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मूर्ख दिवस : क्यों और कैसे मनाया जाता है, 5 खास बातें

हमें फॉलो करें मूर्ख दिवस : क्यों और कैसे मनाया जाता है, 5 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 30 मार्च 2020 (16:13 IST)
प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल को लोग अप्रैल फूल (ऑल फ़ूल्स डे) मनाते या कहें कि बनाते हैं। इस दिवस का प्रचलन ज्यादा तरह पश्चिमी देशों में रहा है। पश्चिम से ही भारत में भी अब इस दिवास को लोग मनाते हैं। हालांकि इसमें मनाने जैसा कुछ भी नहीं होता है बनाने जैसा होता है। भारत में इसे मूर्ख दिवस कहते हैं। आओ जानते हैं कि क्यों और कैसे बनाया जाता है मूर्ख दिवस।
 
 
क्यों मनाते हैं ?
1.पहली बार अप्रैल फूल डे कब मनाया गया इसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। लोगों के साथ हंसी माजाक करने का सिलसिला सन् 1564 के बाद फ्रांस से शुरू हुआ। हालांकि इसकी शुरुआत 17वीं सदी से हुई मानी जाती है। फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि फ्रेंच कैलेंडर में होने वाला बदलाव भी अप्रैल फूल डे मनाने का कारण हो सकता है। 
 
कुछ लोग यह मानते हैं कि रोमन लोग अप्रैल में अपने नए वर्ष की शुरुआत करते थे, तो वहीं मध्यकालीन यूरोप में 25 मार्च को नववर्ष के उपलक्ष्य में एक उत्सव भी मनाया जाता था। लेकिन 1852 में पोप ग्रेगरी अष्ठम ने ग्रेगेरियन कैलेंडर (वर्तमान में मान्य कैलेंडर) की घोषणा की, जिसके आधार पर जनवरी से नए वर्ष की शुरुआत की गई। फ्रांस द्वारा इस कैलेंडर को सबसे पहले स्वीकार किया गया था। जनश्रुति के आधार पर यूरोप के कई लोगों ने जहां इस कैलेंडर को स्वीकार नहीं किया था तो वहीं कई लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं थी। जिसके चलते नए कैलेंडर के आधार पर नववर्ष मनाने वाले लोग पुराने तरीके से अप्रैल में नववर्ष मनाने वाले लोगों को मूर्ख मनाने लगे और तभी से अप्रैल फूल या मूर्ख दिवस का प्रचलन बढ़ता चला गया।
 
2. कुछ लोग मानते हैं कि इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय की एनी से सगाई के कारण अप्रैल फूल डे मनाया जाता है।
 
3. कुछ लोग इसे हिलारिया त्योहार से जोड़ कर देखते हैं। इस त्योहार को प्राचीन रोम में मनाया जाता था। इसमें देवता अत्तिस की पूजा होती थी। उत्सव के दौरान लोग अजीब-अजीब कपड़े पहनते थे। साथ ही मास्क लगाकर तरह-तरह के मजाक करते थे। उत्सव में होने वाली इस गतिविधि के कारण ही इतिहासकारों ने इसे अप्रैल फूल डे से जोड़ दिया। इसके अलावा मध्यकाल का फीस्ट ऑफ फूल (बेवकूफों की दावत) भी इस त्योहार की प्रेरणा माने जाते हैं। भारत में होली के त्योहार को भी इससे जोड़कर देखा जाता है।
 
4. चौसर की कैंटरबरी टेल्स (1392) एक कहानियों का संग्रह थी। उसमें एक कहानी 'नन की प्रीस्ट की कहानी' मार्च के 30 दिन और 2 दिन में सेट थी। जिसे प्रिटिंग की गलती समझा जाता है और विद्वानों के हिसाब से, चौसर ने असल में मार्च खत्म होने के बाद के 32 दिन लिखे। इसी कहानी में, एक घमंडी मुर्गे को एक चालक लोमड़ी ने बेवकूफ बनाया था। अंग्रेजी साहित्य के पिता ज्योफ्री चौसर की कैंटरबरी टेल्स (1392) ऐसा पहला ग्रंथ है जहां 1 अप्रैल और बेवकूफी के बीच संबंध स्थापित किया गया था।
 
5. 1539 में फ्लेमिश कवि एडवर्ड डे डेने ने एक ऐसे ऑफिसर के बारे में लिखा जिसने अपने नौकरों को एक बेवकूफी की यात्रा पर 1 अप्रैल को भेजा था। 1968 में इस दिन को जॉन औब्रे ने मूर्खों का छुट्टी का दिन कहा क्योंकि, 1 अप्रैलको बहुत से लोगों को बेवकूफ बनाकर, लंदन के टॉवर पर एकत्रित किया गया था। 

 
कैसे मनाते हैं?
1. मूर्ख दिवस या अप्रैल फूल डे अलग-अलग देशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। रोम में फ्रांस की भांति 7 दिनों तक मनाया जाता है जबकि चीन में बैरंग पार्सल भेजकर मूर्ख बनाया जाता है। जापान में बच्चे पतंग पर इनामी घोषणा लिख कर उड़ाते हैं। पतंग पकड़ कर इनाम मांगने वाला ‘अप्रैल फूल’ बन जाता है।
 
2.अधिकतर जगहों पर लोग एक दूसरे को झूठ बोलकर, उल्लू बनाकर या कोई शरारत करके अप्रैल फूल बनाते हैं। यह दिवस विश्वभर में मौज-मस्ती और हंसी-मजाक के साथ एक-दूसरे को मूर्ख बनाते हुए मनाया जाता है।
 
3. अप्रैल फूल डे पर लोग प्रेक्टिकल जोक्स (शरारतें) और अफवाहें फैला कर भी मनाते हैं। जोक्स और शरारतें जिनके साथ की जाती हैं उन्हें अप्रैल फूल या अप्रैल मूर्ख कहा जाता है। लोग अपनी शरारतों का खुलासा, अप्रैल फूल चिल्ला कर करते हैं। अप्रैल फूल मनाने के पीछे का कारण अपने पहचान वालों को बिना अधिक परेशान किए, मजाक के लिए शरारतें करने का होता है।
 
4. इस दिन लोग अपने मित्रों, पड़ोसियों और यहां तक कि घर के सदस्यों से भी बड़े ही विचित्र प्रकार के हंसी-मजाक, मूर्खतापूर्ण कार्य, झूठी सूचना और धोखे में डालने वाले उपहार देकर आनंद लेते हैं।
 
5. हर कोई अपने आस-पास के लोगों को उल्लू बनाने अर्थात मूर्ख बनाने का प्रयास करता है। वहीं हर कोई मूर्ख बनने से बचना भी चाहता है, इसलिए इस दिन मिलने वाली किसी भी सूचना या बात को अक्सर बिना जांच पड़ताल के गंभीरता से न हीं लिया जाता।

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