Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नया साल, नए चुनाव, क्‍या केंद्र में भाजपा की लगेगी हैट्रिक...

हमें फॉलो करें नया साल, नए चुनाव, क्‍या केंद्र में भाजपा की लगेगी हैट्रिक...
, गुरुवार, 30 दिसंबर 2021 (18:47 IST)
नई दिल्ली। नए साल में प्रवेश के साथ ही भारतीय जनता पार्टी को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की चुनौतियों से दो-चार होना पड़ेगा, जिसमें उसका प्रदर्शन यह तय करेगा कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में वह लगातार तीसरी जीत दर्ज कर केंद्र की सत्ता में हैट्रिक लगाने की स्थिति में होगी या फिर उसके सामने एक मजबूत विपक्ष होगा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब सहित 5 राज्यों के चुनाव सबसे अहम माने जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को वर्ष 2021 में एक ऐसी असामान्य परिस्थिति का सामना करना पड़ा, जब उसे तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ उत्तर भारत के किसानों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और अंतत: उसे उनके आगे झुकना पड़ा।

साथ ही तमाम प्रयासों और संसाधनों के इस्तेमाल के बावजूद वह पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का किला उखाड़ने में विफल रही। वर्ष 2022 में पता चलेगा कि इन दोनों महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रमों का तात्कालिक प्रभाव ही पड़ा है या फिर इसके दूरगामी प्रभाव भी होंगे।

बहरहाल, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की प्रमुख भूमिका होने वाली है। वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को शानदार सफलता मिली थी और यही वजह थी कि इसके बाद हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद वह वर्ष 2019 के चुनाव में सबकी पसंदीदा पार्टी के रूप में उभरी।

उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा के पिछले चुनाव में जब भाजपा ने 312 सीटों पर कब्जा जमाया था, तब नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था, इस हिसाब से तो हमें (विपक्ष) वर्ष 2019 भूल जाना चाहिए और 2024 के लिए तैयारी शुरु कर देनी चाहिए। उनकी इस प्रतिक्रया का बहुत लोगों ने मजाक बनाया था लेकिन वह सही साबित हुई।

गोवा और मणिपुर के साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में नए साल के शुरुआती महीनों में चुनाव होने हैं और निर्वाचन आयोग कभी भी इनकी तारीखों का ऐलान कर सकता है। लगातार दो लोकसभा चुनावों में भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन की बदौलत ही भाजपा बहुमत के आंकड़े को आसानी से पार करने में सफल रही।

उत्तर प्रदेश का चुनावी मैदान फिलहाल सज चुका है और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने राज्य में धुआंधार प्रचार अभियान की शुरुआत भी कर दी है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई विकास परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए वहां करीब दर्जनभर जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। उन्होंने उत्तराखंड व गोवा में भी ऐसी जनसभाओं को संबोधित किया है।

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बेहतर तरीके से समझने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी लगातार राज्य के दौरे कर रहे हैं क्योंकि पार्टी नेताओं को पता है कि उत्तर प्रदेश में एक और भारी बहुमत से जीत अगले लोकसभा चुनाव में उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा।

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भाजपा से मिल रही चुनौतियों के मद्देनजर आक्रामक रुख अख्तियार किया है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा के हिन्दुत्व कार्ड की वह हर एक काट निकालने में लगे हुए हैं। इसके मद्देनजर वह स्थानीय क्षेत्रीय दलों के साथ हाथ मिला चुके हैं और राज्य सरकार के विकास के दावों पर सवाल बरसा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की अच्छे अंतर से यदि जीत होती है तो इससे उसकी वैचारिक यात्रा को बल मिलेगा लेकिन यदि उसकी हार होती है तो इसके दूरगामी असर देखने को मिल सकते हैं। उत्तराखंड को भाजपा ने पिछले पांच सालों में पुष्कर सिंह धामी के रूप में तीसरा मुख्यमंत्री दिया है।

इस प्रकार से मुख्यमंत्रियों को बदलना, उसके लिए नुकसान का सौदा साबित हो सकता था लेकिन राज्य की विपक्षी कांग्रेस की अंदरुनी खींचतान, भाजपा के मजबूत संगठन और प्रधानमंत्री मोदी की अपील के सहारे उसने अपनी स्थिति बेहतर कर ली है।

आलोचकों का आरोप है कि उत्तराखंड के हरिद्वार में पिछले दिनों संपन्न हुए धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का आह्वान करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का अभाव इसलिए दिखा क्योंकि वहां चुनाव हैं और राज्य की सत्ताधारी भाजपा चाहती है कि चुनाव में धर्म के आधार पर गोलबंदी के मुद्दे हावी हों और सरकार विरोधी लहर पीछे छूट जाए और भाजपा को इसका लाभ उत्तर प्रदेश में भी हो।

ज्ञात हो कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमाएं सटी हैं। उत्तर प्रदेश से ही अलग होकर उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था। बहरहाल, हरिद्वार की घटना के मामले में प्राथमिकी दर्ज हो गई है और भाजपा ने यह कहकर इस मामले से दूरी बनाने की कोशिश की कि सवाल आयोजकों से पूछा जाना चाहिए।

पंजाब में अपना प्रभाव छोड़ने की भाजपा हरसंभव कोशिश कर रही है। कृषि कानूनों के मुद्दों पर उसके पुराने सहयोगियों में एक शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा का साथ छोड़ दिया। इसके बाद कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन तेज होता चला गया।

राज्य में भाजपा नेताओं को अपने कार्यक्रम तक करने में दिक्कतें होने लगी। हालांकि कृषि कानूनों को निरस्त कर भाजपा ने स्थितियां बदलने की कोशिश की है। अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए राज्य में भाजपा ने पूर्व कांग्रेसी दिग्गज अमरिंदर सिंह और अकाली दल के एक अलग हुए धड़े के साथ हाथ मिलाया और बड़ी संख्या में सिख नेताओं को पार्टी में शामिल किया है।

उत्तर प्रदेश के चुनाव को यदि देश का मूड भांपने के यंत्र के रूप में देखा जा रहा है तो वहीं पंजाब का चुनाव भाजपा के लिए एक प्रयोग होगा, जिसमें वह यदि अच्छा प्रदर्शन करती है तो विपरीत परिस्थितियों में भी बेहतर करने का वह संदेश देकर जाएगी। वर्ष 2021 भाजपा के लिए राजनीतिक और शासन के स्तर पर चुनौतियों वाला रहा।

क्योंकि कोविड-19 की दूसरी लहर में देश को बड़ा चुकसान उठाना पड़ा तो किसान संगठन सरकार के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आकर डट गए। वर्ष 2022 के नतीजे स्थापित करेंगे कि कोरोना और किसानों के मुद्दों पर भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों के असफल रहने के विपक्ष के आरोपों को जनता का साथ मिलता है या फिर जनता भाजपा पर अपना भरोसा कायम रखती है।

पांच राज्यों के चुनाव के बाद नए साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के भी विधानसभा चुनाव होने हैं। इन सात में से छह राज्यों में भाजपा का कब्जा है।(भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Corona : 33 दिन बाद 1 एक दिन में 10,000 केस, महाराष्ट्र-दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट ने बढ़ाई चिंता, बूस्टर डोज के लिए जारी हुए निर्देश