Climate Change in Asia: अप्रैल और मई इस साल भारत में चुनावी सरगर्मी के महीनों के तौर पर तो याद किए ही जाएंगे, अब तक की सबसे अधिक गर्मी के महीने भी कहलाएंगे। ऐसी भीषण गर्मी, कि पारा कई जगहों पर 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तो गया ही, राजस्थान के जैसलमेर में 53 डिग्री से भी ऊपर चला गया। वहां, पाकिस्तान के साथ वाली सीमा की निगरानी के लिए तैनात, 'सीमा सुरक्षा बल' (BSF) के दो जवानों की प्रचंड गर्मी से मृत्यु भी हो गई।
उत्तरी भारत में 45 डिग्री के आस-पास तापमान पिछले वर्ष जून के महीने में मापा गया था। उस समय की भीषण गर्मी ने, बिहार में केवल दो दिनों में, 42 प्राणों की बलि ले ली थी। उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में 54 लोगों ने दम तोड़ दिया था। जुलाई महीने के पहले सप्ताहांत में ही उत्तरी भारत में कुछ जगहों पर इतनी घनघोर वर्षा हुई, जितनी अन्यथा पूरे महीने में होती है। इस भारी वर्षा और बाढ़ ने 20 से अधिक लोगों के प्राण ले लिए।
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स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के 'विश्व मौसम-विज्ञान संगठन' (WMO) की महासचिव सेलेस्ते साउलो का कहना है कि एशिया के बहुत से देशों के लिए 2023 की गर्मियां, गर्मियों के तापमान दर्ज करने के अब तक के इतिहास की सबसे गरम गर्मियां थीं। भीषण गर्मी वाले दिनों के अलावा इन एशियाई देशों को लू, सूखों, बाढ़ों और तूफ़ानों का भी सामना करना पड़ा। इन सभी आपदाओं की बढ़ती हुई तीव्रता जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है।
आपदाओं की प्रचंडता बढ़ रही है : एशियाई देशों को न केवल निरंतर बढ़ती हुई मौसमी आपदाएं ही सता रही हैं, इन आपदाओं की प्रचंडता भी समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। इन देशों की अधिकांश जनता इतनी धनी भी नहीं होती कि वह पश्चिम के धनी देशों के लोगों की तरह, इन आपदाओं से होने वाले नुकसान से राहत पाने के लिए, किसी आपदा-बीमा का ख़र्च उठा सके। पश्चिमी देशों के लोग बीमारी के इलाज़ या पेंशन पाने के लिए ही बीमे नहीं करवाते और उनकी फ़ीस नहीं भरते; वे बिजली गिरने, भूकंप, मौसमी कहर या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपट पाने के लिए आपदा-बीमे भी करवाते हैं। सरकारों से उन्हें प्रायः कोई सहायता नहीं मिलती और न लोग इसकी अपेक्षा करते हैं।
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'विश्व मौसम-विज्ञान संगठन' के आंकड़े बताते हैं कि विश्व के अन्य द्वीपों-महाद्वीपों की अपेक्षा एशिया महाद्वीप अधिक तेज़ी से गरम हो रहा है। पूर्वी एशिया के देश गर्मी के साथ-साथ अधिकतर बाढ़ और तूफ़ान से भी जूझते दिखते हैं, तो पश्चिमी एशिया के देश झुलसा देने वाली गर्मी के अलावा सूखे से भी लड़ रहे होते हैं। उदाहरण के लिए, ईरान लगातार तीन वर्षों से सूखे से जूझ रहा है। अफ़ग़ानिस्तान पिछले दो वर्षों से ख़राब फसल के परिणामों से लड़ रहा है। वहां के एक करोड़ 53 लाख लोगों के सामने खाद्य संकट पैदा हो गया बताया जाता है।
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ग्लेशियर पिघल रहे हैं : चीन पर भी मौसम की मार पड़ रही है। 2023 में चीन के दक्षिण-पश्चिमी भूभाग को पहले तो असामान्य सूखे का सामना करना पड़ा, और फिर गर्मियों में कई जगहों पर आकस्मिक बाढ़ से भी लड़ना पड़ा। एशिया महाद्वीप के गरम होते जाने और तापमान लगातार बढ़ने से, उसके पर्वतीय क्षेत्रों के चिरतुषार (पर्माफ्रॉस्ट) वाली जगहों पर की न केवल सतही बर्फ, बल्कि सदियों से ज़मीन के नीचे जमी हुई भूगर्भीय बर्फ सहित हिमनदों (ग्लेशियरों) की बर्फ भी पिघलने लगी है।
पृथ्वी के दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों के अलावा तिब्बत का पठारी और पर्वतीय इलाका ही एक ऐसी जगह है, जो ध्रुवों के बाद सबसे अधिक बर्फ से ढका रहा करता था। वहां भी, एक ओर गर्मियों के रिकॉर्ड तापमानों तथा दूसरी ओर वर्षा और हिमपात की कमी से, एशिया महाद्वीप की बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का स्तर गिरने लगा है।
साइबेरिया भी तपने लगा है : रूसी पश्चिमी साइबेरिया में भी ज़मीन के नीचे जमी हुई चिरकालिक बर्फ पिघलने की, और इस कारण मिट्टी बैठने की गति बढ़ते जाने से अपूर्व नए संकट पैदा हो रहे हैं। सड़कें और मकान अचानक धंसने लगते हैं। पूरी बस्तियां त्यागनी और किसी दूसरी जगह नई बस्ती बसानी पड़ती है। 2023 की गर्मियों में पश्चिमी साइबेरिया का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता देखा गया। अतीत में गर्मियों में वहां अधिकतम तापमान 5-7 डिग्री हुआ करता था। 2023 में साइबेरिया के जंगलों में ऐसी भयंकर आग लगी कि कई जगहों पर उसे सप्ताहों या महीनों तक बुझाया नहीं जा सका। जंगलों में पेड़ों के जलने से न केवल बहुत बड़ी मात्रा में तापमानवर्धक कार्बन डाईऑक्साड गैस का उत्सर्जन होता है, पेड़ों के नष्ट होने से ज़मीन तक पहुंचने वाली धूप ज़मीन को और अधिक गरम भी करती है।
'विश्व मौसम-विज्ञान संगठन' के लिए काम करने वाले वैज्ञानिकों ने यह हिसाब भी लगाया कि एशिया में मौसमी आपदाओं के कारण कितना आर्थिक नुकसान होता है। उन्होंने पाया कि एशियाई देशों को पिछले 50 वर्षों में इन आपदाओं के कारण 1.4 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर नुकसान भुगतना पड़ा है। ये आपदाएं जानलेवा ही नहीं होतीं और घर-द्वार ही नहीं नष्ट करतीं, वे लोगों की रोज़ी-रोटी भी छीन लेती हैं। सड़कें और अन्य आधारभूत संरचनाएं क्षतिग्रस्त करती हैं। प्रभावित देशों की पूरी अर्थव्यवस्था अव्यवस्था बनने लगती है।