Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

विधान सभा चुनाव तय करेंगे मोदी सरकार का भविष्य

हमें फॉलो करें विधान सभा चुनाव तय करेंगे मोदी सरकार का भविष्य
, गुरुवार, 18 जनवरी 2018 (16:03 IST)
नई दिल्ली। वर्ष 2018 में देश के आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें तीन बड़े राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं।
   
इस साल कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों के अलावा मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम में भी चुनाव होने हैं। इन राज्यों को अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है। सभी जानते हैं कि इनके नतीजों का असर 2019 के आम चुनावों पर पड़ेगा।
 
इस समय भाजपा देश के 19 राज्यों और 68 फीसदी आबादी पर राज कर रही है। लेकिन गुजरात में फीकी जीत के बावजूद पार्टी चुनाव वाले राज्यों में सबसे बेहतर तैयारी के साथ दिख रही है। इन आठ राज्यों में विधानसभा की 964 सीटें हैं जिनमें से 417 पर भाजपा और 321 पर कांग्रेस के प्रतिनिधि हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों की 99 में से 79 सीटें भाजपा ने जीती थीं।
 
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ताकत लगाएगी कि किस तरह से वहां पर भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जाय, जबकि भाजपा, कांग्रेस से कर्नाटक, मेघालय और मिजोरम की सत्ता भी छीनने की कोशिश करेगी ताकि उसका 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना पूरा हो सके। गुजरात और हिमाचल के चुनावों में जीत के बाद भाजपा के हौसले बुलंद हैं।
 
पर सवाल किया जा सकता है कि क्या मध्य प्रदेश में कमल फिर खिलेगा? मध्यप्रदेश में इस वर्ष नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। राज्य में कुछ 230 सीटें हैं जिनमें से भाजपा के पास 165, कांग्रेस के पास 58, बसपा की चार सीटें हैं जबकि तीन सीटें निर्दलीय विधायकों की हैं। राज्य में तीस महिला विधायक हैं। 
 
राज्य में पिछली बार वर्ष 2013 में 72.07 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार सरकार विरोधी मतों की संख्या बढ़ने के आसार हैं क्योंकि यहां लगातार 15 वर्षों से भाजपा सत्ता में है और राज्य में सत्ता विरोधी रुझान होना स्वाभाविक है। जहां तक मध्य प्रदेश की बात है तो अगर यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ जैसे नेता एकजुट नहीं हो पाते हैं तो कांग्रेस यह मौका भी गंवा सकती है। एकजुट और संगठित कांग्रेस ही कुछ बदलाव कर पाने में सक्षम हो सकती है।
 
राजस्थान में भी इसी वर्ष नवंबर दिसंबर में विधानसभा चुनाव संभावित हैं। राज्य में विधानसभा की 200 सीटें हैं। इस राज्य में भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल है और राज्य की कुछ सीटों में से 163पर भगवा पार्टी का कब्जा है। कांग्रेस के पास मात्र 21 सीटें हैं। बाकी बसपा की 3 और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीईपी) का 4 और नेशनल यूनियनिस्ट जमींदार पार्टी की 2 सीटें और 7 सीटें निर्दलीय लोगों के पास हैं। 
 
हालांकि राजस्थान में भाजपा का आधार मजबूत है लेकिन केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की नीतियों से लोगों में असंतोष हो सकता है और यह मतदाताओं को पार्टी से दूर कर सकता है। पार्टी में अंदरूनी कलह और असंतोष भी विरोधियों का सहारा बन सकता है। वसुंधरा राजे के सामने चुनौती होगी कि वे अपनी ताकत को बनाए रखने में कामयाब होती हैं या नहीं।  
 
राजस्थान भी हिंदुत्व की बड़ी प्रयोगशाला बन गया है। यहां गोहत्या को लेकर हिंसा की कई वारदातें हुई हैं और लोगों की मौत भी हुई हैं। अब इसका फायदा भाजपा उठा पाएगी या फिर कांग्रेस, यह बात भविष्य ही तय करेगा। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की सरकार बनी रहेगी या नहीं, यह तो कांग्रेस के नेताओं की एकजुटता और प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। 
 
कांग्रेस के पास बड़े राज्यों में पंजाब और कर्नाटक ही बचे हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी के सामने कर्नाटक को बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि येदुरप्पा वहां काफी लोकप्रिय हैं, जिन्हें शाह ने बीजेपी में शामिल करवा लिया है। पार्टी उन्हें भावी मुख्‍यमंत्री के तौर पर भी पेश कर सकती है।
 
भाजपा ने कर्नाटक में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रचार के लिए पहले ही आगे कर चुकी है और वहां पर हिंदुत्व की फसल काटने का पूरा प्लान है। योगी पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सीधे जवाबी हमला भी बोल रहे हैं और दोनों ही दल साम, दाम, दंड, भेद के बल पर सफलता पाना चाहते हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि कर्नाटक में चुनाव प्रचार गुजरात की ही तरह तीखा और काफी आक्रामक होने वाला है।
 
वामपंथियों के खिलाफ आग उगलने वाली भाजपा त्रिपुरा की माणिक सरकार को चुनौती देने की कोशिश करने में सफल होगी या नहीं। अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन वामपंथियों को त्रिपुरा से हटाने का काम आसान नहीं होगा। अब वामपंथियों की सरकार देश में त्रिपुरा के अलावा सिर्फ केरल में बची है। विदित हो कि 2013 के चुनाव में भाजपा ने 50 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी। 
 
अमित शाह इस हालात को बदलने के लिए त्रिपुरा की यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने वहां 7 जनवरी को दो रैलियां की हैं और वहां त्रिपुरा के पार्टी नेताओं और बुद्दिजीवियों से मुलाकात की है। इससे पहले उन्होंने 6 जनवरी को कांग्रेस शासित मेघालय में रैली की है। इन दोनों राज्यों में दूसरी पार्टियों के कई नेता भाजपा में शामिल हुए हैं लेकिन इसे पार्टी की मजबूती नहीं मानी जा सकती है।
 
यह कहना गलत न होगा कि 2018 में पहली बार भाजपा को इन आठ राज्यों में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। बशर्ते कांग्रेस अपनी सेल्फ गोल करने की आदत छोड़ दे और अपने बयानवीर 'अय्यरों' पर काबू रखे। राम मंदिर मामला भी 2018-19 की पृष्ठभूमि तैयार करेगा लेकिन इससे भाजपा को कोई अतिरिक्त लाभ मिलना संदिग्ध है, क्योंकि मंदिर निर्माण में पहले ही काफी देर हो चुकी है।
 
इन आठ राज्यों में से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव पार्टी के लिए काफी निर्णायक होंगे क्योंकि ये नवंबर-दिसंबर में होंगे।साथ ही, ये सभी बड़े राज्य हैं और हिंदी भाषी हैं। हालांकि सियासी चेहरे के मामले में अभी भी नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नजर नहीं आता है और अभी तक विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया है। इसका असर भी इन चुनावों में देखने को मिलेगा। जहां तक मोदी की अपनी छवि का सवाल है तो लोग उनके कार्यकाल का एक बड़ा हिस्सा देख चुके हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रिपब्लिक डे स्पीच बनाना है तो ऐसे करें तैयारी, पढ़ें 10 ज़रूरी बातें