सचिन पायलट का अनशन के बाद करप्शन के खिलाफ लड़ाई तेज करने का एलान, सवाल क्यों टूट रहा सब्र का बांध?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वसुंधरा सरकार के करप्शन के खिलाफ लिखे पत्रों का जवाब नहीं दिया: सचिन पायलट
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बड़े संकट में फंस गई है। राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट आज अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन किया। महात्मा गांधी के पोस्टर लगे मंच पर बैठे सचिन पायलट ने अनशन की वजह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई का हिस्सा बताया।
आज अनशन खत्म करने के बाद सचिन पायलट ने कहा कि 2018 का विधानसभा चुनाव हमने वसुंधरा राजे की सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करके लड़ा था और जनता से वादा किया था कि सरकार में आने पर वसुंधरा सरकार के करप्शन के खिलाफ प्रभावशाली कार्रवाई करेंगे लेकिन कांग्रेस सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा कि करप्शन को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखे लेकिन मुख्यमंत्री ने न तो कार्रवाई की और न ही पत्र पर जवाब दिया। पायलट ने कहा कि मुख्यमंत्री उनको अन्य पत्रों को जवाब दे देते है लेकिन करप्शन पर लिखे पत्र का जवाब नहीं दिया।
राज्य में 6-7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में सचिन पायलट के अनशन से राजस्थान में पार्टी बड़े संकट में फंसते हुए दिख रही है। वहीं सचिन पायलट ने आज अनशन खत्म होने के बाद ऐलान कर दिया है कि करप्शन के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी।
सचिन पायलट का सब्र का बांध टूट रहा है?-कांग्रेस में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबियों में गिने जाने वाले सचिन पायलट के चुनाव के समय बागवती तेवर से पार्टी हैरान है। राजस्थान में कांग्रेस की कमान संभाल चुके सचिन पायलट ने अपने एक बयान में कहा था कि "राहुल गांधी मेरे धैर्य की तारीफ कर चुके हैं”।
ऐसे में सवाल यह है क्यों चुनाव के समय सचिन पायलट के सब्र का बांध अब टूट रहा है। इसकी वजह है राजस्थान में सचिन पायलट का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से तालमेल नहीं बैठना है। राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट के नेतृत्व में पार्टी ने जीत हासिल की थी। चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन कांग्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी। वहीं सचिन पायलट राजस्थान के उप मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 2020 में सचिन पायलट की पार्टी से बगावत के बाद उन्हें सरकार से हटा दिया गया।
जुलाई 2020 में पार्टी से बागवती तेवर दिखाने के बाद सचिन पायलट राज्य में बिना किसी पद के काम कर रहे हैं। ऐसे में अब चुनाव में 6 महीने का वक्त बचा है तब सचिन पायलट को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी (प्रदेश अध्यक्ष) नहीं बनाए जाना,उनकी नाराजगी का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।
तीसरी बार सचिन पायलट-गहलोत आमने-सामने?-राजस्थान में ऐसा नहीं है कि सचिन पायलट ने पहली बार अपनी बागवती तेवर दिखाए है और उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ आरपार की लड़ाई का एलान किया है। पिछले साढ़े चार साल में यह तीसरा मौका है जब सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आमने सामने आ गए है।
जून 2020 में सचिन पायलट ने बागवती तेवर दिखाते हुए एक महीने तक सचिन पायलट अपने गुट के विधायकों के साथ राजस्थान से बाहर निकलकर हरियाणा से दिल्ली के चक्कर लगाते रहे लेकिन वह तमाम कोशिशों के बाद गहलोत सरकार का तख्ता पलट नहीं कर पाए थे। सचिन पायलट के अपने समर्थक विधायकों के साथ बागी तेवर दिखाने के बाद अशोक गहलोत ने सियासी संकट में फंसी अपनी सरकार को न केवल निकाला था बल्कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को कांग्रेस में किनारे पर लाकर खड़ा कर दिया था।
इसके बाद पिछले साल सितंबर (2022) में सचिन पायलट और मुख्मंत्री अशोक गहलोत राज्य में मुख्यमंत्री पद को लेकर फिर आमने-सामने आ गए थे। इस बार भी अशोक गहलोत सचिन पायलट पर भारी पड़े थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न केवल मुख्यमंत्री पद छोड़ने से इंकार कर दिया था बल्कि मुख्यमंत्री पद को लेकर सीधी कांग्रेस आलाकमान को चुनौती दे दी थी।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के सियासी अदावत किसी से छिपनी नहीं है। दोनों ही नेता पिछले चार साल में केवल सियासी तौर पर नहीं बल्कि निजी हमले करते आए है। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को सार्वजनिक तौर पर नाकारा और निकम्मा कहा था। इसके साथ अशोक गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया था कि उनकी सरकार को गिऱाने के षड़यंत्र में सचिन पायलट और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत शामिल थे।
सचिन पायलट को पार्टी की नसीहत-सचिन पायलट भले ही अपनी लड़ाई को करप्शन के खिलाफ लड़ाई बता रहे है लेकिन पार्टी ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि करार दे दिया है। राजस्थान के प्रदेश प्रभारी ने सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि बता दिया और कांग्रेस उनको पार्टी के अंदर अपनी बात रखनी चाहिए। वहीं सचिन पायलट ने अपनी सफाई में कहा कि यह पार्टी का विषय नहीं सरकार का विषय था इसलिए उन्होंने इस मुद्दों को पार्टी के अंदर नहीं रखा। ऐसे में अब जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव में चंद महीने बचे है तब सचिन पायलट आगे क्या करते है इस पर सबकी निगाहें होगी।