पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने 1 और 13 मई 1998 को परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंकाया था। अमेरिका जैसा देश भी भारत के इस कदम से हतप्रभ रह गया था। अटलबिहारी वाजपेयी ने लीक से हटकर पहली बार पोखरण में एक के बाद एक 5 परमाणु बम परीक्षण करने का माद्दा दिखाया। उन्होंने बड़े ही गोपनीय तरीके से इस परीक्षण को अंजाम दिया। अटलजी के नेतृत्व में ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों में शामिल हुआ था।
1974 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय दबाव व राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति के अभाव में भारत के परमाणु कार्यक्रम की दिशा में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई। 1998 में केंद्रीय सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।
अमेरिका को कहीं न कहीं अंदेशा था कि भारत कोई बड़ा कदम उठाने वाला है इसलिए वह सालों से अपने सैटेलाइट के जरिए भारत की खुफिया गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे। अमेरिका को धूल छकाते हुए भारत ने ये परमाणु परीक्षण किए। परमाणु परीक्षण की धमाकों की गूंज ने व्हाइट हाउस को हिलाकर रख दिया था।
वाजपेयी ने अपने चुनाव अभियान में भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया था। सत्ता में आने के 2 महीने के अंदर ही उन्होंने अपने इस वादे को मूर्तरूप देने के लिए परमाणु वैज्ञानिकों को यथाशीघ्र दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए।
11 मई 1998 को दोपहर 15.45 बजे भारत ने पोखरण रेंज में 3 अंडरग्राउड न्यूक्लियर टेस्ट किया। इसके बाद 13 मई को भी भारत ने 2 न्यूक्लियर टेस्ट किया जिसकी घोषणा खुद अटलबिहारी वाजपेयी ने की। पोखरण परीक्षण रेंज पर 5 परमाणु परीक्षण करने के बाद भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर ही नहीं किए थे।
परमाणु परीक्षण को सफल बनाने के पीछे की कहानी बेहद रोचक है। अटलबिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बने सिर्फ 3 महीने ही हुए थे, लेकिन वे ऐसा धमाका करेंगे जिसकी गूंज अमेरिका तक पहुंचेगी ये शायद किसी ने नहीं सोचा था। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के निर्देश पर मिसाइलमैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम इस प्रोजेक्ट की कमान को संभाला था। इस मिशन को 'ऑपरेशन शक्ति' का नाम दिया गया था।