नई दिल्ली। सरकार ने स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और यह चीन को उच्चतम स्तरों सहित कई अवसरों पर स्पष्ट कर दिया गया है। चीन ने भारत के 43,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत विदेश मंत्रालय के चीन प्रभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1962 के बाद से जम्मू-कश्मीर में भारत की भूमि का लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर भू-भाग चीन के कब्जे में है।
मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार इसके अतिरिक्त 2 मार्च 1963 को चीन तथा पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित तथाकथित चीन-पाकिस्तान ‘सीमा करार’ के तहत पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के 5,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अवैध रूप से चीन को दे दिया था।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है और यह बात उच्चतम स्तरों सहित कई अवसरों पर चीन को स्पष्ट कर दी गई है। विदेश मंत्रालय का यह बयान ऐसे समय में महत्वपूर्ण है, जब चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ को लेकर दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हैं। यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। इसी कारण भारत ने चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पर आयोजित सम्मेलन का बहिष्कार किया था।
लोकसभा में कुछ समय पहले पेश दस्तावेजों में मंत्रालय ने कहा था कि साल 1996 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति च्यांग चेमिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के कदम के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
जून 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में से प्रत्येक ने इस बारे में विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने पर सहमति जताई थी ताकि सीमा मुद्दे के समाधान का ढांचा तैयार करने की संभावना तलाशी जा सके। इस विषय पर अब तक दोनों पक्षों की कई बैठकें हो चुकी है लेकिन सीमा विवाद पर कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है।
सूचना के अधिकार के तहत विदेश मंत्रालय से यह पूछा गया था कि चीन ने भारत के कितने क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है और इस बारे में सरकार ने क्या पहल की है? रक्षा मामलों के विशेषज्ञ राहुल के भोंसले ने कहा कि पिछले 30 साल से सीमा मुद्दे पर चर्चा चल रही है लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है और एक बड़ा क्षेत्र अभी भी चीन के कब्जे में है और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण की घटनाएं भी जारी हैं।
उन्होंने कहा कि वास्तव में चीन की ऐसी गतिविधियों से सचेत होने की जरूरत है और उसका इरादा बिलकुल स्पष्ट है। हमें चीन के संदर्भ में 1962 के बाद की स्थिति में सामरिक परिप्रेक्ष्य में अपनी नीति को देखना होगा।
सामरिक मामलों के जानकार राजीव नयन ने कहा कि हमारी नीति काफी रक्षात्मक नजर आती है और चीन इसी का फायदा उठाता है। हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस विषय को प्रभावी ढंग से उठाना चाहिए और जापान, वियतनाम और सिंगापुर जैसे देशों से रक्षा एवं अन्य संबंधों को बढ़ाना चाहिए। (भाषा)