कम ही लोगों को जानकारी होगी कि भारत में वर्ष 1949 से 1977 तक 5000 और 10000 रुपए के नोट भी प्रचलन में थे। लेकिन 1977 में इंदिरा गांधी को हराकर सत्ता में आए मोरारजी देसाई ने एक अत्यंत बोल्ड कदम उठाते हुए 100 रुपए से अधिक के नोटों को अमान्य कर दिया था। तब भी यह निर्णय लेने के पीछे तात्कालिक कारण कालाधन पर रोक लगाना ही था।
इसका नतीजा यह रहा कि जिन लोगों ने अटैचियों, संदूकों, पेटियों में काले धन को जमा करके रखा था, वह तुरंत रद्दी के ढेर में तब्दील हो गया। हालत तो यह हो गई कि गैरकानूनी तरीकों से कमाए गए इस तरह के रुपयों को लोगों को नष्ट करने पर मजबूर होना पड़ा, क्योंकि छापे की कार्रवाई का डर था। पूरे दस साल तक यही व्यवस्था कायम रही।
इससे बाजार में ज्यादा हड़कंप इसलिए नहीं मचा, क्योंकि तब 100 रुपया भी एक बड़ी रकम हुआ करती थी और लोगों को इससे बड़े नोटों की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती थी। यह वह जमाना था, जब 5 और 10 पैसे के सिक्के भी चलन में थे, जबकि आज एक रुपए से कम का कोई सिक्का बाजार में नहीं मिलता है। आखिरकार बाजार के फैलने के साथ 500 का नोट 1987 में लाया गया और वर्ष 2000 में 1000 को नोट आया। अब ये दोनों ही नोट अमान्य हो गए हैं।