नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई शुरू हो गई है। वहीं, केंद्र सरकार अपनी प्रारंभिक आपत्ति पर जोर दे रही है कि क्या अदालत इस प्रश्न पर सुनवाई कर सकती है या पहले इस पर अनिवार्य रूप से ससंद में चर्चा कराई जाएगी। वहीं, सीजेआई ने कहा कि वे पहले मामले को समझने के लिए याचिकाकर्ताओं को सुनना चाहेंगे।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि प्रारंभिक आपत्ति की प्रकृति और गुण-दोष इस बात पर निर्भर करता है कि याचिकाकर्ता का क्या कहना है और अदालत उनका पक्ष जानना चाहती है।
मेहता ने पीठ से कहा कि याचिकाकर्ता अपना पक्ष रख सकते हैं और उनके द्वारा जताई प्रारंभिक आपत्ति पर भी राय रख सकते हैं। इस पर सीजेआई ने मेहता से कहा कि मुझे माफ करिएगा श्रीमान सॉलिसिटर, हम फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि अदालत पहले याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनेगी। उन्होंने कहा कि आप हमें बता नहीं सकते कि हम कैसे कार्यवाही का संचालन करेंगे। मैंने अपनी अदालत में कभी इसकी अनुमति नहीं दी है। इस पर मेहता ने कहा कि वह ऐसा कभी नहीं करते हैं।
बेहद संवेदनशील मामला : मेहता ने कहा कि यह बहुत संवदेनशील मामला है जिस पर आप प्रारंभिक दलीलों पर गौर करेंगे और फिर मुझे कुछ वक्त देंगे। हमें विचार करना पड़ सकता है कि इस बहस में आगे भाग लेने के लिए सरकार का क्या रुख होगा। सीजेआई ने कहा कि हम पर व्यापक दृष्टिकोण रखने के लिए भरोसा रखिए।
मेहता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय जिस मामले पर सुनवाई कर रही है, वह वास्तव में विवाह का सामाजिक-कानूनी संबंध बनाने को लेकर है जो सक्षम विधायिका का कार्य क्षेत्र है।
उन्होंने कहा कि जब विषय समवर्ती सूची में है तो हम एक राज्य के इस पर सहमत होने, दूसरे राज्य के इसके पक्ष में कानून बनाने तथा किसी तीसरे राज्य के इसके खिलाफ कानून बनाने की संभावना से इनकार नहीं कर सकते। इसलिए राज्यों की अनुपस्थति में ये याचिकाएं विचार करने योग्य नहीं रहेंगी, यही मेरी प्रारंभिक आपत्तियों में से एक है।
इसे बेहद मौलिक मुद्दा बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने 13 मार्च को इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। सोमवार को शीर्ष न्यायालय समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया था।
शहरी संभ्रांतवादी विचार : केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए।
केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता पर्सनल लॉ और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी। इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।
दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने के उनके अधिकार के क्रियान्वयन और विशेष विवाह कानून के तहत उनके विवाह के पंजीकरण के लिए संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर न्यायालय ने पिछले साल 25 नवंबर को केंद्र से अपना जवाब देने को कहा था। (एजेंसी/वेबदुनिया)