Bihar caste census : सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय करोल ने बिहार सरकार की ओर से दाखिल उस याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें राज्य में उसके द्वारा की जा रही जातीय जनगणना पर रोक लगाने के पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति करोल को 6 फरवरी 2023 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। इससे पहले वह पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवाएं दे रहे थे। उन्होंने कहा कि वह कुछ संबंधित मुकदमों में पक्षकार थे, जिन पर पहले उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई थी।
शीर्ष अदालत की संबंधित पीठ ने इसके बाद याचिका को भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया, ताकि सुनवाई के लिए एक उपयुक्त पीठ का गठन किया जा सके। इस पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल थे।
पटना उच्च न्यायालय के 4 मई के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दायर याचिका में बिहार सरकार ने कहा है कि जातीय जनगणना पर रोक से पूरी कवायद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि जाति आधारित डेटा का संग्रह अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक जनादेश है।
क्या हैं संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 : संविधान का अनुच्छेद 15 कहता कि राज्य धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा। वहीं, अनुच्छेद 16 कहता है कि राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में नियोजन या नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे।
80 फीसदी सर्वे पूरा: याचिका में बिहार सरकार ने दलील दी कि राज्य ने कुछ जिलों में जातिगत जनगणना का 80 फीसदी से अधिक सर्वे कार्य पूरा कर लिया है और 10 फीसदी से भी कम काम बचा हुआ है। पूरा तंत्र जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। विवाद में अंतिम निर्णय आने तक इस अभ्यास को पूरा करने से कोई नुकसान नहीं होगा।
उच्च न्यायालय ने विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह जाति-आधारित गणना को तुरंत रोक दे और यह सुनिश्चित करे कि पहले से ही एकत्र किए गए डेटा को सुरक्षित रखा जाए और अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ साझा न किया जाए। इस मामले में अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी।