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CAB : मनमोहन सिंह की सलाह पर लाया गया है नागरिकता संशोधन विधेयक

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हमें फॉलो करें Manmohan Singh
, बुधवार, 11 दिसंबर 2019 (15:00 IST)
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक (CitizenshipAmmendmentBill) को पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह की सलाह पर लाया गया एक कदम बताते हुए भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने विपक्ष को राजनीतिक हितों की बजाय राष्ट्र के हित साधने की नसीहत दी और दावा किया कि तथा इससे पूर्वोत्तर की ‘सांस्कृतिक पहचान’ को कोई खतरा नहीं पहुंचेगा।
 
राज्यसभा में इस विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए नड्डा ने कहा कि यह विधेयक बेहद परेशानियों में जीवन जी रहे लाखों लोगों को सम्मान पूर्वक जीवनयापन करने का अधिकार देते हैं।
 
नड्डा ने राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह का 18 दिसंबर 2003 में दिए गए एक बयान का हवाला दिया। उस समय सिंह ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को सलाह देते हुए कहा कि ऐसे प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के मामले में सरकार को अपने रवैए को उदार बनाना चाहिए और नागरिकता कानून में बदलाव करने चाहिए। नड्डा ने दावा किया कि मनमोहन सिंह की बात को पूरा करते हुए हमारी सरकार इस विधेयक का लेकर आई है।
 
पूर्वोत्तर की चर्चा करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि पूर्वोत्तर में यह भ्रम फैलाया गया है कि इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान खत्म हो जाएगी। वहां लोगों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
 
उन्होंने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह इस बात का पहले ही स्पष्ट आश्वासन दे चुके हैं कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद भी ‘इनर परमिट’ व्यवस्था जारी रहेगी। पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक पहचान बरकार रहेगी। उनके अस्तित्व को कोई खतरा नहीं हुआ है।
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उन्होंने कांग्रेस नेता आनंद शर्मा पर आरोप लगाया कि उन्होंने इस विधेयक के विरोध में कई ऐसे तर्क दिए हैं, जिनका ‘मूल से संबंध नहीं है।’ इस विधेयक का एक ही आधार है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में जिन लोगों की धार्मिक आधार पर प्रताड़ना हुई हैं, उन्हें भारत में शरण लेने पर नागरिकता दी जाएगी।
 
इससे पूर्व विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस नेता शर्मा ने इस विधेयक को संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार के विरूद्ध बताया था।
 
नड्डा ने कहा कि यह सच्चाई भले ही जितनी कड़वी हो पर सच बात यही है कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है। उन्होंने कहा कि विभाजन के समय जितना नरसंहार हुआ और जितनी बड़ी संख्या में लोग अपना घर छोड़कर एक तरफ से दूसरी तरफ गए, इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।
 
उन्होंने कहा कि विभाजन के समय भारत में अल्पसंख्यक मुसलमान, सिख, जैन, पारसी, ईसाई अल्पसंख्यक थे। पाकिकस्तान में हिन्दू, सिख, जैन, पारसी, ईसाई अल्पसंख्यक थे। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए नेहरू-लियाकत अली समझौता हुआ था। किंतु समझौते का पालन पाकिस्तान में नहीं किया गया। पाकिस्तान के संविधान के अनुसार वह एक इस्लामिक राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी मात्र 2 प्रतिशत रह गई है। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत भारत में अल्पसंख्यक फल-फूल रहे हैं।
 
उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह स्थिति को समझना नहीं चाहता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर रहा है।
 
उन्होंने कहा कि लोगों को इंदौर, कच्छ या पश्चिम बंगाल में ऐसे शरणार्थियों की हालत जाकर देखना चाहिए। यदि ऐसे लोगों के हालात देख लिये जाए तो व्यक्ति तुरंत इस विधेयक पर मुहर लगा देगा।
 
उन्होंने अफगानिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के घरों, दुकानों और मंदिर एवं गुरुद्वारों को तोड़े जाने के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स एवं गार्जियन जैसे समाचार-पत्रों की खबरों का हवाला देते हुए कहा कि वहां अल्पसंख्यकों को काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। वहां ऐसे लोगों फिरौती के लिए हत्या की गई। उन्हें बलपूर्वक इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया गया।
 
नड्डा ने कहा कि इस विधेयक के साथ किसी भारतीय नागरिक के साथ अन्याय नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि जब अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना धर्म के आधार पर की गई है तो उसका समाधान भी धर्म के आधार पर ही होगा। इस विधेयक को बस इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि राजनीति के हित में कुछ और होता है और देश के हित में कुछ और। उन्होंने विपक्ष को सलाह दी कि वे राजनीति का हित छोड़कर देश के हित को देखें। (भाषा)

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