नई दिल्ली। अधिकतर विपक्षी दलों ने दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताने के बावजूद कुल मिलाकर विधेयक का समर्थन किया और इसे समय की जरूरत बताई।
कांग्रेस के गौरव गोगोई ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि समाधान प्रक्रिया पूरी करने के लिए अधिकतम समय सीमा 270 दिन से बढ़ाकर 330 दिन करने का निर्णय अच्छा है, लेकिन सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 330 दिन के भीतर प्रक्रिया पूरी हो जाए।
अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों के साथ उन्होंने भी ऋणदाताओं की समिति के फैसले को केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों के लिए बाध्यकारी बनाने पर आपत्ति जताई और कहा कि इस प्रावधान को हटाया जाना चाहिए।
गोगोई ने कहा कि विशेषकर अपनी जिंदगीभर की जमा पूंजी लगाकर अपना मकान खरीदने की चाहत रखने वाले निवेशकों के हितों की रक्षा के उपाय किए जाने चाहिए। ऋणदाताओं की समिति में बैंकों और मकान खरीदने वालों के हित अलग-अलग होंगे। बैंक अपना पैसा वापस चाहेंगे या अचल संपत्ति पर कब्जा चाहेंगे जबकि मकान के लिए निवेशक करने वाले पैसे के बदले मकान चाहेंगे। यहां सरकार को यह देखना होगा कि छोटे निवेशकों के हितों की अनदेखी न हो।
कांग्रेस सदस्य ने कहा कि दिवाला कानून बनने के बाद 3 साल में अब तक मिश्रित परिणाम देखने को मिले हैं। समाधान प्रक्रिया के लिए 2,157 आवेदन आने हैं जबकि मात्र 117 मामलों में समाधान योजना को मंजूरी मिली है। इसके विपरीत बड़ी संख्या में कंपनियों को बेचा गया है, जहां ऋणदाताओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इलेक्ट्रोस्टील के मामले में 40 प्रतिशत, भूषण स्टील के मामले में 63 प्रतिशत और आलोक इंडस्ट्रीज के मामले में मात्र 17 प्रतिशत पैसा बैंकों को वापस मिल सका।
इससे पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विधेयक को चर्चा के लिए पेश किया। इस विधेयक का उद्देश्य दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता में संशोधन करना है। राज्यसभा में यह विधेयक 29 जुलाई को पारित हो चुका है। मौजूदा कानून में समाधान प्रक्रिया 180 दिन में पूरी करने का प्रावधान था तथा इस समय सीमा को 90 दिन और बढ़ाने का विकल्प दिया गया था। अब समय विस्तार सहित अधिकतम समय सीमा 330 दिन हो जाएगी।