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देश की प्रभावशाली महिला बैंकर चंदा कोचर 64 करोड़ रुपये की रिश्वत मामले में दोषी करार, जानिए पूरा मामला

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WD Feature Desk

, बुधवार, 23 जुलाई 2025 (13:32 IST)
chanda kochhar case: एक समय था जब चंदा कोचर का नाम भारतीय बैंकिंग जगत में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली महिलाओं में शुमार था। आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में, उन्होंने बैंक को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया और वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी सफलता की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा थी, लेकिन लालच और पद के दुरुपयोग ने उन्हें शोहरत के आसमान से जमीन पर ला दिया। जुलाई 2025 में आए एक अपीलीय ट्रिब्यूनल के फैसले ने उन्हें 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का दोषी करार दिया है, जिससे उनके करियर पर लगा दाग और गहरा हो गया है। चंदा कोचर का यह मामला भारतीय कॉर्पोरेट इतिहास में एक महत्वपूर्ण सबक बन गया है। यह दिखाता है कि कैसे सत्ता, प्रतिष्ठा और लालच का मेल एक व्यक्ति को ऊंचाइयों से गिराकर अर्श से फर्श पर ला सकता है। एक ऐसी बैंकर, जिसे कभी देश की आर्थिक प्रगति का चेहरा माना जाता था, आज भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी करार दी गई है।

चंदा कोचर ने कैसे तय किए सफलता के पायदान
चंदा कोचर ने महज 22 साल की उम्र में आईसीआईसीआई बैंक ज्वाइन किया था और अपनी कड़ी मेहनत और काबिलियत के दम पर लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं। 2009 में, वह बैंक की सीईओ और एमडी बनीं, और उनके नेतृत्व में आईसीआईसीआई बैंक देश के सबसे बड़े निजी क्षेत्र के बैंकों में से एक बन गया। उन्हें फोर्ब्स की 'विश्व की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं' की सूची में भी जगह मिली और कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया।

किस मामले में चंदा पर लगे आरोप
2018 में उनके खिलाफ वीडियोकॉन ग्रुप को दिए गए लोन से जुड़े अनियमितताओं के आरोप सामने आने लगे। आरोप था कि उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर करने के बदले में अपने पति दीपक कोचर की कंपनी नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड (NRPL) के जरिए 64 करोड़ रुपये की रिश्वत ली। यह 'क्विड-प्रो-क्वो' (कुछ देना और कुछ लेना) का सीधा मामला था, जिसने उनके करियर को संकट में डाल दिया।

64 करोड़ रुपये का रिश्वत कांड और कानूनी शिकंजा
प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस मामले की गहन जांच की। जांच में सामने आया कि आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (VIEL) को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर होने के ठीक एक दिन बाद, वीडियोकॉन ग्रुप की एक कंपनी सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (SEPL) ने 64 करोड़ रुपये नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड को ट्रांसफर किए। ईडी ने दावा किया कि यह सीधे तौर पर रिश्वत थी, और दीपक कोचर की कंपनी पर भले ही कागजों में वेणुगोपाल धूत (वीडियोकॉन के चेयरमैन) का नाम था, लेकिन उसका पूरा नियंत्रण दीपक कोचर के पास था।

इस मामले में, ट्रिब्यूनल ने अपने जुलाई 2025 के फैसले में ईडी के आरोपों को सही ठहराया। ट्रिब्यूनल ने माना कि चंदा कोचर ने अपने पद का दुरुपयोग किया और हितों के टकराव (Conflict of Interest) का खुलासा नहीं किया, जो बैंक की आंतरिक नीतियों का उल्लंघन था। इस फैसले ने पहले के एक अदालती आदेश को भी गलत ठहराया, जिसमें कोचर दंपत्ति की 78 करोड़ रुपये की संपत्ति को छोड़ने का आदेश दिया गया था। ट्रिब्यूनल ने कहा कि निर्णायक प्राधिकरण ने महत्वपूर्ण तथ्यों को अनदेखा किया था, और ईडी के आरोपों में सच्चाई है।

यह घटना न केवल बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और नैतिक आचरण के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून और नैतिकता से ऊपर नहीं हो सकता। चंदा कोचर का पतन यह याद दिलाता है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए पद का दुरुपयोग अंततः विनाशकारी परिणाम ही लाता है। यह मामला भारतीय कॉर्पोरेट गवर्नेंस और नियामक ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर देता है, ताकि भविष्य में ऐसे घोटालों को रोका जा सके।
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