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बहुसंख्यकों के हिसाब से ही चलेगा देश, हाईकोर्ट जज की टिप्पणी से मचा बवाल

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

प्रयागराज , सोमवार, 9 दिसंबर 2024 (16:23 IST)
Allahabad High Court Judge Shekhar Yadav News in Hindi: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की एक टिप्पणी काफी सुर्खियों में है। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के विधि प्रकोष्ठ के कार्यक्रम में यह टिप्पणी कर सनसनी फैला दी कि हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा। जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है। इस बीच, कांग्रेस और भीम आर्मी के मुखिया ने जज के इस बयान पर कड़ी टिप्पणी की है। 
 
हाईकोर्ट जस्टिस शेखर यादव विहिप के कार्यक्रम में कहा कि मुझे यह कहने में कतई गुरेज नहीं कि ये हिन्दुस्तान है और  हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। जज यादव ने कहा कि आप यह भी नहीं कह सकते कि हाईकोर्ट के जज होकर इस तरह बोल रहे हैं। कानून तो भैया बहुसंख्यक से ही चलता है। परिवार में देखिए, समाज में भी देखिए, जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है। इस कार्यक्रम में जस्टिस दिनेश पाठक भी शामिल हुए थे। 
 
क्या कहा कांग्रेस ने : लखनऊ स्थित प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज आलम ने सवाल उठाया कि जस्टिस शेखर और जस्टिस पाठक किसी गैर सरकारी और गैर विभागीय मंच पर कैसे जा सकते हैं? यह जजों के कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेकर इन दोनों न्यायाधीशों को पद से हटा देना चाहिए।  आलम ने कहा कि जस्टिस यादव का यह कहना कि भारत अपने बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा, बताता है कि जस्टिस यादव संविधान तक को नहीं मानते जो कि भारत को बहुसंख्यकवादी राज्य नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राज्य मानता है।
 
न्यायिक गरिमा का उल्लंघन : प्रयागराज यूपी में विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव का बयान न्यायिक गरिमा, संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और समाज में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी का गंभीर उल्लंघन है। 'कठमुल्ला' जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसे बयान समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं, जो न्यायपालिका जैसे पवित्र संस्थान के लिए अक्षम्य है।
उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से समाज को एकजुट करे न कि वैमनस्य को बढ़ावा दे। ऐसे बयान न्यायपालिका की साख को कमजोर करते हैं और जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं। न्यायाधीश का धर्म केवल न्याय होना चाहिए, न कि किसी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 

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