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नागरिक क्यों नहीं जान सकते राजनीतिक दलों के चंदे का स्रोत?

हमें फॉलो करें नागरिक क्यों नहीं जान सकते राजनीतिक दलों के चंदे का स्रोत?
नई दिल्ली , सोमवार, 30 अक्टूबर 2023 (17:49 IST)
Political party donation issue : अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बांड योजना के तहत मिलने वाले चंदे के स्रोत के बारे में नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सूचना पाने का अधिकार नहीं है। वेंकटरमणी ने राजनीतिक वित्त पोषण के लिए चुनावी बांड योजना से राजनीतिक दलों को ‘क्लीन मनी’ मिलने का उल्लेख करते हुए यह कहा।

शीर्ष न्यायालय में दाखिल की गई एक दलील में वेंकटरमणी ने कहा कि तार्किक प्रतिबंध की स्थिति नहीं होने पर किसी भी चीज और प्रत्‍येक चीज के बारे में जानने का अधिकार नहीं हो सकता। अटार्नी जनरल ने शीर्ष न्यायालय से कहा, जिस योजना की बात की जा रही है, वह अंशदान करने वाले को गोपनीयता का लाभ देती है।

वेंकटरमणी ने कहा कि यह इस बात को सुनिश्चित और प्रोत्साहित करती है कि जो भी अंशदान हो, वह कालाधन नहीं हो। यह कर दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करती है। इस तरह, यह किसी मौजूदा अधिकार से टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करती।
 
शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति, बेहतर या अलग सुझाव देने के उद्देश्य से सरकार की नीतियों की पड़ताल करने के संबंध में नहीं है। उन्होंने कहा, एक संवैधानिक न्यायालय सरकार के कार्य की तभी समीक्षा करता है जब यह मौजूदा अधिकारों का हनन करता हो...।
 
वेंकटरमणी ने कहा, राजनीतिक दलों को मिलने वाले इन चंदों या अंशदान का लोकतांत्रिक महत्व है और यह राजनीतिक बहस के लिए एक उपयुक्त विषय है। प्रभावों से मुक्त शासन की जवाबदेही की मांग करने का यह मतलब नहीं है कि न्यायालय एक स्पष्ट संवैधानिक कानून की अनुपस्थिति में इस तरह के विषयों पर आदेश देने के लिए आगे बढ़ेगा।
 
उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ याचिकाओं के उस समूह पर 31 अक्टूबर से सुनवाई शुरू करने वाली है, जिनमें पार्टियों के लिए राजनीतिक वित्त पोषण की चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती दी गई है। सरकार ने यह योजना दो जनवरी 2018 को अधिसूचित की थी। इस योजना को राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के हिस्से के रूप में पार्टियों को नकद चंदे के एक विकल्प के रूप में लाया गया।
 
इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड भारत का कोई भी नागरिक या भारत में स्थापित संस्था खरीद सकती है। कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य लोगों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ चार याचिकाओं के समूह पर सुनवाई करने वाली है। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की याचिकाएं शामिल हैं।
 
पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा हैं। शीर्ष न्यायालय ने 20 जनवरी 2020 को 2018 की चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर स्थगन का अनुरोध करने संबंधी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की अंतरिम अर्जी पर केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था।
 
केवल जन प्रतिनधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और पिछले लोकसभा चुनाव या राज्य विधानसभा चुनाव में पड़े कुल मतों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल करने वाले दल ही चुनावी बांड प्राप्त करने के पात्र हैं।
 
अधिसूचना के मुताबिक, चुनावी बांड को एक अधिकृत बैंक खाते के जरिए ही राजनीतिक दल नकदी में तब्दील कराएंगे। केंद्र और निर्वाचन आयोग ने पूर्व में न्यायालय में एक-दूसरे से उलट रुख अपनाया है। एक ओर, सरकार चंदा देने वालों के नामों का खुलासा नहीं करना चाहती, वहीं दूसरी ओर निर्वाचन आयोग पारदर्शिता की खातिर उनके नामों का खुलासा करने का समर्थन कर रहा है।(भाषा)
Edited By : Chetan Gour 


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