्तराखंड में 2016 दलबदल से गिरी हरीश रावत सरकार ने स्पीकर के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को फ्लोर टेस्ट से दूर रखने का निर्देश दिय़ा था।  
क्या है दलबदल कानून?-
देश में ‘आया राम-गया राम’ की राजनीति पर रोक लगाने के लिए वर्ष 1985 में भारतीय संविधान में 52वें संविधान संसोधन के द्धारा दसवीं अनुसूची में दलबदल कानून को जोड़ा गया। दलबदल विरोधी कानून संसदों और विधायकों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होने से रोकता है और उन्हें दंडित करता है। कानून का मुख्य उद्देश्य सत्ता की लालच में दलबदल करने वाले विधायकों को रोकना और सरकार को स्थिरता प्रदान करना है। दलबदल कानून किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल करने वाले विधायकों की सदस्यता शून्य करने का प्रवाधान करता है दूसरे शब्दों में किसी पार्टी से निर्वाचित सदस्य दलबदल करने पर अयोग्य हो जाता है। 
हालाँकि दलबदल कानून विधायकों के एक समूह यानि कम से कम विधायक दल के दो तिहाई सदस्य दलबदल के लिए किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने की अनुमति देता है। ऐसा होने पर विधायकों की सदस्यता शून्य नहीं होगी यानि वह सदन के सदस्य बने रहेंगे। दलबदल कानून के तहत एक बार अयोग्य सदस्य उसी सदन की किसी सीट पर किसी भी राजनीतिक दल से चुनाव लड़ सकते हैं।
 
कब खत्म होती है सदस्यता?
-निर्वाचित सदस्य खुद से अपने मूल राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है।
-पार्टी के ट्रिपल लाइन व्हिप का उल्लंघन कर पार्टी के जारी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता है या मतदान से दूर रहता है।
-यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उद्धव ठाकरे का शिवसैनिकों को संदेश, लोगों से मिलें और बात करें (Live Updates)