बंगाल चुनाव के पहले की राजनीति अपने चरम पर है। कभी प्रधानमंत्री मोदी खुद बंगाल में रैली करते हैं तो कभी ममता बनर्जी के पैर कुचलने वाली घटना होती है, राजनीतिक गलियारों में इस घटना को ड्रामा कहा जा रहा है। हालांकि बंगाल की जनता किस करवट बैठेगी यह कहना बेहद मुश्किल हो गया है, क्योंकि दोनों ही दलों की सभाओं में जमकर हुजूम उमड़ रहा है।
चुनाव इतना जबर्दस्त है कि भाजपा और टीएमसी दोनों ही बंगाल को आमार शोनार बांग्ला बनाने के दावे जनता से कर रहे हैं। बीजेपी की काफी पहले से बंगाल पर नजर थी, उधर दीदी को लगता था कि बंगाल तो सिर्फ उन्हीं का है। लेकिन जिस तरह से टीएमसी के दिग्गज एक एक कर बीजेपी में आ गए, तो दीदी को अपने पैर के नीचे की जमीन खिसकती नजर आ रही है।
यहां तक कि जो दीदी के सिपहसालार माने जाते थे वे भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। ऐसे में दीदी को अब जीत के लिए ज्यादा जोर लगाना होगा तो वहीं बीजेपी के छह ऐसे चेहरे हैं, जिन पर बंगाल में जीत का पूरा दारोमदार है। इनमें सबसे पहला नाम कैलाश विजयवर्गीय हैं।
दिलीप घोष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सिपाही रहे दिलीप घोष फिलहाल पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष और मेदनीपुर से सांसद हैं। 2015 से वह राज्य बीजेपी की कमान संभाल रहे हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में घोष ने कांग्रेस के दिग्गज और सात बार लगातार विधायक रहे ज्ञानसिंह सोहनपाल को खड़गपुर सदर सीट से हराया था और राज्य में बीजेपी के लिए बड़ी सफलता की संभावनाओं की अलख जगाई थी। 2016 में अमेरिका में जाकर बंगाली हिन्दुओं के उत्पीड़न और बांग्लादेशी घुसपैठियों पर व्याख्यान दिया था। 1980 के दशक में अंडमान निकोबार में भी संघ प्रचारक के तौर पर सेवा दे चुके हैं। संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन के सहायक भी रह चुके हैं।
मुकुल रॉय
बंगाल की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले मुकुल रॉय कभी टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के खास हुआ करते थे। टीएमसी में उनकी जगह नंबर दो की थी, लेकिन 2017 में मुकुल रॉय बीजेपी में आ गए। मुकुल की रणनीति का ही कमाल कहें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बंगाल में अप्रत्याशित तरीके से जीत दर्ज की। बीजेपी को राज्य की कुल 48 में से 18 सीटों पर जीत मिली। फिलहाल मुकुल रॉय बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वह पार्टी के प्रदेश प्रभारी और चुनावी रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय के भी खास हैं। मुकुल रॉय ने ही टीएमसी के कई नेताओं-विधायकों के लिए बीजेपी की राह आसान कराई है।
शुभेंदु अधिकारी
बंगाल में ममता बनर्जी की 'मां, माटी और मानुष' की लड़ाई हो या नंदीग्राम और सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सड़कों पर जन आंदोलन का मामला हो, शुभेंदु अधिकारी हमेशा ममता बनर्जी के साथ खड़े रहने वाले नेताओं में आगे थे। वह ममता के सबसे करीबी नेताओं में थे। साल 2016 में शुभेंदु अधिकारी ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर नंदीग्राम से बड़ी जीत दर्ज की थी। उन्हें 87 फीसदी वोट मिले थे। उन्होंने तब सीपीआई के अब्दुल कबीर को 81, 230 वोटों के अंतर से हराया था लेकिन अब वो तृणमूल छोड़कर बीजेपी के साथ जा चुके हैं। वो पिछले कुछ महीनों से दीदी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पर हमलावर रहे हैं। शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी टीएमसी के सांसद हैं। नंदीग्राम के आसपास के इलाकों में उनके परिवार का बड़ा सियासी दबदबा रहा है। इसी वजह से शुभेंदु ने ममता को नंदीग्राम से 50,000 वोट से हराने की चुनौती दी है।
स्वप्नदास गुप्ता
दासगुप्ता बीजेपी के राज्यसभा सांसद हैं। दासगुप्ता मूलरूप से पत्रकार रहे हैं। उन्हें 2015 में पद्म भूषण सम्मान मिल चुका है। 2016 में बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रपति द्वारा संसद के ऊपरी सदन से नामित करवाया था। बंगाली अस्मिता और बंगालियों में हिन्दुत्व जागरण के आर्किटेक्ट माने जाते हैं। पिछले साल दासगुप्ता को शांति निकेतन विश्वविद्यालय में छात्रों ने छह घंटे तक बंधक बनाकर रखा था। वहां वह ''सीएए 2019 समझ और व्याख्या'' विषय पर आयोजित एक व्याख्यान श्रृंखला में बोलने गए थे। दासगुप्ता बीजेपी में दूसरे दलों के नेताओं को लाने के शिल्पकार भी रहे हैं।
मिथुन चक्रवर्ती
बॉलीवुड स्टार रहे 70 वर्ष के मिथुन चक्रवर्ती हाल ही में पीएम मोदी संग कोलकाता में मंच साझा कर चुके हैं। पीएम के पहुंचने से थोड़ी देर पहले ही उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ली थी। इससे पहले मिथुन चक्रवर्ती भी ममता बनर्जी के करीबी रह चुके हैं। वह अप्रैल 2014 से दिसंबर 2016 तक टीएमसी के राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। साल 2011 में जब ममता बनर्जी ने राज्य में 34 वर्षों के वाम दलों के शासन का अंत किया तो उनकी लोकप्रियता उभार मार रही थी। तभी मिथुन चक्रवर्ती को ममता बनर्जी ने राजनीति से जुड़ने का न्योता भेजा था। मिथुन तभी न्योते को स्वीकार करते हुए टीएमसी में शामिल हो गए थे। हालांकि, 2015-2016 में जब शारदा चिटफंड घोटाले में मिथुन चक्रवर्ती का भी नाम जुड़ा तो उन्होंने दिसंबर 2016 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था।