लगातार उठापटक के बीच भाजपा उत्तराखंड की देवभूमि पर केसरिया परचम फहराने को आतुर थी। और आखिर वो सफल हो ही गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार हो रही रैलियों से माहौल भाजपा के पक्ष में शुरू से ही नजर आ रहा था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत यहां अकेले दिखाई दे रहे थे। मोदी के करारे हमलों का भी उनके पास कोई जवाब नहीं था और न ही उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं का साथ मिला। राहुल गांधी ने उत्तरप्रदेश और पंजाब में तो प्रचार किया, लेकिन उत्तराखंड पर उनका ध्यान ही नहीं था।
अकेले पड़े हरीश रावत को भाजपा ने इस तरह घेरा कि वे न तो राज्य में उनका सामना कर सके न अपने घर में। वे हरिद्वार ग्रामीण और उधमसिंह नगर जिले की किच्छा सीट से चुनाव लड़े और दोनों पर ही पिछड़ गए।
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कांग्रेस वहां हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। मतदाता भी इस बात को महसूस कर रहे थे और उन्होंने बड़ी खामोशी के साथ भाजपा को मत देकर यह साबित कर दिया कि हरीश रावत विकास और भ्रष्टाचार दोनों ही मोर्चों पर मात खा गए।
पिछले कुछ समय से लगातार आ रहे स्टिंग ऑपरेशंस ने भी हरीश रावत की छवि को बुरी तरह प्रभावित किया। यह भी एक बड़ा कारण रहा कि लोगों का उन पर से भरोसा उठ सा गया और कांग्रेस को इस तरह की करारी मात मिली। इसके अतिरिक्त भाजपा को इस बात का भी फायदा मिला कि उसने विरोध के बावजूद उन लोगों पर दांव लगाया, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे।
चुनाव परिणाम से एक बात यह भी साफ हो गई कि लोगों ने भाजपा नहीं नरेंद्र मोदी के चेहरे को देखकर ही अपना मत दिया है और वे नोटबंदी समेत उनके द्वारा उठाए गए सभी कदमों से अपने प्रधानमंत्री के साथ खड़े हैं।