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बिहार में जातीय जनगणना : EBC सबसे ज्यादा, राजनीति के केंद्र में क्यों है OBC?

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, मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023 (07:47 IST)
Bihar Caste census report : लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए। इसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सुमदाय है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है।

दावा किया जा रहा है कि अब केंद्रीय स्तर पर जाति गणना कराने, जातियों की आबादी के हिसाब से नीतियां बनाने और समुचित अनुपात में सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी देने की मांग और तेजी होगी।
 
बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है। इसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है।
 
सर्वेक्षण में कहा गया है कि अनुसूचित जाति राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) है।
 
अनारक्षित श्रेणी से संबंधित लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर हावी रहने वाली उच्च जातियों को दर्शाते हैं।
 
सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में हिंदू समुदाय कुल आबादी का 81.99 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम समुदाय 17.70 प्रतिशत है। ईसाई, सिख, जैन और अन्य धर्मों का पालन करने वालों के साथ-साथ किसी धर्म को न मानने वालों की भी बहुत कम उपस्थिति है, जो कुल आबादी का एक प्रतिशत से भी कम है।
 
बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने एक बयान जारी कर घोषणा की कि यह कवायद देशव्यापी जाति जनगणना के लिए माहौल तैयार करेगी। लालू प्रसाद और नीतीश दोनों ने विपक्षी गठबंधन ‘‘इंडिया’’ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विपक्षी गठबंधन ने हाल ही में बेंगलुरु में आयोजित एक बैठक में जाति जनगणना कराने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
 
यह सर्वेक्षण अगले लोकसभा चुनाव से पहले की राजनीति का हिस्सा बनेगा, यह बात विपक्षी गठबंधन के अन्य घटक दलों के नेताओं ने भी पहले ही स्पष्ट कर दी थी।
 
भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि 2021 में कोई नियमित जनगणना नहीं हुई थी जबकि बिहार राज्य इस वर्ष जाति सर्वेक्षण करने में कामयाब रहा है, यह केंद्र सरकार की अक्षमता को उजागर करता है।’’
 
भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि नौकरी में आरक्षण के लिए मंडल की सिफारिशें 1931 की जनगणना पर आधारित थीं, जिसमें पिछड़ों का प्रतिशत 52 प्रतिशत रखा गया था, लेकिन हम देख सकते हैं कि जनसंख्या तब से बढ़ी है....इसका मतलब है कि इस मुद्दे पर अब नए सिरे से सोचना होगा।
 
हालांकि विपक्षी पार्टी भाजपा ने जाति सर्वेक्षण पर असंतोष व्यक्त किया और इस बात पर जोर दिया कि इसके साथ विभिन्न समुदायों की वर्षों में बदली हुई सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं से संबंधित आंकडे नहीं जारी किए गए हैं।
 
भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी ने जाति आधारित गणना कराए जाने को अपना समर्थन दिया था। उन्होंने कहा कि इस कवायद के आज सार्वजनिक किए गए निष्कर्षों का अध्ययन करने के बाद ही उनकी पार्टी टिप्पणी करेगी।
 
विभिन्न समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को लेकर आंकड़े जारी नहीं करने के बारे में पूछे जाने पर चौधरी ने कहा कि विभिन्न समुदायों की गणना के साथ यह भी सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए था कि किसका उत्थान हुआ और किसका नहीं, इसको भी जारी किया जाना चाहिए था।
 
बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में जाति आधारित गणना का आदेश पिछले साल तब दिया थाए जब केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह आम जनगणना के हिस्से के रूप में एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों की गिनती नहीं कर पाएगी। देश में आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी। (इनपुट : भाषा)
Edited by : Nrapendra Gupta
 


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