श्रीनगर। चमलियाल मेले में इस बार ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ नहीं बंटेगा। अर्थात पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को इस बार चमलियाल बाबा की दरगाह का प्रसाद और चरणामृत प्राप्त नहीं होगा। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है सीमा का तनाव और पाक सैनिकों द्वारा बाबा की दरगाह को अपनी गोलियों का निशाना बनाने के कारण भारतीय सेना का गुस्सा। हालांकि अभी यह कोशिश की जा रही है कि वार्षिक मेले का आयोजन दरगाह पर नहीं अंतरराष्ट्ररीय सीमा से दो किमी पहले स्थित गांव दग छन्नी में किया जाए।
दरगाह की देखभाल करने वाली बीएसएफ प्रतिवर्ष इस मेले का आयोजन कर ‘शक्कर’ (दरगाह के आसपास की मिट्टी) तथा ‘शर्बत’ (दरगाह पर स्थित कुएं का पानी) को पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को पहुंचाती रही है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। सीमा सुरक्षाबल के एक अधिकारी के अनुसार: ‘इस बार परंपरा पूरी तरह से टूट जाएगी।
मेला भी दरगाह पर आयोजित नहीं होगा। वर्ष 2002 में भी एक बार ऐसा हो चुका है जब पाकिस्तानी गोलीबारी के चलते सीमा से दो किमी पीछे के गांव में इसका आयोजन हुआ था और फिर दरगाह के लिए चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को बाद में दरगाह तक पहुंचाया गया था। इस बार यह मेला 28 जून को होना था।
सेना अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि इस बार मेले को गांव के भीतर ही आयोजित करने के लिए गांववालों को मनाया जा रहा है। वे कहते हैं सरहद पर माहौल ऐसा नहीं है कि वहां मेला आयोजित हो और 40 से 50 हजार लोग एकत्र हों। उनके अनुसार, ऐसा खतरा ऐसी परिस्थिति में मोल नहीं लिया जा सकता जबकि पाक सेना बिफरे सांड की तरह फुंफकार मार रही है।
नतीजतन इस बार परंपराओं पर राजनीति के साथ-साथ सीमा के तनाव का भयानक साया पड़ गया है। यही कारण है कि पिछले लगभग 70 सालों से पाकिस्तानी श्रद्धालु जिस 'शक्कर' तथा 'शर्बत' को भारत से लेकर अपनी मनौतियों के पूरा होने की दुआ मांगते आए हैं। इस बार उन्हें ये दोनों नसीब नहीं हो पाएंगे। और यह भी पक्का हो गया है कि सीमा पर हो रही गोलाबारी के बीच यह परंपरा जीवित नहीं रह पाएगी।
यह कथा है उस मेले की जो देश के बंटवारे से पूर्व ही से चला आ रहा है। देश के बंटवारे के उपरांत पाकिस्तानी जनता उस दरगाह को मानती रही जो भारत के हिस्से में आ गई। यह दरगाह, जम्मू सीमा पर रामगढ़ सेक्टर में चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित है। इस दरगाह मात्र की झलक पाने तथा सीमा के इस ओर से पाकिस्तान भेजे जाने वाले 'शक्कर' व 'शर्बत' की दो लाख लोगों को प्रतीक्षा होती है। हालांकि बीच में दो-तीन साल उन्हें यह प्राप्त नहीं हो पाए थे।
कहा जाता है कि इस मिट्टी-पानी के लेप को शरीर पर मलने से चर्म रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। और पिछले पचास सालों से विभाजन के बाद से ही इस क्षेत्र की मिट्टी तथा पानी को ट्रालियों और टेंकरों में भर कर पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को भिजवाने का कार्यक्रम पाक रेंजर भारतीय सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों के साथ मिलकर करते रहे हैं।
क्या है दरगाह की कहानी : सनद रहे कि चमलियाल सीमा चौकी पर बाबा दलीपसिंह मन्हास की दरगाह है और उसके आसपास की मिट्टी को 'शक्कर' के नाम से पुकारा जाता है तो पास में स्थित एक कुएं के पानी को 'शर्बत' के नाम से।
जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है, वह बाबा दलीप सिंह की समाधि है, जिनके बार में यह प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म रोग हो गया था और बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था।
इस लेप के प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली थी। इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनकी गला काटकर हत्या कर डाली। बाद की हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है जानकारी नहीं है।