नई दिल्ली। टेलीविजन चैनलों पर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक कंडोम के विज्ञापन नहीं दिखाए जाने के सरकारी आदेश को लेकर स्वास्थ्य समूहों में नाखुशी है। स्वास्थ्य समूहों का कहना है कि यह यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य क्षेत्र में दशकों में की गई प्रगति को खत्म करने की दिशा में ले जाने वाला कदम है।
उन्होंने इस फैसले की खिलाफत की है। 'द पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया' ने सुझाव दिया कि सभी विज्ञापनों को हटाने के बजाय फिल्म उद्योग की तरह विज्ञापनों को भी उनकी सामग्री के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जा सकता है और इसी के अनुरूप प्रसारण के लिए उनका स्लॉट तय किया जा सकता है।
पीएफआई की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा ने कहा, ‘स्वास्थ्य मंत्रालय परिवार नियोजन में खास तौर पर बच्चों के बीच अंतर के लिए गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है जबकि सूचना और प्रसारण मंत्रालय का परामर्श यौन और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य के क्षेत्र में दशकों में हुई प्रगति को खत्म करने की दिशा में ले जाने वाला है।’
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 11 दिसंबर को सभी टेलीविजन चैनलों को एक परामर्श जारी कर उनसे रात 10 बजे से सुबह छह बजे के बीच ही कंडोम के विज्ञापन दिखाने को कहा है। मुटरेजा ने कहा कि यद्यपि सिर्फ 5.6 फीसदी पुरुष ही कंडोम का इस्तेमाल करते हैं।
यह सबसे शुरुआती और सुरक्षित गर्भनिरोधक है जो न सिर्फ बच्चों में अंतर के लिए अपनाए जाने वाले तरीके के तौर पर काम करता है बल्कि एचआईवी-एड्स और दूसरे यौन संक्रमणों और बीमारियों से भी बचाव के लिए काम करता है। उन्होंने कहा कि कंडोम पुरुषों को परिवार नियोजन की जिम्मेदारी लेने के लिए उत्साहित करते हैं। एड्स हेल्थकेयर फाउंडेशन के कंट्री प्रोग्राम डायरेक्टर वी सैम प्रसाद ने कहा कि ऐसे वक्त जब वे कंडोम के इस्तेमाल को लोकप्रिय करने का प्रयास कर रहे हैं, इस तरह की पाबंदी का कोई मतलब नहीं है। (भाषा)