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इस बार न दिल मिले और न ही बंटा शक्कर-शर्बत

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सुरेश एस डुग्गर

, गुरुवार, 28 जून 2018 (19:05 IST)
चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर)। कई सौ सालों से चले आ रहे चमलियाल मेले पर आखिर इस बार सीमा के तनाव की छाया पड़ ही गई। पाक गोलियों से बचाने की खातिर हालांकि वार्षिक मेले का आयोजन तो हुआ पर उतनी संख्या में श्रद्धालु शामिल नहीं हुए जितने लगातार होते आए थे और इस बार दोनों मुल्कों के बीच शक्कर-शर्बत का आदान-प्रदान भी नहीं हुआ।
 
आसपास के गांवों के लोग दरगाह तक पहुंचे तो सही लेकिन उनमें डर सा समाया हुआ था क्योंकि बीएसएफ तथा स्थानीय प्रशासन ने मेले वाले दिन दरगाह पर आने वालों के चेताया था कि वे उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करवा सकते हैं। दरअसल इसी दरगाह के क्षेत्र में पाक सेना ने गोलों की बरसात कर पहली बार बीएसएफ के चार अधिकारियों को मार डाला था।
 
इसी तनाव और नाराजगी के चलते बीएसएफ ने इस बार मेला आयोजित न करने का फैसला लिया था तथा सीमा पार शक्कर-शर्बत भिजवाने से इंकार कर दिया था। करगिल युद्ध तथा उसके तीन साल बाद तारबंदी के दौरान उपजे तनाव के दौर में भी ऐसा हो चुका है।
 
सीमा सुरक्षाबल के कमांडिंग ऑफिसर के शब्दों में ‘हम खतरा मोल नहीं ले सकते थे। पाकिस्तान ने दरगाह को निशाना बनाकर सिर्फ गोलियां ही नहीं बल्कि मोर्टार भी दागे थे और ऐसे में जबकि दरगाह को अपवित्र करने की कोशिश उसके द्वारा की गई हो वह क्या मान्यता रखेगा बाबा के प्रति।’ कमांडिग ऑफिसर ने दरगाह की दीवारों पर लगे गोलियों के निशानों को दिखाया था।
 
एक सबसे बड़ा कारण इस बार दोनों देशों के बीच शक्कर व शर्बत के आदान-प्रदान न होने का यह भी रहा था। हालांकि इन सबके लिए जिम्मेदार तो सीमा का तनाव ही था जो भारी पड़ा था। वैसे भारतीय पक्ष की ओर से दरगाह पर दर्शनार्थ आने वालों को बाबा के प्रसाद के रूप में शक्कर (दरगाह के आसपास की विशेष मिट्टी) तथा शरबत (दरगाह के पास स्थित कुएं विशेष का पानी) तो प्रसाद के रूप में प्राप्त हुआ था परंतु सीमा के उस पार बाबा के पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को यह नसीब नहीं हुआ था क्योंकि इस बार भारतीय पक्ष ने इस प्रकार का आयोजन करने से मना कर दिया था।
 
मेले के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह थी कि जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ था तो दरगाह के दो भाग हो गए थे। असली दरगाह इस ओर रह गई और उसकी प्रतिकृति पाकिस्तानी नागरिकों ने अपनी सीमा चौकी सैदांवाली के पास स्थापित कर ली।
 
बताया यही जाता है कि पाकिस्तानी नागरिक बाबा के प्रति कुछ अधिक ही श्रद्धा रखते हैं तभी तो इस ओर मेला एक दिन तथा उस ओर सात दिनों तक चलता रहता है जबकि इस ओर 60 से 70 हजार लोग इसमें शामिल होते रहे हैं जबकि सीमा के उस पार लगने वाले मेले में शामिल होने वालों की संख्या चार लाख से भी अधिक होती है।
 
बीएसएफ द्वारा इजाजत न दिए जाने के कारण इस बार इस ओर कोई खास रौनक नहीं थी। कारण मेले का मुख्य आकर्षण दोनों देशों के बीच-शक्कर व शर्बत का आदान प्रदान का दृश्य होता था जो इस बार नदारद था।

 
सीमा पर बने हुए तनाव ने इस बार उन रोगियों के कदमों को भी रोक रखा था जो चर्म रोगों से मुक्ति पाने की खातिर इस दरगाह पर पहले सात सात दिनों तक रुकते थे, लेकिन अब वे दिन में ही आकर दिन में वापस लौट जाते हैं क्योंकि सेना और सीमा सुरक्षाबल उनके प्रति कोई खतरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं। वैसे मेले वाले दिन बीसियों ऐसे चर्म रोगियों से मुलाकातें होती रही हैं परंतु इस बार मात्र कुछ ही चर्मरोगी दरगाह के आसपास इलाज करवाने आए हुए थे।

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