नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने नेताओं और नौकरशाहों विशेषकर पुलिस अधिकारियों के बीच कथित गठजोड़ को चिह्नित करते हुए शुक्रवार को कहा कि वह एक समय उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में स्थायी समितियों के गठन पर विचार कर रहा था, जो विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों की शिकायतों की जांच करती।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा कि मुझे इस बात पर बहुत आपत्ति है कि नौकरशाही विशेष रूप से, इस देश में पुलिस अधिकारी जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक समय मैं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की अध्यक्षता में नौकरशाहों विशेषकर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचारों और शिकायतों की जांच के लिए स्थायी समितियां बनाने के बारे में सोच रहा था। अब, मैंने यह विचार छोड़ दिया है, मैं इसे अभी नहीं करना चाहता।
प्रधान न्यायाधीश ने एक पीठ का नेतृत्व करते हुए यह टिप्पणी की। यह पीठ छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निलंबित निदेशक, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह के खिलाफ राजद्रोह, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के अपराधों के लिए राज्य सरकार द्वारा दर्ज तीन प्राथमिकी के संबंध में 3 अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
प्रधान न्यायाधीश रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने तीनों याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली और फैसला बाद में सुनाएगी। पीठ ने परिणाम का संकेत देते हुए कहा कि वह निलंबित अधिकारी को राजद्रोह और जबरन वसूली के अपराध के लिए दर्ज दो मामलों में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करेगी और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से कहा वह सिंह की याचिकाओं पर 8 सप्ताह के भीतर फैसला करे।
कथित तौर पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत दर्ज तीसरे मामले में, पीठ ने कहा कि पुलिस अधिकारी उचित कानूनी उपाय का लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे क्योंकि उन्होंने केवल राज्य पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगाने और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मामले के स्थानांतरण का अनुरोध किया है।
शुरू में राजद्रोह मामले में सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन ने कहा कि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता को फंसाने की साजिश रचने से इनकार करने पर पुलिस अधिकारी पर कष्टप्रद आरोप लगाए गए हैं।
भ्रष्टाचार और जबरन वसूली मामले में पुलिस अधिकारी की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा सुरक्षा दिए जाने के बाद, राज्य सरकार ने 2016 में हुई एक कथित घटना के लिए 12 सितंबर को जबरन वसूली के अपराध के लिए तीसरी प्राथमिकी में एक गैर-जमानती प्रावधान जोड़ दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और वकील सुमीर सोढ़ी राज्य सरकार की ओर से पेश हुए तथा पीठ से कहा कि जांच के दौरान पुलिस द्वारा जुटाए गए साक्ष्य और आरोपों के कारण पुलिस अधिकारी किसी भी तरह की राहत के लायक नहीं है।