नई दिल्ली। कैंसर चिकित्सकों का कहना है कि खानपान, जीवनशैली में सुधार और समय-समय पर जांच वो तीन उपाय हैं जिनसे कैंसर का शिकार होने से बचा जा सकता है और अगर यह रोग घेर भी ले तो समय रहते इलाज से इससे मुक्त हुआ जा सकता है।
गैर सरकारी संगठन ‘रेस टू रेन इन कैंसर’ने यहां कैंसर चिकित्सकों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें छोटी-छोटी सावधानियां बरत कर कैंसर को मात देने के तरीके बताए गए। इंडियन सांइस कांग्रेस एसोसिएशन, दिल्ली चेप्टर व मीडिया इंडिया फॉर रिसर्च एंड डवलेपमेंट के सहयोग से कल आयोजित सम्मेलन में देश विदेश से करीब 30 कैंसर चिकित्सकों ने हिस्सा लिया जो इस खतरनाक बीमारी के इलाज की वैकल्पिक विधियों पर काम कर रहे हैं।
संस्था की एक विज्ञप्ति के मुताबिक इनमें से कुछ उपाय तो ऐसे हैं जो कैंसर रोग की चपेट में आने से बचाते हैं और कुछ कैंसर होने के बाद इसके ऐलोपैथिक इलाज व कीमोथैरेपी की पीड़ा को कम कर उसके सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाते हैं।
मुंबई के डॉ. एनआर कोचर ने बताया कि किस तरह आयुर्वेद पद्धति रोगी की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को इस तरह बढ़ाती है कि कैंसर के जीवाणु दोबारा रोगी के शरीर पर हावी नहीं हो पाते। इसी तरह इंग्लैंड से आए डॉक्टर एम. अली ने हाथों के कुछ ऐसे व्यायाम बताए, जिनसे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और उससे लाभकर जीवाणु सक्रिय होकर कैंसरकारी विषाणुओं को कमजार करते हैं।
एडजुवेंट नाम से जानी जाने वाली उनकी इस थैरेपी का मूलमंत्र है कि शरीर की अपनी एक हीलिंग ताकत होती है पर रोग के हावी हो जाने पर उस ताकत को जगाना जरूरी हो जाता है। मुंबई की ही डॉक्टर अमिता ठक्कर ने कहा कि अगर व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुकूल आचरण करे तो इस रोग से बच भी सकता है। इसलिए वह हिपनोटिज्म यानी सम्मोहन के जरिए रोगी को उसकी भीतरी गांठों से बाहर लाकर तन-मन आत्मा को एक करने की कोशिश करती हैं।
वक्तव्य में उनके हवाले से कहा गया कि इसमें नई ऊर्जा का संचार होता है और जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया उसे दोबारा रोग की चपेट में आने से बचाता है। डॉक्टर अमिता ने दावा किया कि इलाज की यह प्रक्रिया उनकी अपनी नहीं है बल्कि विदेशों में कई साल से इसका प्रयोग किया जा रहा है। भारत में उन्होंने इसे शुरू किया।
डेनमार्क से आई रोजमैरी कैली ने बताया कि सर्जरी के बाद रोगी के ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो इसके लिए वे हास्य थैरेपी का इस्तेमाल करती हैं। हंसने से पसलियों से लेकर गले व मस्तिष्क तक की नसें खुल जाती हैं और रक्त का संचार तेज हो जाता है।
सभी चिकित्सकों ने रोजमर्रा के जीवन में देसी मसालों व मौसमी फल सब्जियों के इस्तेमाल और योग व व्यायाम पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हल्दी, अदरक, मैथीदाना, अश्वगंधा, त्रिफला और अजवाइन ऐसी चीजे हैं जो हमारे शरीर की अग्नि को बनाए रखती हैं और अगर कीमोथैरेपी के साथ इन्हें दिया जाए तो कीमो के अन्य कुप्रभाव व दर्द दोनों ही काफी कम हो जाते हैं। उनके अनुसार इनसे रोगी में कैंसर की दवा को सुप्रभावी बनाने की क्षमता बढ़ जाती है और उसके शरीर में कमजोरी नहीं आती। एनजीओ की संस्थापक रीता बानिक खुद कैंसर से ग्रस्त हैं। (भाषा)